1521. गुरूद्वारा श्री संन साहिब जी (चौरासी कट) श्री गुरू
अमरदास साहिब जी से किस प्रकार संबंधित है ?
श्री गुरू अंगद देव की के पुत्र, भाई दातू और भाई दासू ने
गुरूगद्दी की ईष्या के कारण गुरू अमरदास जी को लात मारी। गुरू जी इस ईष्या से दूर
रहने के लिए अपने ही नगर बासरकी गिलां में बाहर इसी स्थान पर कच्चे कोठे में बैठ गये
और बाहर लिखवा दिया कि दरवाजा खोलने वाला गुरू का सिक्ख नहीं होगा।
1522. कच्चे कोठे के बैठे हुए श्री गुरू अमरदास साहिब जी को
किसने और किस प्रकार से खोजा ?
पूरन ब्रहम ज्ञानी श्री बाबा बुड्डा साहिब जी गुरू जी को ढूँढने
के लिए घोड़ी सजा के उसके पिछे चल पड़े। घोड़ी इस स्थान पर आकर रूक गयी। बाबा जी ने
लिखा हुआ पड़ा, तो उन्होंने पिछे की दीवार थोड़ी सी तोड़कर (संन बनाकर) संगत समेत
दर्शन किये।
1523. गुरूद्वारा श्री संन साहिब जी को चौरासी कट क्यों कहते
हैं ?
क्योंकि श्री गुरू अमरदास जी ने वर दिया था कि, जो इस संन में
से एक मन यानि सच्चे मन से निकल जायेगा, उसकी चौरासी कट जायेगी।
1524. गुरूद्वारा श्री समाध बाबा बुड्डा साहिब जी, किस स्थान
पर सुशोभित है ?
ग्राम रामदास, जिला श्री अमृतसर साहिब जी
1525. गुरूद्वारा श्री समाध बाबा बुड्डा साहिब जी, किससे
संबंधित है ?
गुरू नानक देव जी, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी और बाबा बुड्डा
जी।
1526. गुरूद्वारा श्री समाध बाबा बुड्डा साहिब जी, श्री गुरू
नानक देव जी से किस प्रकार संबंधित है ?
श्री गुरू नानक देव जी अपनी यात्रा के दौरान संमत् 1575 बिक्रमी
(सन 1518) को यहाँ आये और एक टाहली के पेड के नीचे विश्राम किया, जो रामदास गाँव के
पास है। गुरू जी यहाँ एक ऐसे बालक से मिले, जो बड़े ज्ञान, विवेक और वैराग्य की बातें
कर रहा था। गुरू जी एक छोटे से बालक के मुख से ज्ञान की बातें सुनकर उसे बाबा जी
कहने लग गये। इस प्रकार उस बालक का नाम बाबा बुड्डा जी पड़ गया।
1527. गुरूद्वारा श्री समाध बाबा बुड्डा साहिब जी, श्री गुरू
हरगोबिन्द साहिब जी से किस प्रकार संबंधित है ?
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी, बाबा बुड्डा जी के अन्तिम
सँस्कार में आये थे। साथ ही एक थड़ा साहिब भी है, जिस पर श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब
जी ने कीरतन सोहिले का पाठ किया।
1528. गुरूद्वारा श्री भाई 'शालो दा टोभा' साहिब जी किस
स्थान पर सुशोभित है ?
हाल बाजार एरिया, जिला श्री अमृतसर साहिब जी
1529. वो कौन थे, जिन्होंने, अमृतसर शहर का सँगठन करने के
लिए व्यापारियों और कारीगरों को लेकर आये और बसाया। जब गुरू जी को पता चला तो वो
बहुत खुश हुये और सारे शाहर की जिम्मेदारी दे दी ?
भाई शालो जी
1530. गुरूद्वारा भाई शालो दा टोभा साहिब जी का क्या इतिहास
है ?
