1481. गुरूद्वारा श्री दमदमा साहिब जी, गुरू की वडाली कहाँ
स्थित है ?
1482. गुरूद्वारा श्री दमदमा साहिब जी, गुरू की वडाली का
इतिहास क्या है ?
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इस पावन पवित्र स्थान पर पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव
जी ने 6 रेहट चलायी थीं। कुछ समय बाद छठवें गुरू श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब ने
सैकड़ों सिक्खों समेत गुरू की वडाली के दर्शन किये और श्री छेहराटा साहिब में
इसनान किया। गुरू की वडाली की संगतों ने विनती की, कि एक सूअर बहुत तँग करता
है। गुरू जी ने सूअर का शिकार करने के लिए पैंदे खाँ को भेजा। सूअर ने पैंदे
खां के धोड़े को टककर मारी, पैंदे खाँ घोड़े समेत गिर गया। गुरू जी ने हंसकर कहा
कि तेरे से सूअर नहीं मरा, हट पिछे हम इसका शिकार करेंगे। गुरू जी ने सूअर को
ललकारा, सुअर गुरू जी की तरफ आया। गुरू जी ने सूअर के वार को ढाल पर रोककर, उसके
दो टुकड़े कर दिये। सूअर के मुँह में से चमकारें निकलीं। भाई भाना जी के पूछने
पर गुरू जी ने बताया कि आपके पिता, बाबा बुड्डा जी के श्रृद्वावान सिक्ख थे।
उनका उद्वार किया है। माता गँगा जी, बाबा बुड्डा जी से पुत्र पाप्ति का वर लेने
के लिए श्री बीड़ साहिब जी हाथ से उठाकर गयी थी। बाबा जी ने पूछा कि कौन आ रहा
है, तो एक सिक्ख बोला कि गुरू जी की पत्नि माता गँगा जी आ रही हैं। बाबा जी ने
कहा कि गुरू मी पत्नि को कहाँ भागम भाग (भाजड़) पड़ गयी। उस सिक्ख ने कहा कि गुरू
जी की पत्नि आपसे मिलने आ रही हैं और आप कड़वे वचन बोल रहे हो। बाबा जी ने बोला,
हम जाने या गुरू जाने, ये हमारे और गुरू जी का मामला है, तु क्यों सूअर की तरह
घूर-घूर कर रहा है। माता गँगा जी ने सब सुन लिया था, वो वापिस चले गये। गुरू जी
के समझाने पर माता गंगा जी नम्रता के साथ पैदल चलकर श्री बीड़ साहिब समेत बाबा
बुड्डा जी के पास आयी। बाबा जी ने माता गँगा जी को पुत्र पाप्ति का वरदान दिया।
जिस सिक्ख को बाबा जी ने सूअर कहा था, उसने बाबा जी से विनती की, कि आपका वचन
कभी भी खाली नहीं जाता, मेरा उद्वार कब होगा। तब बाबा बुड्डा जी ने कि छठवें
गुरू हरगोबिन्द साहिब जी तेरा उद्वार करेंगे, इसलिए हमने इसका उद्वार किया। इस
स्थान पर एक थड़ा बनाया गया, और नाम गुरूद्वारा श्री दमदमा साहिब जी रखा गया।
गुरू जी ने कहा कि जो भी इस स्थान पर अरदास करेगा, उसकी अरदास पूरी होगी।
1483. गुरूद्वारा श्री लाची बेर साहिब जी, किस स्थान पर
स्थित है ?
1484. गुरूद्वारा श्री लाची बेर साहिब जी, का इतिहास क्या है
?
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संमत् 1634 (सन् 1577) में अमृत सरोवर की सेवा आरम्भ हुयी
थी। पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव जी इस स्थान पर, बेरी के पेड़ के नीचे
विराजमान होते थे। इस स्थान पर भाई शालो जी अमृत सरोवर की सेवा करवाते रहते थे।
संमत् 1797 (सन् 1740) में मस्सा रँघण, जो कि मुगल था, का सिर काटने आये वीर
बहादर भाई मेहताब सिंघ जी मीराँ कोट और भाई सूख्खा सिंघ जी ने अपने घोड़े इस बेरी
से बाँघे थे। बेरी के पेड़ पर छोटे-छोटे इलाइची जैसे बेर लगने के कारण कारण इसका
नाम गुरूद्वारा श्री लाची बेर साहिब जी पड़ गया।
1485. श्री अमृतसर साहिब जी में अमृत सरोवर की खुदाई का
कार्य कब प्रारम्भ हुआ था ?
1486. अमृत सरोवर की खुदाई का कार्य किसने शुरू करवाया था ?
