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33. एक पक्षी पचास शिकारी

अल्लाह के बँदों को सुखिये भी नजर आते हैं और दुखिये भी। एक दिन फरीद जी जँगल में से भ्रमण कर रहे थे कि उन्होंने एक आदमी देखा। वह कुँए के निकट खड़ा कभी उसके भीतर देखता कभी इधर, कभी उधर देखता। वह घबराया हुआ था। फरीद जी ने दूर से ही उसके मन की बात को जानकर आवाज लगाई: “अल्लाह के प्यारे।“ फरीद जी की आवाज सुनकर उसने फरीद जी की तरफ देखा और रूक गया। फरीद जी उसके समीप पहुँचे। फरीद जी ने पूछा: अल्लाह के प्यारे ! तुम्हारे मन में क्या आया है ? आदमी बोला: दरवेश जी ! मरना चाहता हूँ पर मरा नहीं जाता। फरीद जी बोले: अल्लाह के बन्दे ! मृत्यु की इच्छा क्यों रखते हो ? आदमी बोला: इस जीवन से तँग आ गया हूँ। फरीद जी बोले: पुत्र ! जीवन से तँग ? इस जीवन को तो प्रत्येक प्राणी चाहता है। खुशियों का जीवन, मनुष्य जीवन, भाई तूँ क्यों तँग है ? आदमी बोला: साँईं महाराज ! बताने वाली बात नहीं। मैं एक हू और मेरे दुश्मन पचास। फरीद जी बोले: पुत्र ! इतने दुश्मन ? आदमी बोला: दरवेश जी ! इससे भी अधिक हैं। अब तो रात्रि में नींद भी नहीं आती, सोचते-सोचते ही सूर्य उदय हो जाता है। घरवाली, पुत्र, पुत्रियाँ, रिशतेदार सब जोकें हैं, मेरा लहू पीते हैं। फरीद जी मुस्कराकर बोले: अरे अल्लाह के बँदे ! जब तुझे ज्ञान हो गया है कि तेरे शत्रु अधिक हैं, फिर मरने की क्या आवश्यकता है। इस तरह से आत्महत्या करके मरना पाप है। आदमी बोला: साँईं महाराज जी ! मैं क्या करूँ ? मेरी आँखों के समक्ष तो अन्धेरा ही अन्धेरा है। फरीद जी बोले: पुत्र ! आओ मेरे साथ। फरीद जी ने उसे साथ लिया और अपने डेरे पर आ गए। उसे बिठाकर एक-एक बात पूछकर उपदेश दिया। पहले उन्होंने इस सलोक का उच्चारण किया:

सरवर पंखी हेकड़ो फाहीवाल पचास ।।
इहु तनु लहरी गडु थिआ सचे तेरी आस ।।125।।  अंग 1384

अर्थ: दुनिया रूपी सरोवर के किनारे पक्षी एक है, पर उसे पकड़ने वाले (शिकारी) पचास हैं, समझो कि यह शरीर सँसार के माया रूपी तूफान में घिरा है और बचने का एक ही रास्ता है और वह है परमात्मा का नाम जपना। उसका एक ही नाम दुश्मनों से बचाता है। फरीद जी ने आगे कहा: पुत्र ! मकान और हवेलियाँ तैयार की कि माल या पशु कोई चोर न ले जाए, पर अपने तन के आस पास दीवार न की कि दुश्मन चोट करे तो अपने तन को नुक्सान न हो। आदमी बोला: दरवेश जी ! मैं कुछ समझा नहीं, आप क्या कह रहे हैं ? शरीर के आसपास दीवार कैसे हो सकती है ? फरीद जी ने कहा: पुत्र ! वह दीवार है अल्लाह की बँदगी। इन्सान परमात्मा को याद नहीं करते और सदा दुनियावी मारामारी में व्यस्त रहते हैं। बस फिर वैरी बढ़ जाते हैं, यह सभी तेरे अपने पैदा किए होते हैं। परमात्मा की बँदगी करने से तेरे मन के ऊपर जो साँसारिक दुश्मनों का बोझ पड़ा है, वह हल्का हो जाएगा। मस्जिद जाकर निमाज पढ़ा कर। आदमी बोला: दरवेश जी ! ना तो मैं कभी मस्जिद गया हूँ और न कभी निमाज में शामिल हुआ हूँ। फरीद जी: पुत्र ! यही तो तेरे दुश्मन बढ़ने का कारण है।

फरीद जी ने सख्त शब्दों में कहा है:
फरीदा बेनिवाजा कुतिआ एह न भली रीति ।।
कब ही चलि न आइआ पंजे वखत मसीति ।।70।। अंग 1381

साधू संगत में बैठना, अल्लाह की बँदगी करना यानि परमात्मा का नाम जपना, रब्बी ज्ञान सुनना और मस्जिद जाना ऐसे सुकर्म हैं जिनके होते हुए दुनिया के दुश्मन कभी तँग नहीं करते। यही तो दरगाह यानि परमात्मा के दरबार की रोटी है। दुनिया के लोगों की तो विचित्र दशा है:

फरीदा इकना आटा अगला इकना नाही लोणु ।।
अगै गए सिंञापसनि चोटां खासी कउणु ।।44।।  अंग 1380

कइयों ने तो भक्ति करके कुछ न कुछ आगे का राशन तैयार कर लिया है पर कइयों के पास तो नमक भी नहीं है यानि कुछ भी नहीं है। आगे जाकर सब जान जाएँगे कि किस को सजा मिलेगी और कौन सुख पाएगा। कर्म किरत पर ही सब फैसले होंगे, इसलिए अच्छे कर्म करने चाहिए।
वह आदमी फरीद जी से ब्रहम उपदेश लेकर शान्त मन से घर लौट गया और अल्लाह की बँदगी में रहने लगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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