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5. पदमावती से विवाह

जै देव जी जगन्नाथपुरी पहुँच गए। वह प्रेम दीवाने सदा ही श्री कृष्ण जी का जस गाते रहते। वह पुरखोतम खेत्रपुरी में पहुँचे। किसी मन्दिर या किसी मकान में रहने के विपरीत वह किसी वृक्ष के नीचे रहते। जल एवं भोजन की भी चिंता न करते। उनके भोजन एवं जल का ध्यान प्रभु स्वयं रखते। किसी न किसी अन्य पुरूष को प्रेरित कर उनके पास भेज देते जो उन्हें भोजन खिला देता। एक दिन वह शाही पथ पर बैठकर भजन बदंगी कर रहे थे। उनका भजन सुनने के लिए राह चलते यात्री भी रूकने लगे। कई तो इतना खो गए कि समय का आभास न रहा। एक सुदेव नाम का ब्राहम्ण था जा अपने शहर, जगन्नाथपुरी लौट रहा था। वह भजन सुनने की इच्छा से बैठ गया। वह अति प्रसन्न हुआ और देर रात्रि तक भजन सुनने में लीन रहा। फिर वह घर गया और वहाँ से जैदेव जी के लिए प्रसाद लेकर लौटा। प्रसाद भेंट करते हुए उसने विनती की कि प्रातः काल का भोजन भी वही लाएगा। जैसे ईश्वर की इच्छा, जैदेव जी ने उत्तर दिया। ब्राहम्ण घर चला गया परन्तु सारी रात उसे नींद न आई। जैदेव जी के गायन किए हुए मीठे भजन उसके कानों में गूँजते रहे। जैदेव की जवान, सुन्दर तथा मनमोहिनी सूरत उसकी आँखों में थी। वह मन की मन जैदेव जी को अपना दामाद दामाद बना चुका था। उसे संदेह था कि कहीं सूर्य उदय से पहले जैदेव किसी अन्य स्थान पर प्रस्थान न कर जाए। वह समस्त रात्रि ईश्वर से विनती करता रहा कि जैदेव जी को कहीं भी जाने से रोके रखें। दिन होते ही उसने भोजन तैयार करवाया और जैदेव जी को मिलने के लिए चल पड़ा। पर वह अकेला न गया, अपनी पुत्री पदमा को भी ले गया। पदमा सत्रह (17) साल की अति सुन्दर कन्या थी। उसके जैसी सुशील और योग्य लड़की सारी जगन्नाथपुरी में न थी। जब सुदेव अपनी पुत्री को लेकर पहुँचा तो जैदेव जी कृष्ण भक्ति में लीन थे। वह कृष्ण बंदगी के गीत गा रहे थे और उनकी मीठी आवाज पत्थरों को भी पिघला रही थी। पुरूष तो क्या पक्षी भी मुग्ध हो रहे थे। सुदेव ने भोजन जैदेव जी के समक्ष रखा और माथा टेककर बैठ गया। पदमा भी पास ही बैठ गई। जब भजन की समाप्ति हुई तो सुदेव ने उन्हें भोजन ग्रहण करने की प्रार्थना की। वह प्रसन्न होकर भोजन ग्रहण करने लगे और पदमा उनके भरे हुए चेहरे की ओर देखती रही। महाराज ! एक और विनती हैः सुदेव ने उस समय कहा जब जैदेव जी भोजन ग्रहण कर चुके थे।

जैदेव जी ने कहा: वह क्या, ऐ भक्त ? सुदेवः यह मेरी कन्या पदमावती है। इसे अपने चरणों की दासी बना लिजिए। मैं दिल में संकल्प कर चुका हूँ, इससे विवाह कर लीजिए।  जैदेव जीः मैं वैरागी हूँ। मेरा कोई घर नहीं, स्थान नहीं। आज यहाँ तो कल वहाँ। दिल पारस की भांति बेचैन है, भक्ति के अलावा कोई कार्य स्वीकार नहीं। प्रभु की स्तुति गायन करते हुए सारा दिन व्यतीत कर लेता हूँ। मैं तुम्हारी पुत्री पदमा को किस प्रकार स्वीकार कर सकता हूँ ? यह कन्या फूलों की सेज पर सोने वाली है। मैं वैरागी कठोर धरती पर सोना वाला। मेरे साथ यह कैसे गुजर-बसर करेगी ? जगत के सुखों से मेरी प्रीत नहीं, मुझे क्षमा कीजिए। सुदेवः इस कन्या के जन्म के समय मैंने संकल्प किया था कि लड़की किसी प्रभु भक्त को सौंप दूँगा। इसलिए प्रभु ने मेरी मुराद पूरी की है। मैं दिल से कन्या दान कर चुका हूँ। इसलिए अब से यह आप के पास रहेगी। घर प्रतिगमन नहीं करेगी। यह कहकर सुदेव घर की ओर प्रस्थान कर गया। परन्तु पदमावती को वहीं छोड़ गया। जैदेव अचम्भित थे कि प्रभु क्या लीला कर रहा है। उन्होंने पदमावती से कहाः देवी ! तूं घर नहीं गई ? पदमावती ने कहाः जिधर आप जाओगे, मैं भी वहीं जाऊँगी। मैं मन ही मन आप को अपना पति मान चुकी हूँ। अब स्वामी को छोड़कर कहाँ जाऊँ ? स्त्री का धर्म नहीं कि पति को छोड़कर दूर रहे। जैदेव जीः परन्तु मैं साधू हूँ। पदमावतीः साधू रहो, प्रभु भक्ति करो। मैं आपकी भक्ति करूँगी। दोनों का कल्याण होगा। पदमावती के प्रेम और धैर्य को देखकर जैदेव जी ठुकरा न सके। उन्हें उसके स्वीकारना पड़ा और उनका विवाह हो गया।

अपने नगर आना

श्री जैदेव जी अब एकाकी न रहे। स्त्री के साथ रहते हुए पुरूष को कई जिम्मेदारियों का आभास हो जाता है। जैदेव जी ने अब वनों, वृक्षों और एकांतवास में रहना छोड़ दिया। उसने अब मन्दिरों में लोगों की संगति में रहना शुरू कर दिया। पदमावती बहुत भरोसे, सँयम और प्यार वाली थी। वह रात दिन जैदेव जी की सेवा करती रहती। सेवा का परिणाम यह हुआ कि जैदेव उससे उसी प्रकार से स्नेह रखने लगे जिस प्रकार कृष्ण राधा से रखते थे। दोनों ने विमर्श किया कि वापिस नगर की ओर प्रस्थान कर जाएं और वहाँ घर में बैठकर भक्ति करें। यह विचार निश्चित हो गया। राह में रूकते हुए वह केंदल आ गए। वहाँ के लोग बहुत प्रसन्न हुए। सबसे अधिक प्रसन्नता जैदेव के प्रथम भक्त निरंजन को हुई जो सचमुच ही निरंजन बन चुका था। धोखे, माया, लालच और पाप कर्म की एक कौड़ी भी उसके पास न रही। उसने आते ही जैदेव का घर उन्हें सौंप दिया। जैदेव भी अपने घर में सुख से रहने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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