8. डाकुओं का पाप
जगन्नाथपुरी से केंदल आने के लिए राजा लक्ष्मण सैन के राज्य में से गुजरना पड़ता था।
जब अत्याधिक धन लेकर जैदेव जी राजा लक्ष्मण सैन जी के राज्य में से गुजर रहे थे तो
डाकू उनका पीछा करने लगे। रास्ते में जंगल और अंधा कुआं आया। उसके पास आकर डाकुओं
ने जैदेव जी से अनुरोध किया कि वह अपना सब कुछ उनके समक्ष रख दें। जैदेव जी ने सारा
धन धरती पर रख दिया। जैदेव जी ने शांत मन से कहा कि भक्त जनों ! इसके अतिरिक्त मेरे
पास कुछ नहीं। परन्तु वह डाकू बहुत कठोर थे। वह पुरूषों को गाजर मूली की भांति काटने
से कदापि संकोच न करते। उन्होंने जैदेव जी की दोनों बाजू काटकर उन्हें कूएं में
फेंक दिया और स्वयं धन एकत्रित करके अपने मार्ग चल पड़े। जैदेव जी पदमा का स्मरण करने
लगे। राजा लक्ष्मण सैन का मिलना: राजा लक्ष्मण सैन उधर ही शिकार खेलने आया था। वह
उसी कुएं के समीप आ गया। अंधे कुएं में से राधे श्याम ! राधे श्याम ! की ध्वनि
सुनकर वह कुछ अचंभित हुआ। यह सुनकर राजा के सेवकों ने कुएं में आवाज लगाकर पूछाः ऐ
राधे श्याम का सुमिरन करने वाले, तूं कौन है ? कुएं में से आवाज आईः मैं जैदेव
ब्राहम्ण हूँ। कृप्या कोई डोल कुएं में गिराओ क्योंकि मेरे हाथ कुछ ईश्वर के बंदों
ने काट दिए हैं। डोल गिराया गया और उसके आसरे जैदेव जी बाहर आ गए। राजा ने उन्हें
पहचान लिया कि वह गीत गोबिंद के कर्ता जैदेव हैं क्योंकि जैदेव जी राजा के पास पहले
रह चुके थे। राजा ने कहाः ऐ प्रभु भक्त ! यह विचित्र घटना कैसे घटी ? जैदेव जी ने
उन्हें सारी घटना विस्तार से सुनाई। सारी घटना सुनकर राजा उल्लासित भी हुआ उदास भी।
उदास इसलिए कि बिना हाथों के वह महान कवि लिखेगा कैसे ? जैदेव जी ने केंदल जाने की
इच्छा प्रकट की जहां उनकी पत्नी उनकी प्रतीक्षा कर रही होगी। पर राजा ने उनकी गंभीर
अवस्था देखते हुए एक न सुनी और उन्हें अपनी राजधानी की और प्रस्थानित करवा दिया।
बाजुओं के जख्म स्वस्थ होने तक जैदेव जी ने राजा के पास रहना स्वीकार किया।