SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

4. चेले कबीर जी से शिक्षा लेनी

स्वामी रामानँद जी एक ऐसे गुरू हुए हैं कि उनके दो चेले तो उनसे आगे ही रहते थे, जब ऐसा हो जाए तो कहा जा सकता है कि गुरू गुड़ हो गया और चेला शक्कर हो गया। ऐसी ही एक घटना का जिक्र हम यहाँ पर करने जा रहे हैं, जिसमें गुरू ने अपने चेले से शिक्षा ग्रहण की और इस शिक्षा के ग्रहण करते ही उन्होंने वह कार्य करने बन्द कर दिए, जिनसे वास्तव में समय नष्ट और धन बर्बाद करने के अलावा कुछ भी प्राप्त नहीं होताः

श्री रामानँद जी अपने गुरू का श्राद्ध साल के साल जरूर किया करते थे। एक बार उन्होंने श्राद्ध करने का फैसला किया तो सारे चेलों को आज्ञा दी कि आसपास के गाँवों में जाकर दुध ले आओ। आज्ञा पाकर सब चेले गाँवों की और चल दिए और कबीर जी को भी जाना पड़ा। परन्तु वह किसी गाँव में नहीं गये। डेरे से थोड़ी दूर पर एक गाय मरी पड़ी थी। कबीर जी ने उसका मुर्दा उठाकर एक पेड़ से साथ खड़ा किया और नीचे कमण्डल रखकर दुध निकालने का यत्न करने लगे। बाकी के चेले दुध लेकर वापिस आ गए पर कबीर जी अपने उसी कार्य में मग्न थे। एक सेवक ने आकर खबर की कि कबीर जी मूर्दा गाय के थनों से दुध निकालने का यत्न कर रहे हैं। श्री रामानँद जी सभी चेलों को लेकर वहाँ पर पहुँचे और कबीर जी से पूछा: कबीर! क्या कर रहे हो ? कबीर जी ने जवाब दिया: गुरूदेव ! आपके आदेश अनुसार दुध ले रहा हूँ। श्री रामानंद जी ने कहा: भला कभी मूर्दा गाय भी दुध देती हैं ? कबीर जी: गुरूदेव जी ! जब हमारे पित्तर खीर खा सकते हैं तो फिर यह मर हुई गाय दुध क्यों नहीं दे सकती। यह एक जबरदस्त व्यँग्य था जो उन्होंने एक चेला होते हुए भी अपने गुरू पर किया था। इसका तात्पर्य यह है कि जो मर जाते हैं, हम उनका श्राद्ध क्यों करते हैं, जबकि वो तो मर चुके हैं, यह सब बकवास के फोकट कर्म हैं, जिनसे केवल समय और पैसा नष्ट होता है।

कबीर जी ने बाणी कहीः

जीवत पितर न मानै कोऊ मूएं सिराध कराही ॥

पितर भी बपुरे कहु किउ पावहि कऊआ कूकर खाही ॥१॥

मो कउ कुसलु बतावहु कोई ॥

कुसलु कुसलु करते जगु बिनसै कुसलु भी कैसे होई ॥१॥ रहाउ ॥

माटी के करि देवी देवा तिसु आगै जीउ देही ॥

ऐसे पितर तुमारे कहीअहि आपन कहिआ न लेही ॥२॥

सरजीउ काटहि निरजीउ पूजहि अंत काल कउ भारी ॥

राम नाम की गति नही जानी भै डूबे संसारी ॥३॥

देवी देवा पूजहि डोलहि पारब्रह्मु नही जाना ॥

कहत कबीर अकुलु नही चेतिआ बिखिआ सिउ लपटाना ॥४॥ अंग 332

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.