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34. बाबा शेख फरीद जी की याद

पँजाब की रियासत फरीदकोट है जो कि आजकल पँजाब का जिला है। यह दो सौ साल से ही सिक्ख रियासत रही है। इससे पहले भी रियासत थी, कभी हिन्दू राजे और कभी मुस्लमान नवाब। फरीद जी सिरसा से मुलतान के इलाके दरिया रावी के पार पाकपटन के इलाके की ओर जा रहे थे। पँजाब के दक्षिणी भाग में से गुजरते हुए फरीदकोट में से जा रहे थे कि उन्हें अन्य फकीरों के साथ घेर लिया गया। उस समय फरीदकोट में किला बन रहा था और उसमें मिट्टी डाली जानी थी। फरीद जी और बाकी फकीरों को टोकरियाँ पकड़ाकर मिट्टी उठाने पर लगा दिया गया। फरीद जी, अल्लाह का रूप, पहुँच हुए फकीर थे। पर राजमति से पागल हुए लोग फकीरों में भेद नहीं जानते, वे तो राज के नशे में चूर रहते हैं। हुक्म, हुक्म, केवल हुक्म देना जानते हैं। एक रब्बी ज्ञान वाला मनुष्य भी मजदूरी में लगा था। उसने देखा कि फरीद जी के सिर पर जो टोकरी है वह अपने आप चले जा रही है यानि कि सिर और टोकरी के बीच में खाली जगह थी। पर यह कोई न देख पाया। “मौला तेरे चोज“ यह कहकर मनुष्य मुस्करा पड़ा। सभी लोगों से काम करवाने वाला अफसर हत्यारा और बेरहम था। उसके हाथ में एक डण्डा था, जो धीरे-धीरे चलते उन्हें मारकर तेज चलने का आदेश देता। पर अपने भक्तों की रक्षा परमात्मा स्वयँ ही करता है। जैसे ही अफसर ने डण्डा मारने के लिए हाथ ऊपर उठाया उसका हाथ काँपने लगा। किले की ऊँची दीवार टूटकर एक ओर गिर पड़ी। जितनी मिट्टी डाली थी वह सब दूर तक बिखर गई। छोटी ईंटें सब मिट्टी के नीचे आ गईं पर किसी को जान का नुकसान नहीं हुआ। दीवार गिरने पर किला तैयार करने वाला हाकिम वहाँ पहुँचा। सूझ वाला और रब्बी ज्ञान रखने वाला आदमी आगे बढ़कर हाकिम के पास आया। वह आदमी हाकिम से बोला: जनाब जी ! आप समय और मौके के हाकिम हो। चाहे जितना भी प्रयत्न कर लो किला पूरा नहीं हो पाएगा। हाकिम बोला: महाश्य ! क्यों नही हो पाएगा ? आदमी बोला: जनाब जी ! आपके आदमी तो, मनुष्य की पहचान नहीं करते। वह अहँकार में अँधे और बहरे हो चुके हैं। हाकिम बोला: महाश्य ! आप कौन हैं ऐसे बोलने वाले ? आदमी बोला: जनाब ! मैं वो हूँ जिसने मौत को याद रखा है। पर आपके करिंदों ने मौत भूला दी है। सदैव जीने के झूठै भ्रम में जी रहे हैं। आदमी ने कहा: जनाब ! उस मनुष्य (फरीद जी) की तरफ देखो, सिर से टोकरी कितनी ऊपर है, सिर और टोकरी के बीच में कितनी जगह है। खुदा आप ही अपने प्यारों की लाज रखता है। विरोधियों को नष्ट करता है। उस समय ऐसा चमत्कार हुआ कि हाकिम को भी टोकरी किसी अज्ञात शक्ति के बल पर चलती दिखाई दी। वह न आगे सरकती थी न पीछे, न ऊपर न नीचे। फरीद जी अपनी मौज में चले जा रहे थे। हाकिम का तन काँपने लगा। जैसे ही फरीद जी टोकरी फेंककर लौटे, हाकिम उनके चरणों में गिर पड़ा और उनके पैर पकड़ लिए। हाकिम ने कहा: खुदा के प्यारे ! मेरी भूल क्षमा करो। मैं अहँकारी, पापी हूँ। मुझ पर कृपा करो। टोकरी फेंक दीजिए, आप परमात्मा के प्यारे हो। फरीद जी मुस्कराकर बोले: साँईं ! जिस भूल का ज्ञान हो जाए और वह आगे सँभलकर चले, वह भूला नहीं होता। जिस खुदा ने तुम्हें बादशाही दी है वह छीन भी सकता है। उसको याद रखना चाहिए। खलकत उस खुदा के पुत्र-पुत्रियाँ हैं। बिना कारण उसकी खलकत को दुखी करने से सिँहासन डोल जाता है। राजमहल तैयार करवा रहे हो तो इन गरीबों को उनकी मजदूरी का मूल्य भी दो। ताकि वह काम करें और रोटी भी खाएँ। राह चलते लोगों से जबरदस्ती मजदूरी करवाने से क्या उनकी रूहें तुम्हें दुवाएँ देंगी। वह तुम्हें कोसेंगी और परमात्मा से तुम्हें दण्डित करने की प्रार्थना करेंगी। उनकी फरियाद सुनी भी गई, दीवार गिर गई और मिट्टी अपने आप खिसक गई। फरीद जी के बचन सुनकर उस हाकिम के कठोर दिल पर बहुत असर हुआ। उसने उसी समय घोषणा की कि सभी लोग टोकरियाँ छोड़कर खड़े हो जाएँ। दो-दो पैसे रोज मजदूरी मिलेगी, जो इच्छुक हों वह टोकरियाँ उठाएँ जो जाना चाहें वह राह खर्च लेकर जा सकते हैं। हाकिम ने बाबा शेख फरीद जी का सम्मान किया और भुल की क्षमा पाई। उसने किले और शहर का नाम, जो अपने नाम पर रखा था, वह बाबा फरीद जी के नाम पर फरीदकोट रख दिया। आज फरीदकोट सुन्दर शहर है। उसका नाम लेते ही फरीद जी की याद आ जाती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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