10. पदमावती का मरना एंव जीवित होना
जब जैदेव जी के हाथ पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए तो राजा ने उन्हें अपना गुरू मान लिया।
उसने अपने सेवक भेजकर पदमावती को भी पूर्ण आदर और सत्कार से बुलवा लिया। दोनों के
लिए सुन्दर निवास स्थापित किया गया। दोनों शाही सत्कार से रहने लगे। पदामावती अति
सुन्दर थी। वह जैदेव जी को परमेश्वर का रूप जानकर पूजती थी। किसी अन्य पुरूष को वह
भाई या बाप समझती थी। राजा लक्ष्मण सैन की एक रानी थी। उसने पदमा को परखने के लिए
एक खेल रचा। उसने किसी प्रकार राजा को मना लिया कि वह कुछ दिन के लिए जैदेव जी को
शहर से बाहर ले जाएं। फिर पदमावती को जैदेव की मृत्यु का समाचार सुनाया जाए और देखा
जाए कि उसके मन पर क्या बीतती है। एक दिन बातों बातों में पदमा ने रानी से कह दिया
था कि सती पतिव्रता पत्नी वह है जो पति की मृत्यु का समाचार सुनते ही प्राण त्याग
दे। रानी को यह बात खा रही थी। एक दिन राजा जैदेव जी को लेकर शिकार खेलने गया। दुसरे
दिन लक्ष्मण सैन की रानी ने पदमावती के महल में रोते हुए प्रवेश किया। पदमावती ने
आगे बढ़कर पूछाः रानी जी आपको क्या दुख है ? रानी ने झिझक प्रकट करते हुए कहाः
पदमावती ! क्या बताऊँ ? तेरे पति जैदेव जी को शेर खा गया। अभी अभी घुड़सवार यह
समाचार लेकर आया है। रानी की बात अभी पूर्ण भी नहीं हुई थी कि राधे श्याम कहते हुए
पदमावती ने प्राण त्याग दिए। पदमावती ने धर्मराज के दरबार में जाकर पूछाः हे प्रभु
! गीत गोबिंद का रचनाकार मेरा पति जैदेव कहाँ है ? धर्मराज ने उत्तर दियाः पुत्री !
तेरा पति अभी मृत्यु लोक से नहीं आया। तुझे किसी ने भ्रमित कर दिया है। पदमावती
बहुत हैरान हुई कि किस प्रकार उसे केवल परखने के लिए रानी ने झूठ बोला है। इतने में
जैदेव और राजा लौट आए। पदमावती के प्राण त्यागने का समाचान सुनने के पश्चात राजा
बहुत क्रोधित हुआ और रानी को चेतावनी दी कि उसने यह बहुत बुरा कार्य किया है। रानी
को अपने कुकर्म का पश्चाताप हुआ। राजा और रानी दोनों जैदेव जी के पास क्षमा माँगने
गए। हौंसले वाले जैदेव जी मुस्कुराए और बोले कि राजन चिंता न करो। मुझे विश्वास है
कि जब मैं उसे स्वर्ग में न मिला तो अंत में वह धरती पर लौट आएगी। वह मुझसे दूर नहीं
हो सकती। जैदेव जी उसके मृत शरीर को गोद में लेकर बैठे थे कि उसमें कंपन हुआ और
पदमावती की आत्मा ने फिर प्रवेश किया। उसकी आँखें खुलीं और उस समय जैदेव जी ने शीतल
जल उसके मुख में डाला। साथ ही पाँच बार राधे श्याम कहा। राधे श्याम कहकर पदमावती जी
उठकर बैठ गई। रानी ने पदमावती से अपनी भूल की क्षमा माँगी।