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35. बूढ़ा हुआ शेख फरीद

परमात्मा ने मनुष्य के जन्म के समय ही उसकी उम्र तय की होती है। बचपन, किशोरावस्था और जवानी इसके पहले तीन चरण हैं, चौथे चरण में बुढ़ापा आता है। किस घड़ी और किस पल यह खत्म हो जाएगी, इसका भेद अब तक कोई मनुष्य नहीं पा सका। शरीर के रोगों और कमजोरी दूर करने के लिए दवाइयाँ इजात कर मनुष्य उम्र को लम्बी जरूर कर पाया है पर फिर भी इसका अंत तो निश्चित है।

फरीदा रब खजूरी पकीआं माखिअ नई वहंनि ।।
जो जो वंञैं डीहड़ा सा उमर हथ पवंन्हि ।।89।।  अंग 1382

अर्थ: जो दिन बीत गया वह उम्र में से कम हो गया। फरीद जी बुढ़ापे के आगमन को अनुभव करते हुए कहते हैं कि:

चबण चलण रतंन से सुणीअर बहि गए ।।
हेड़े मुती धाह से जानी चलि गए ।।77।।  अंग 1381

अर्थ: हे भाई ! बुढ़ापे की यही निशानी है कि दाँत कोई न रहे, पैरों में चलने की शक्ति न रहे, आँखों में नजर कमजोर हो जाए और कान न सुनें। आज शरीर रोता है कि यही मेरे मित्र थे जिनके सहारे चलता था पर वही साथ छोड़ गए। उस ईश्वर की लीला, यह तो सबके साथ ही होता है–

फरीदा मै जानिआ दुखु मुझ कू दुखु सबाइऐ जगि ।।
ऊचे चड़ि कै देखिआ तां घरि घरि एहा अगि ।।81।। अंग 1382

अर्थ: मैंने समझा इस बुढ़ापे का दुख केवल मुझे ही है। पर जब छत पर चढ़कर यानि उच्च विचार से देखा तो पता चला कि घर-घर में यही आग, यही दुख है। भाव यह है कि हर कोई बुढ़ा होकर चारपाई का सहारा लेता है। जो पैदा हुआ है उसे मरना ही है।

बुढा होआ सेख फरीदु कंबणि लगी देह ।।
जे सउ वर्हिआ जीवणा भी तनु होसी खेह ।।41।।  अंग 1380

अर्थ: शेख फरीद जी अपने आपको सम्बोधित करके कहते हैं कि बुढ़ापा आ गया और शरीर काँपने लगा। यह सच्चाई है कि चाहे मनुष्य सौ वर्ष भी जी ले अंत में उसे मरकर मिट्टी में ही मिल जाना है। मरना सत्य है। बुढ़ापा आना अनिवार्य है।

फरीदा इनी निकी जंघीऐ थल डूंगर भविओम्हि ।।
अहु फरीदै कूजड़ा सै कोहां थीओमि ।।20।। अंग 1378

अर्थ: मैंने इन टाँगों से दूर-दूर के जँगल भ्रमण कर लिए, कौसों पैदल चला। यह टाँगे फिर भी न थकी। पर कुदरत के रँग देखो कि आज पास पड़ा हुआ लोटा भी ऐसे प्रतीत होता है जैसे सौ मील दूर हो। इतनी हिम्मत भी नहीं कि उठकर आप उसे पकड़ लूँ। बुढ़ापे की कमजोरी के कारण कोई कार्य नहीं होता, बस सारी रात लेटे ही रहना पड़ता है और पसलियाँ दुखने लगती हैं। अपना पूरा आसरा न होने का दुख है।

फरीदा राती वडीआं धुखि धुखि उठनि पास ।।
ध्रिगु तिन्हा का जीविआ जिन्हा विडाणी आस ।।21।।  अंग 1378, 1379

वह लोग जो किसी के सहारे जीते हैं उनका जीवन धिक्कार रूप है। मनुष्य अपने बल से ही चलता है, सो ठीक है। फरीद जी ने बुढ़ापे में कष्ट देखे, गरीबी भी देखी पर आत्मा की पवित्रता और परमात्मा पर पूर्ण विश्वास के कारण उन्हें कोई कष्ट अनुभव नहीं हुआ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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