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1541. गुरूद्वारा श्री तूत साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • सुल्तानविंड एरिया, अमृतसर साहिब जी

1542. गुरूद्वारा श्री तूत साहिब जी किस गुरू से संबंधित है ?

  • पाँचवें गुरू, श्री गुरू अरजन देव जी

1543. गुरूद्वारा श्री तूत साहिब जी का नाम तूत साहिब कैसे पड़ा ?

  • इस स्थान पर, श्री गुरू अरजन देव जी महाराज ने एक तुत के पेड़ के नीचे विश्राम किया था, इस कारण इस गुरूद्वारे का नाम श्री तूत साहिब पड़ गया।

1544. गुरूद्वारा तप स्थान बाबा बुड्डा जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • रामदास शहर, जिला अमृतसर साहिब जी

1545. गुरूद्वारा तप स्थान बाबा बुड्डा जी साहिब का इतिहास क्या है ?

  • बाबा बुड्डा जी इस स्थान पर तप करते थे। इस स्थान पर बाबा बुड्डा जी का पवित्र पलँग मौजूद है। बाबा बुड्डा जी अपने जीवन के अन्तिम कुछ साल यहाँ पर रहे। बाबा बुड्डा जी 21 साल, 11 महीने और 13 दिन इस स्थान पर रहे।

1546. श्री थड़ा साहिब जी अमृतसर में किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • श्री थड़ा साहिब, श्री हरिमन्दिर साहिब (श्री अमृतसर साहिब जी) की परिक्रमा करते समय आता है। चौथे गुरू श्री गुरू रामदास साहिब की महाराज इस थड़े साहिब पर बैठकर सरोवर निर्माण का कार्य देखा करते थे।

1547. गुरूद्वारा श्री बैरोनी साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • भदौड़ टाउन, जिला बरनाला, पँजाब

1548. गुरूद्वारा श्री बैरोनी साहिब जी किस गुरू से संबंधित है ?

  • छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी

1549. गुरूद्वारा श्री बैरोनी साहिब जी, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी से किस प्रकार से संबंधित है ?

  • ये वो पवित्र स्थान है। जहां पर श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के चरण पड़े। इस स्थान पर सलतानिया को उपदेश देकर गुरू घर से जोड़ा। कुछ समय यहाँ पर रहने के पश्चात् गुरू जी आगे चले गये। श्री गुरूद्वारा साहिब जी में बैसाखी का त्यौहार और और हर महीने दसमीं का दिहाड़ा मनाया जाता है।

1550. बैसाखी वाला गुरूद्वारा साहिब जी किसे कहा जाता है ?

  • गुरूद्वारा श्री बैरोनी साहिब जी को

1551. गुरूद्वारा श्री कच्चा गुरूसर साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम हन्डाया, जिला बरनाला

1552. गुरूद्वारा श्री कच्चा गुरूसर साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • हंडाया गाँव में नवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी यात्रा करते हुये आये थे। इस स्थान पर माई जोनी जी, जो गाँव की सबसे धनवान थी। उसने गुरू जी को कच्चा दुध पीने के लिए दिया। इसलिए यहाँ पर कच्चा गुरूसर साहिब नाम रखा गया।

1553. गुरूद्वारा श्री पक्का गुरूसर साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम हन्डाया, जिला बरनाला

1554. गुरूद्वारा श्री पक्का गुरूसर साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • संवत् 1722 बिक्रमी (सन् 1665) को श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी यहाँ पर आये थे। उस समय नगर में मारू रोग बुखार बहुत जोरों पर था। एक बीमार आदमी गुरू जी की शरण में आया। गुरू जी ने छपड़ी (पानी का पोखर) में स्नान करने के लिए बोला, जिसमें चमड़े वाला पानी खड़ा था। बीमार आदमी के स्नान करने से झिझकने पर, गुरू जी ने पहले स्वयँ स्नान किया और वर दिया– यह गुरूसर है जो भी स्नान करेगा उसका दुख दूर होगा। सभी लागों ने यहाँ पर स्नान किया और दुखों से छुटकारा पाया।

1555. गुरूद्वारा श्री सपनीसर साहिब जी पातशाही दसवीं, किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • भदौड़ टाउन, जिला बरनाला

1556. गुरूद्वारा श्री सपनीसर साहिब जी पातशाही दसवीं, को किस अन्य नाम से भी बुलाया जाता है ?

