1301. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब में श्री गुरू अरजन देव जी की
कितनी 'वारें' हैं और किस किस राग में हैं ?
1302. किन दो "वारों" के अलावा अन्य हरेक "वार" की पउड़ियों
के साथ गुरू साहिबान के सलोक भी दर्ज हैं ?
1303. श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में 'मंगल' का प्रयोग शीर्षक
के रूप में कितनी बार किया गया है ?
1304. 'मंगल' के शाब्दिक अर्थ क्या हैं ?
1305. 'थिती व थिंती' क्या है ?
1306. श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में श्री गुरू नानक पातशाह व
श्री गुरू अरजन देव जी की 'थिती' रचनाओं का मूल भाव क्या है ?
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इन दोनों रचनाओं का मूल भाव भारतीय परम्परा के लोगों को 'थित-वारों'
की उलझन से बाहर निकालना और शुभ का ज्ञान कराना था। गुरू साहिब ने भ्रम के
मुकाबले भक्ति, ज्ञान, सेवा व सिमरन का उपदेश दिया और हर समय को पवित्र स्वीकार
किया।
1307. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में एक रचना 'थिंती' है जो
गउड़ी राग में दर्ज है, किस भक्त की है ?
1308. भक्त कबीर जी की रचना 'थिंती' का मूल भाव क्या है ?
1309. 'दिन-रैनि' को श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में किस
प्रकार दर्शाया गया है और किस गुरू साहिबान की रचना है ?
1310. 'वार' सत क्या है ?
1311. सँस्कृत में 'वार सत' को किस रूप में लिया जाता है ?
1312. अध्यात्मिक महापुरूषों द्वारा 'सतवार' को क्या माध्यम
बनाया गया है ?
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'अध्यात्मिक महापुरूषों' द्वारा इस 'सतवारे' को अपने भीतर
की प्यास के प्रकटाव का माध्यम बनाया गया है। इसके द्वारा 'इश्क-हकीकी' का
वर्णन करने की कोशिश की हैं पर साथ में यह भी स्वीकार करते हैं कि इस ईश्वरीय
प्यार को वे शब्दों में ब्यान करने में असमर्थ हैं क्योंकि इश्क-खुदाई महसूस
करना है, ब्यान करना नहीं।
1313. श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में 'वार सत' नाम की कितनी
रचनाएँ हैं ?
1314. श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी में वार सत की रचनाओं का मूल
भाव क्या है ?
1315. 'रुती' से क्या भाव है ?
1316. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में 'रूती' का प्रयोग किस गुरू
साहिबान जी ने किया है ?
1317. 'बारह' माहा क्या है ?
1318. 'पटी' का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
1319. 'पटी' काव्य रूप के अन्तर्गत श्री गुरू ग्रन्थ साहिब
जी में कितनी रचनाएँ हैं, व किस राग में हैं और किन गुरू साहिबानों की रचना है ?
1320. 'पटी' रचना का विषय किन सिद्धान्तों से जुड़ा हुआ है ?