इस स्थान पर एक सरोवर साहिब जी भी है। जब श्री अमृतसर साहिब जी
का निर्माण कार्य चल रहा था, तब भाई शालो जी इस स्थान पर रूके थे। भाई शालो जी का
जन्म 29 सितम्बर 1554 को धौला काँगा गाँव में मालवा प्रदेश में हुआ था। पिता भाई
दिआला जी और माता का नाम माता सुखदेई जी था। परिवार वाले हजरत साखी सरवर को मानते
थे। पर श्री गुरू रामदास जी से मिलने के बाद वो गुरसिक्ख बन गये। भाई शालो जी गुरू
साहिब जी की सेवा और सिमरन में लग गये। अमृत सरोवर का पुर्ननिर्माण : इसके लिए बहुत
सारे ईंधन की भी आवश्यकता थी। भाई साहिब जी ने गाँव-गाँव जाकर धन इक्टठा किया। लागों
ने भी खुले दिल से दान दिया। गुरू जी बहुत खुश हुए और बोले कि जो भी भाई शालो जी के
सरोवर में श्रद्वा से इसनान करेगा, उसके घर पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी और जो
कमजोर बच्चा इसनान करेगा, वो हुष्ट-पुष्ट होगा।
1531. गुरूद्वारा श्री सुक्खा जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?
ग्राम रामदास, जिला श्री अमृतसर साहिब जी
1532. गुरूद्वारा श्री सुक्खा जी साहिब किस गुरू से संबंधित
है ?
छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी
1533. गुरूद्वारा श्री सुक्खा जी साहिब श्री गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी से किस प्रकार संबंधित है ?
जब बाबा बुड्डा जी अपनी सँसार की दिव्य यात्रा पूरी करके
जोती-जोत समा गये, तो श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी उनको अन्तिम विदाई देने के लिए
उनकी शोभा यात्रा में शामिल होने के लिए गये। गुरू जी ने जिस स्थान पर अपना घोड़ा
बाँधा, वहाँ पर गुरूद्वारा श्री सुखा जी साहिब सुशोभित है। फिर गुरू जी नँगे पैर आगे
चले गये।
1534. सिक्ख इतिहास का सबसे पहला सरोवर कौन सा है ?
गुरूद्वारा श्री टाहली (सँतोखसर) साहिब जी
1535. गुरूद्वारा श्री टाहली (संतोखसर) साहिब जी किस स्थान
पर सुशोभित है ?
हाल गेट के पास, जिला श्री अमृतसर साहिब जी
1536. गुरूद्वारा श्री टाहली (सँतोखसर) साहिब जी किस किस गुरू
से संबंधित है ?
चौथे गुरू रामदास जी और पाँचवें गुरू अरजन देव जी
1537. गुरूद्वारा श्री टाहली (सँतोखसर) साहिब जी चौथे गुरू
रामदास जी से किस प्रकार से संबंधित है ?
यहाँ श्री गुरू रामदास जी ने संमत् 1629 बिक्रमी (सन् 1572) में
श्री गोइँदवाल साहिब जी से आकर पहले अमृत सरोवर जी की खुदाई का काम आरम्भ किया था।
1538. गुरूद्वारा श्री टाहली (सँतोखसर) साहिब जी पाँचवें गुरू
अरजन देव जी से किस प्रकार से संबंधित है ?
संमत् 1645 बिक्रमी (सन् 1588) में पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन
देव जी ने सेवा आरम्भ की।
1539. गुरूद्वारा श्री टाहली (सँतोखसर) साहिब जी में जब
पाँचवें गुरू अरजन देव जी अमृत सरोवर की खुदाई का कार्य करवा रहे थे, तब उसमें से
क्या निकला ?
सरोवर की खुदाई में एक मॅठ निकल आया, उसमें एक जोगी समाघी लगाये
बैठा था। जिसका माथा सितारे जैसे चमक रहा था। जब जोगी ने आँखें खोली, तो उसने गुरू
जी के दर्शन किये और उनके चरणों में अपना माथा रखकर विनती की, कि मैं अपने गुरू जी
के हुकुम से काफी समय से बैठा हुआ था। गुरू जी ने ज्ञान देकर उसका उद्वार किया और
उसे सँतोष प्रदान बखशा।
1540. गुरूद्वारा श्री टाहली साहिब जी (सँतोखसर साहिब जी) ,
टाहली साहिब जी के नाम से क्यों प्रसिद्ध है ?
गुरू जी टाहली के नीचे बैठा करते थे, इसलिए इसका नाम गुरूद्वारा
श्री टाहली साहिब जी के नाम से प्रसिद्व है।