1487. बेरी साहिब के पास बैठकर अमृत सरोवर की खुदाई का कार्य
कौन देखा करता था ?
1488. अमृत सरोवर का कार्य कब पुरा हुआ था ?
1489. अमृत सरोवर का कार्य किसने पुरा करवाया था ?
1490. श्री अमृतसर साहिब जी में गुरूद्वारे साहिब जी का
निर्माण कार्य किसने आरम्भ किया ?
1491. श्री अमृतसर साहिब जी में गुरूद्वारे का निर्माण कार्य
कब पुरा हुआ ?
1492. श्री गुरू अरजन देव जी ने श्री अमृतसर साहिब जी की नीवं
किससे से रखवाई ?
1493. श्री अमृतसर साहिब जी (स्वर्ण मन्दिर) से संबंधित
मुख्य जानकारी क्या है ?
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श्री अमृतसर साहिब (श्री हरिमन्दिर साहिब), अमृतसर शहर के
बीच में स्थित है। यह केवल सिक्खों के लिए ही नहीं बल्कि हर समाज धर्म के लिए
एक मुख्य तीर्थ है। यह सोना लगा होने की वजह से झिलमिलाता रहता है और यह एक
बहुत बड़े सरोवर के बीचों-बीच बना होने के कारण आर्कषण का केन्द्र है। इसके चार
दरवाजे हैं, और चारों वर्ण के लोगों के लिए खुले रहते हैं।
1494. पांचवें गुरू साहिब श्री गुरू अरजन देव महाराज जी ने
श्री सुखमनी साहिब जी की बाणी का उच्चारण किस स्थान पर किया था, जो कि आदि श्री गुरू
ग्रन्थ साहिब जी में राग गउड़ी में अंग 262 से दर्ज है ?
1495. गुरूद्वारा श्री मन्जी साहिब जी का नाम मन्जी साहिब
कैसे पड़ा ?
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इस स्थान पर, बेरी के पेड़ के नीचे एक थड़ा, मन्जी थी, जिस पर
बैठकर श्री गुरू अरजन देव जी ने श्री सुखमनी साहिब जी की बाणी का उच्चारण किया
था, इसलिए इसका नाम गुरूद्वारा श्री मन्जी साहिब रखा गया।
1496. श्री अमृतसर साहिब (स्वर्ण मन्दिर) में जो मंजी साहिब
है, उस स्थान पर श्री गुरू अरजन देव जी ने कौनसी बाणी का उच्चारण किया था ?
1497. गुरूद्वारा श्री नानकसर साहिब जी वेरका, किस स्थान पर
स्थित है ?
1498. गुरूद्वारा श्री नानकसर साहिब जी वेरका, किस गुरू से
संबंधित है और इसका इतिहास क्या है ?
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इस पवित्र स्थान पर श्री गुरू नानक देव जी ने बटाला जाते
समय अपने चरण डाले। गुरू जी एक छोटे तालाब के किनारे पर रूके थे। लोगों ने
आना-जाना प्रारम्भ कर दिया, ताकि गुरू साहिब के आर्शीवाद से उनके रोग दूर हो
जायें। एक माता गुरू साहिब जी के पास आई जिसका बच्चा सूखे रोग से पिड़ित था। गुरू
साहिब ने उस माता को बोला कि अपने बच्चे को इस तालाब (सरोवर) में इसनान कराओ।
सरोवर में इसनान कराने से बच्चा ठीक हो गया। गुरू जी ने कहा कि जो भी बच्चा 5
रविवार इस सरोवर में इसनान करेगा, वो बिलकुल ठीक हो जायेगा। "सुखे हरे कीऐ खिन
माहि"।।
1499. गुरूद्वारा श्री कोठा साहिब जी, पातशाही 9, किस स्थान
पर स्थित है ?
1500. गुरूद्वारा श्री कोठा साहिब जी, पातशाही 9, का इतिहास
क्या है ?
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गुरू जी जब श्री हरिमन्दिर साहिब (श्री अमृतसर साहिब) आये,
तो वहाँ के मसँद ने गेट बन्द कर लिये थे। गुरू जी कुछ समय श्री अमृतसर साहिब से
बाहर रूके, फिर ग्राम वाला में एक पिप्पल के पेड़ के नीचे जा विराजे। संगत में
एक माता हारो जी थी, जिन्होंने गुरू जी से उनकी सेवा करने के लिए प्रार्थना की।
गुरू जी माता हारो के कच्चे घर में 17 दिन तक रहे और जाते समय आर्शीवाद दिया और
कहा– "माईयाँ रब रजाईयाँ"। इस स्थान पर दो गुरूद्वारे साहिब जी सुशोभित हैं।