  • श्री अकाल यमतर साहिब जी

1557. गुरूद्वारा श्री सपनीसर साहिब जी पातशाही दसवीं, का इतिहास क्या है ?

  • यह गाँव आज से सदियों पहले राजा भद्रसेन ने अपने नाम से बसाकर अपनी राजधानी बसाई थी। आज से 1800 साल पहले इस गाँव के दक्षिण की तरफ 2 कोस, पहाड़ की तरफ 1 कोस के फासलें पर, सतलज नदी यहाँ से निकलते हुये भठिंडे के किले के पास बहती थी, जो अब 60 मील की दूरी पर चला गया है। दरिया पर राजा ने स्नान करने के लिए पक्का स्नानघर बनवाया हुआ था। एक बार राजा की पुत्री सूरजकला अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने के लिए गई। स्नानघर में बिशनदास नाम का साधू महात्मा नहाकर कपड़े पहन रहा था, लडकियों ने महात्मा से कहा आप अन्दर क्यों घुसे, यह हमारे स्नान करने के लिए है, मर्दों के लिए नहीं है। महात्मा ने कहा कि जँगल है, इसलिए मैंने अन्दर स्नान किया, आगे से अन्दर स्नान नहीं करूँगा। उन्होंने महात्मा से मारामारी की, कपड़े फाड़े, राजकुमारी सबसे ज्यादा बोल रही थी। आखिर तँग होकर महात्मा के मुँह से शब्द निकले कि क्यों सपनी (नागिन) जैसे जीभ मार रही है। महात्मा के मुँह से ये सुनकर उसे लगा कि श्राप लग गया है, मैं सपनी (नागिन) जरूर बनूँगी। उसने महात्मा जी के पैरों में गिरकर माफी माँगी कि मेरा उद्धार कैसे होगा। दया करके महात्मा ने कहा कुछ समय बाद श्री गुरू नानक पातशाह जी अवतार धारेंगे, उनकी गद्दी की दसवीं जोत, श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी महाराज सिक्खों समेत आकर तेरी मुक्ति करेंगे। फिर कुछ समय बाद एक दिन श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी कुछ सिक्खों समेत गाँव दीने से शिकार खेलते हुये बुरज होते हुये संमत् 1762 बिक्रमी (1705) को राजा भद्रसेन की खेह पर पहुँचे, जहाँ पर अब श्री गुरूद्वारा साहिब सुशोभित है। गुरू जी ने यहाँ पर एक जगह पर दीवान सजाया, उस वक्त यह सपनी (नागिन) गुरू जी की तरफ आ रही थी। सपनी गुरू जी के पास पहुँची तो गुरू जी ने अपना सीधा पैर आगे बड़ाया, सपनी ने अपना सिर गुरू जी के चरणों में रख दिया। गुरू जी ने अपना तीर उसके माथे पर लगाकर उसकी मुक्ति की। फिर बोले कि इसे जमीन में दबा दो। संगतों के पुछने पर गुरू जी सपनी की सारी वार्ता सुनाई और कहा कि हम इसकी मुक्ति करने के लिए ही यहाँ पर आये हैं। यहाँ पर गुरू जी के तीर शोभामान हैं।

1558. गुरूद्वारा तखत श्री दमदमा साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • तलवँडी साबो, जिला भटिण्डा

1559. गुरूद्वारा तखत श्री दमदमा साहिब जी खालसा पँथ का कौनसा तखत है ?

  • चौथा

1560. गुरूद्वारा तखत श्री दमदमा साहिब जी किस गुरू से संबंधित है ?

  • दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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