1341. 'सलोक वारां ते वधीक' क्या है ?
1342. 'सलोक वारां ते वधीक' की विषय वस्तु क्या है ?
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इन सलोकों का विषय भिन्न भिन्न है और हर सलोक विषय के पक्ष
में पूर्ण तौर पर स्वतन्त्र है। गुरू साहिब जी ने बेशक इन काव्य रूपों को
माध्यम के रूप में अपनाया पर उन्होंने उन्हें अपना रूप व अपने अर्थ दिए, जिससे
उनका सम्बन्ध केवल काव्य रूप न होकर 'लोगु जानै इहु गीतु है इहु तउ ब्रहम बीचार'
का प्रसँग स्थापित कर गया।
1343. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में 'विशेष शीर्षक बाणियाँ'
कौन सी हैं ?
1344. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी का आरम्भ किस बाणी से होता
है ?
1345. 'जपु' बाणी में कितनी पउड़ियाँ व कितने सलोक हैं ?
1346. 'जपु' बाणी जो एक नितनेम की बाणी है, का केन्द्रीय भाव
क्या है ?
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इस बाणी का केन्द्रीय भाव अकालपुरख (परमात्मा), मनुष्य एँव
समाज है। मनुष्य को प्रभु के घर का वासी बनाने हित भाव 'सचिआर' पद की प्राप्ति
के लिए उसका मार्ग निर्देशन किया गया है। इस अवस्था की प्राप्ति के लिए जहां
सुनने, मानने व पँच का राह दर्शाया है, वहाँ साथ ही पाँच खण्डों द्वारा
अध्यात्मिक प्राप्ति के शिखर को रूपमान किया गया है।
1347. 'जपु' बाणी किसके द्वारा रचित है ?
1348. 'सो दरु' का शब्द, श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में कितनी
बार अंकित किया गया है ?
1349. 'सो दरु' की बाणी का मूल भाव क्या है ?
1350. 'सो पुरखु' बाणी से क्या भाव है ?
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'सो पुरखु' से भाव 'परमेश्वर' है क्योंकि वह ही सबसे बड़ा व
'उत्तम पुरख' है, जो स्वतँत्र, शक्तिमान, सृजनहार व सदीवी है।
1351. 'सो पुरखु' बाणी में कितने पदों की रचना है ?
1352. 'सोहिला' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस अंग
पर दर्ज है ?
1353. 'सोहिला' का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
1354. 'सोहिला' जो कि 'नितनेम' की बाणी है, में किस किस गुरू
साहिबान की बाणी है ?
1355. 'सोहिला' बाणी का भाव अर्थ क्या है ?
1356. 'वणजारा' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस अंग
पर अंकित है ?
1357. 'वणजारा' बाणी किस गुरू की बाणी है ?
1358. 'वणजारा' बाणी का भाव अर्थ क्या है ?
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इस रचना में मनुष्य का आगमन 'बनजारे' के रूप में कल्पित किया
गया है। यहाँ मनुष्य उसी प्रकार धर्म कमाने आता है जैसे 'बनजारा' अपने माल को
बेचने के लिए कोशिशें करता है। अगर सच का व्यापारी बनकर, सच का व्यापार करके
जीव यहाँ से जाएगा तो परमात्मा के राह की सभी भ्राँतियां समाप्त हो जाएँगी,
जिन्दगी उल्लासमय बन जाएगी तथा वह अलौकिक गुणों का धारणी होकर सफल 'बनजारे' के
रूप में 'नाम धन' का व्यापारी हो जाएगा।
1359. 'करहले' बाणी श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस अंग
पर अंकित है ?
1360. 'करहले' बाणी किस बाणीकार की रचना है ?