37. जोती जोत समाना
अपने जीवन का अंत समीप आया देखकर फरीद जी ने मौत के विषय में बाणी उचारी और लोगों
को समझायाः
साढै त्रै मण देहुरी चलै पाणी अंनि ।।
आइओ बंदा दुनी विचि वति आसूणी बंन्हि ।।
मलकल मउत जां आवसी सभ दरवाजे भंनि ।।
तिन्हा पिआरिआ भाईआं अगै दिता बंन्हि
वेखहु बंदा चलिआ चहु जणिआ दै कंन्हि ।।
फरीदा अमल जि कीते दुनी विचि दरगह आए कंमि ।।100।। अंग 1383
मौत का यह समय फरीद जी पर भी आया। आपकी उम्र 93 वर्ष की हो चुकी
थी, शरीर कमजोर हो गया था, उठकर चलना भी दूभर हो गया था। अंत में 7 मई 1266 ईस्वी
को इशा की निमाज पढ़ने के पश्चात बेहोश होकर गिर गए। आपको होश में लाने का यत्न किया
गया पर “सा हैई या कयूम“ (मैं अमर हूँ) कहकर दम तोड़ दिया। पवित्र रूह अपने प्यारे
मालिक की ओर चली गई, पाँच भूतक शरीर घरती के ऊपर रह गया। फरीद जी के पुत्र शेख
निमाज-उ-दीन की इच्छा अनुसार उन्हें घर में ही दफनाया गया। सेवकों ने मजार कायम किया।
परन्तु फीरोजशाह तुगलक बादशाह ने ही इनकी असली इमारत तैयार करवाई।