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29. बोलिए सच धर्म झूठ ना बोलिए

इस बाणी में सच बोलने का उपदेश देते हुए सच्चे वचन कहते हैं।

बोलै सेख फरीदु पिआरे अलह लगे ॥
इहु तनु होसी खाक निमाणी गोर घरे ॥१॥
आजु मिलावा सेख फरीद टाकिम कूंजड़ीआ मनहु मचिंदड़ीआ ॥१॥ रहाउ ॥
जे जाणा मरि जाईऐ घुमि न आईऐ ॥
झूठी दुनीआ लगि न आपु वञाईऐ ॥२॥
बोलीऐ सचु धरमु झूठु न बोलीऐ ॥
जो गुरु दसै वाट मुरीदा जोलीऐ ॥३॥
छैल लंघंदे पारि गोरी मनु धीरिआ ॥
कंचन वंने पासे कलवति चीरिआ ॥४॥
सेख हैयाती जगि न कोई थिरु रहिआ ॥
जिसु आसणि हम बैठे केते बैसि गइआ ॥५॥
कतिक कूंजां चेति डउ सावणि बिजुलीआं ॥
सीआले सोहंदीआं पिर गलि बाहड़ीआं ॥६॥
चले चलणहार विचारा लेइ मनो ॥
गंढेदिआं छिअ माह तुड़ंदिआ हिकु खिनो ॥७॥
जिमी पुछै असमान फरीदा खेवट किंनि गए ॥
जालण गोरां नालि उलामे जीअ सहे ॥८॥२॥  अंग 488

अर्थ: मनुष्य माया से प्रेरित है, झूठ को सच कहता है और सच बोलने के विपरीत झूठ बोलने को भला समझता है। इस बाणी में सच बोलने का उपदेश देते हुए सच्चे वचन कहते हैं। हे जीव ! वाहिगुरू अल्लाह से प्यार कर। यह तेरा शरीर सदा नहीं रहना। इस शरीर के सुखों के लिए महल उसारता है, पर यह नहीं सोचता कि शरीर का असली घर कब्र है। उस घर में इसने मिट्टी में मिल जाना है:

फरीदा खाकु न निंदीऐ खाकु जेडु न कोइ ।।
जीवदिआ पैरा तलै मुइआ उपरि होइ ।।17।।  अंग 1378

मरना सच है जीना झूठ है : आज मनुष्य जन्म में ईश्वर से मिलाप हो सकता है क्योंकि पूरी ज्ञान इँद्रियों के साथ जीवन मिला है, पर यदि इन इँद्रियों पर काबू पाया जाए, इन्हें साँसारिक रसों की और बढ़ने न दिया जाए अर्थात सँयम का निर्मल जीवन हो। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहँकार से ऊपर जीवन हो। माया के पदार्थों की खींच तेज है। ईश्वर के प्यार का रास्ता कठिन और खुश्क है। वह कहते हैं कि यदि पता है कि मर जाना है और वापिस नहीं आना तो झूठी दुनिया के पीछे नहीं लगना चाहिए। फरीद जी कहते हैं कि इस जीवन में सदैव सत्य बोलना चाहिए। धर्म सच बोलने का है और कर्म वह करें जो गुरू आज्ञा दे। मुरीद या चेले का यही धर्म है, गुरू पीर के बताए मार्ग पर चलें, मन का त्याग करें। मन के पीछे जो चलता है वह दुख उठाता है। शब्द के चौथे भाग में फरीद जी हुक्म करते हैं कि सुन्दर जवानों को दरिया पार करते हुए देखकर कमजोरों को भी चाव आया और जिस कारण वह डूब गए, मारे गए। भाव यह है कि भक्ति करने वाले तो भवसागर पार कर जाते हैं, पर जो माया से प्रेरित है, कमजोर दिल हैं, वह रह जाते हैं। संत और फकीर बनकर भी नारी रूप की ओर आकर्षित होकर भक्ति से गिर पड़ते हैं, जैसे विश्वामित्र ऋषि को दस बार भक्ति करनी पड़ी। इन्द्र का सिँहासन जब भी डोलता वह किसी अप्सरा को विश्वामित्र का ध्यान भँग करने के लिए भेजता। महान ऋषि और विद्वान होने के बाद भी वह अपनी कमजोरी पर काबू न पा सका। फरीद जी कह रहे हैं कि सँसार में कोई भी सदा के लिए जीवित नहीं रहा। जिसने जन्म लिया उसने मृत्यु भी पाई। जिस स्थान पर हम बैठे हैं यहाँ हजारों लाखों बैठ गए। युगों युग से धरती के कई हिस्से उजड़े और कई बसे, कौन लेखा रख सकता है। अनेकों राजे महाराजे आए, पैगम्बर आए परन्तु अंत में मिट्टी में समा गए। जैसे कत्तक के महीने में कूँजें (एक पक्षी) आती हैं, खुशी मनाती हैं पर चेत महीने जँगलों में आग लग जाती है, मौसम बदलते रहते हैं। भाव यह कि मनुष्य पहले माया की सर्दी, गर्मी और खुशियों में खोया रहता है और जब अपने गुरू यानि मुर्शिद से ज्ञान प्राप्त करता है तो भक्ति की ओर मन लगाता है और आत्मिक रस का आनँद लेता है। सातवें बचन में फरीद जी फरमाते हैं कि हे भक्त जनों और साँसारिक जीवों ! जरा सोचो, किसी चीज के तैयार होने में कितना समय लगता है। जैसे आम का पौधा फल देने की क्षमता कई वर्षों के पश्चात प्राप्त करता है, पर आँधी उसे एक ही क्षण में उखाड़कर फैंक देती है। जड़ों से उखाड़ देती है। माँ के पेट में बच्चा पलता है, माँ जन्म देती है, लाड़-प्यार से पालती है, पर मौत जब आती है तो एक पल में उस माँ से उसकी खुशियाँ छीन लेती है, खेलता हुआ बच्चा लाश बन जाता है। यह सब उस परमात्मा की लीला है।

जिमी पुछै आसमान फरीदा खेवट किंनि गए ।।
जालण गोरां नालि उलामे जीअ सहे ।।  अंग 488

अर्थ: फरीद जी कहते हैं कि एक दिन धरती ने आकाश से पूछा– बताओ ! मेरे ऊपर जन्म लेकर कितने लोग चले गए और कितनों की आत्माओं ने करतार से शिकायत सुनी कि सँसार में जाकर तूने क्या कार्य किया और क्या सेवा की या जन्म व्यर्थ ही गवाँया ?
आकाश बोला– धरती ! गिनती करनी तो असम्भव है चाहे मैं देखता रहा हूँ।
कहते है कि सिकँदर आजम (मैसेडोनीआ) सँसार जीतने से पहले पँजाब के दरिया ब्यास से वापिस मुड़ गया और रास्ते में उसकी मृत्यु हो गई। उसकी माँ उसकी मृत्यु का दुख बर्दाशत नहीं कर सकी और कब्रिस्तान में जाकर आवाजें मारने लगी कि बेटा तूँ कहाँ है और कैसा है ? कब्रों से आवाजें आईं, यहाँ तो कितने ही सिकँदर हैं, माई आप किस सिकँदर की बात कर रही हो ?

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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