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6. चेले रविदास जी से शिक्षा लेनी

जब भक्त रविदास जी को पूर्ण ब्रहम ज्ञान हो गया तो उन्होंने मूर्ति पूजा आदि बन्द कर दी और अन्य लोगों को भी मूर्ति पूजा करने से रोकते और केवल राम नाम जपने के लिए कहते थे। कुछ ब्राहम्ण मिलकर स्वामी रामानँद जी के पास गए और कहने लगे कि स्वामी रामानँद जी ! आपके चेले भक्त रविदास जी ने कंठियाँ, जनेऊ आदि उतारकर और ठाकुर की मूर्ति को पानी में बहा दिया है वह आप भी मूर्ति पूजा नहीं करता और अपने चेले और शिष्यों को भी ऐसा करने के रोकता है। जो कोई भी एक बार भक्त रविदास जी का उपदेश सुन लेता है वो मन्दिर, मस्जिद में कभी भी नहीं जाता। आप भक्त रविदास जी को बुलाकर इस बात का कारण पूछें।

रामानँद जी का भक्त रविदास जी के घर पर जाना
स्वामी रामानँद जी ने अपने शिष्य भक्त रविदास जी की परख करने के लिए ठाकुर की पूजा का सामान तैयार करवाकर साथ ले लिया और चेलों व ब्राहम्णों समेत भक्त रविदास जी के घर पर आ गए और ठाकुर पूजा के लिए मन्दिर की तरफ जाने के लिए भक्त रविदास जी को आवाज दी। भक्त रविदास जी गुरू जी की आवाज सुनकर बाहर आए और उनके चरणों में गिर पड़े। जब भक्त रविदास जी ने पूजा का सामान देखा तो राग गूजरी में बाणी गायन की:

दूधु त बछरै थनहु बिटारिओ ॥
फूलु भवरि जलु मीनि बिगारिओ ॥१॥
माई गोबिंद पूजा कहा लै चरावउ ॥
अवरु न फूलु अनूपु न पावउ ॥१॥ रहाउ ॥
मैलागर बेर्हे है भुइअंगा ॥
बिखु अम्रितु बसहि इक संगा ॥२॥
धूप दीप नईबेदहि बासा ॥
कैसे पूज करहि तेरी दासा ॥३॥
तनु मनु अरपउ पूज चरावउ ॥
गुर परसादि निरंजनु पावउ ॥४॥
पूजा अरचा आहि न तोरी ॥
कहि रविदास कवन गति मोरी ॥५॥१॥ अंग 525

अर्थ– "(हे गुरूदेव ! दास जी विनती सुनो ! बछड़े ने गाय के थनों को मुँह में लेकर दुध को जूठा कर दिया है। फूल को भौरों ने सुँघकर और पानी को मछली ने बिगाड़ दिया है। ठाकुर के लिए साफ और सुच्ची चीजें कहाँ से लेकर चढ़ाऊँ। चन्दन के वृक्ष को साँपों ने खराब कर दिया है, अगर अमृत कहो तो समुद्र में अमृत और जहर एक ही जगह इक्टठे होकर बिगड़े हुए हैं। धूप धूखाँनी और जोत जलानी सुगँघियाँ आदि सब ही बिगड़ी हुई हैं। इसलिए जूठी चीजों से दास तेरी पूजा किस प्रकार से करे। मैंने अपना तन-मन अर्पित करके पूजा के लिए चड़ा दिया है। हे गुरूदेव ! आपकी कृपा से माया से रहित परमात्मा को पा लिया है और अब पूजा की जरूरत नहीं है। तन-मन अर्पित करन के अलावा और किसी भी प्रकार से तेरी पूजा नहीं हो सकती यानि उसका नाम जपना ही उसकी पूजा है। हे परमात्मा ! रविदास आपकी शरण में गिरा है, अब आप ही बताओ कि मेरी गती होने का इससे अच्छा साधन और कौनसा है। इन फोकट कर्मों (थाल सजाकर मूर्ति की पूजा करना, भोग लगाना) से मैं आपको किस प्रकार से खुश कर सकता हूँ।)" sश्री रविदास जी की इस प्रकार की आत्मिक दशा देखकर रामानँद जी हैरान हो गए और प्यार भरी गोष्टि करके अपने डेरे पर वापिस आ गए और ठाकुरों की यानि मूर्ति की पूजा करना बन्द कर दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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