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1401.'पहरे' बाणी का भाव अर्थ क्या है ?

  • जैसे पहर चुपचाप बीत जाता है, उसी प्रकार ही मानव जीवन भी गुजरता जाता है लेकिन पता तब चलता है जब वक्त गुजर चुका होता है। इस बाणी में जीव को बनजारे के रूप में सम्बोधित किया गया है। बनजारा वह है जो अपनी कमाई को सफल करके लौटे। जो अपनी कमाई को सफल करने में असमर्थ होता है, उसे बनजारा नहीं गिना जाता। यह मनुष्य जीवन भी बनजारे के समान है जहां मनुष्य सामाजिक कार-व्यवहार करता हुआ परमात्मा से जुड़ने के लिए आता है। यह कर्मभूमि असल में 'नाम बीज सुहागा' है। जो रूहें इस सच को जान लेती हैं, वह ईश्वरीय रूप हो जाती है और जो असफल रहती हैं, उनकी भटकन सदा बनी रहती है।

1402. 'अनंदु' किस गुरू की प्रमुख बाणी है ?

  • गुरू अमरदास जी

1403. 'अनंदु' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस शीर्षक से दर्ज है ?

  • 'रामकली महला 3 अनुंद'

1404. 'अनंदु' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में कितने अंग पर दर्ज है ?

  • अंग 917

1405. 'अनंदु' का शाब्दिक अर्थ क्या है ?

  • खुशी या प्रसन्नता

1406. 'अनंदु' साहिब जी की कितनी पउड़ियाँ हैं ?

  • 40 पउड़ियाँ

1407. सिक्ख धर्म परम्परा में 'अनंदु' साहिब जी की बाणी की कितनी पउड़ियों का गायन नियम से प्रत्येक कार्य में किया जाता है ?

  • 6 पउड़ियों का (पहली पाँच व अन्तिम का)

1408. श्री 'अनंदु' साहिब जी का भाव अर्थ क्या है ?

  • इस सारी रचना का भाव आनन्द पर केन्द्रित है। इस बाणी में यह रूपमान किया गया है कि साँसारिक सुखों का आनन्द क्षण-भँगुर है पर असल आनन्द प्रभु से एकसुरता है। प्रभु से एकसुरता के बाद स्थायी आनन्द की प्राप्ति हो जाती है।

1409. 'ओअंकार' बाणी किस गुरू की रचना है ?

  • गुरू नानक देव जी

1410. 'ओअंकार' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस अंग पर दर्ज है ?

  • अंग 929

1411. 'ओअंकार' बाणी किस राग में है ?

  • राग रामकली

1412. 'ओअंकार' बाणी का भाव अर्थ क्या है ?

  • ओअंकार परमात्मा नाम है। सैद्धान्तिक पक्ष से इस बाणी में परमात्मा को वाहिद मालिक दर्शाया है तथा उसके विशाल गुणों का प्रकटाव भी किया है।

1413. 'सिद्ध गोसटि' किसकी रचना है ?

  • श्री गुरू नानक देव साहिब जी की

1414. 'सिद्ध गोसटि' की बाणी श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में किस अंग पर है ?

  • अंग 938

1415. श्री गुरू नानक पातशाह जी की बहुत ही महत्वपूर्ण रचना कौन सी है जो सिक्ख धर्म के सिद्धान्त को सम्पूर्ण रूप में सामने लाती है ?

  • 'सिद्ध गोसटि'

1416. 'गोसटि' से क्या भाव है ?

  • 'गोसटि' का भाव है बातचीत, चर्चा, गोष्ठि या वार्ता और वार्ता भी उत्तम पुरूषों की। वार्तालाप कहने व सुनने की प्रक्रिया है। श्री गुरू नानक पातशाह जी ने इस बाणी द्वारा अंतर-धर्म सँवाद की बुनियाद रखी है।

1417. 'सिद्ध गोसटि' किससे वार्तालाप का विषय है ?

  • बुद्ध धर्म का एक सम्प्रदाय जो आध्यात्मिक बुलँदियों की शिखर पर था लेकिन सामाजिक कार्य-व्यवहार से पूर्णतया विरक्त हो चुका था, 'सिद्ध गोसटि' उन सिद्ध-योगियों से वार्तालाप है। इसमें जहाँ गम्भीर दार्शनिक सँकल्पों का आलेख है, वहीं सामाजिक प्रसँग की स्थापना का भी बहुत ही खूबसूरत ढँग से वर्णन हुआ है और यह भी बताया गया है कि समाज को उत्तम बनाने के लिए उत्तम पुरूषों की आवश्यकता होती है।

1418. 'अंजुलीआ' का क्या भाव है ?

  • विनय

1419. 'अंजुलीआ' बाणी किसकी रचना है ?

  • श्री गुरू अरजन देव साहिब जी

1420. 'अंजुलीआ' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के किस अंग पर है ?

  • अंग 1019

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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