27. जितु वस आवै कंत
एक बार फरीद जी के पास शिकायत आई कि एक आदमी अपनी स्त्री के साथ दुर्व्यवहार करता
है और उसे मारता पीटता है। वह आदमी फरीद जी के दरबार में आता था, उनके समक्ष मामला
प्रस्तुत हुआ। फरीद जी ने पूछा: कि भले आदमी ! अपनी स्त्री को क्यों पीटता है सारे
नगर में चर्चा है ? आदमी बोला: बाबा जी ! उसके मँदे कर्म उसे मार पड़वाते हैं। मैं
तो यह जानता हूँ कि औरत को मारना तो दीवार को मारने के समान है। फरीद जी बोले: भले
आदमी ! समझता है तो मारता क्यों है ? आदमी बोला: बाबा जी ! क्या बताऊँ, ना तो उसे
काम करना आता है और ना ही उसकी जुबान मीठी है, अहँकार में बच्चों को गालियाँ निकालती
और मारती है, अतिथि को पूजने के विपरीत उसे कोसती है। मारने के अलावा कोई और साधन
नहीं सूझता। फरीद जी बोले: भाई ! डण्डा, मारपीट, किसी को सुधारने का साधन नहीं है।
यदि कोई कुबोल बोलता है, गालियाँ निकालता है तो उसे गालियों में ही उत्तर देने से
झगड़ा बढ़ता है, कम नहीं होता। गाली देने वाले को प्यार से कहो, “और निकाल ले गालियाँ
यदि तेरा मन इससे शान्त हो तो“, इससे वह अपने आप लज्जित हो जाएगा। आग कम करने के
लिए जल की आवश्यकता है, तेल की नहीं। दूसरा उसके हर समय क्रोधित रहने का कोई कारण
अवश्य है, उसके मन की निश्चित ही कोई इच्छा है जो पूरी नहीं होती। ऐसा प्रतीत होता
है कि आप उसके मन की बात नही समझते और वह हठ नहीं छोड़ती। आदमी बोला: बाबा जी ! यही
तो रोना है कि वह हठ नहीं छोड़ती। फरीद जी बोले: भाई ! कल उसे लेकर आना शायद समझौता
हो जाए क्योंकि जिस घर में झगड़ा रहे वह नर्क की भाँति हो जाता है। फरीद जी यह बचन
कर ही रहे थे कि तभी उस आदमी की बीबी दरबार में आ गई। उसने आदर से गुरू जी को
प्रणाम किया और स्थान ग्रहण किया। पत्नी बोली: पीर जी ! देखिए मेरे विरूद्ध इसे कोई
धागा या तावीज आदि नहीं देना। यह मेरा अंत देखने का इच्छुक है। फजले से धागा करा कर
लाया है। फरीद जी ने कहा: पुत्री ! आप क्रोध को मन से निकाल दें मैं किसी को धागा
या तावीज आदि नहीं देता। तेरा पति शिकायत करता है कि इसे मजबूर होकर तुझे मारना पड़ता
है। क्या मामला है ? देखो फकीर के पास बैठकर झूठ मत बोलना। औरत बोली: इसी से पूछ
लीजिए, रोज हड्डी-पसली एक करता है, मैं मर जाऊँगी एक दिन तो शान्ति आ जाएगी इसे। ले
आएगा घर में मेरी सौतन को। फरीद जी बोले: सौतन का क्या अर्थ ? इसका पराई स्त्रियों
से संबंध है क्या ? फरीद जी आदमी से बोले: भाई ! जो कुछ यह कह रही है, ठीक है क्या
? औरत ने कहा: पति महाश्य ! अब क्यों साँप सूँघ गया है, बोलो न सच। मैं कल मायके चली
जाऊँगी और वापिस नहीं आऊँगी। ऐसे जीवन से तो विधवा बनकर रहना ही अच्छा है। क्या पता
कब कुछ खिलाकर मुझे मार डाले। फरीद जी बोले: पुत्री ! अब यह तुम्हें नहीं मारेगा,
तुम लोगों का आज से झगड़ा समाप्त हो जाएगा। खुदा के आगे प्रार्थना करता हूँ, पर
तुम्हें भी हमारे उपदेश पर चलना पड़ेगा। किसी ने प्रश्न किया: साँईं जी ! पति
परमेश्वर को किस प्रकार खुश किया जा सकता है ?
कवणु सु अखरू कवणु गुणु कवणु सु मणीआ मंतु ।।
कवण सु वेसो हउ करी जितु वसि आवै कंतु ।।126।। अंग 1384
अर्थ: प्रश्न के रूप में कोई भली स्त्री पूछती है कि कौनसा "शब्द",
कौनसा "गुण", कौनसा कीमती मँत्र है और कौनसा लिबास है, जिससे पति वश में रहे। फरीद
जी ने कंत (पति) एक दुनियावी पति और एक परमेश्वर पति को प्रसन्न करने का भेद बताया
है:
निवणु सु अखरू खवणु गुणु जिहबा मणीआ मंतु ।।
ए त्रै भैणे वेस करि तां वसि आवी कंतु ।।127।। अंग 1384
अर्थ: स्त्री अथवा मनुष्य (भक्त) को चाहिए कि "अहँकार का त्याग
करें"। विनम्रता धारण करे। अहँकार ही तो सब अवगुणों की नींव है। जब विनम्रता आ जाए
तो दूसरा गुण है क्षमा माँगने का। यदि भूल हो जाए तो निसँकोच माफी माँग लेनी चाहिए।
कई बार परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती हैं जिनकी समझ नहीं लगती और गलती से ही ईर्ष्या और
क्रोध हो जाता है जो कि लड़ाई में बदल जाता है। तीसरा गुण जुबान पर काबू पाना है।
जुबान से निकला कोई शब्द तलवार से भी तीव्र गति और अधिक क्षति पहुँचाने वाला होता
है। तलवार का घाव मिट जाता है पर मँदे बोल तो चोट पहुँचा जाते हैं उनका जख्म उम्र
भर नहीं भरता।
उपरोक्त सलोक के दुनियावी पक्ष की ओर ध्यान केन्द्रित करें:
निवणु सु अखरू– बाणी रोशनी देती है कि अहँकार एक रोग है, हर
स्त्री पुरूष का एक दूसरे से या दूसरे स्त्री-पुरूष से पाला पड़ता है। चाहे बादशाह,
वजीर, गरीब, फकीर ही क्यों न हो, हर कोई एक दूसरे पर निर्भर है। सामाजिक ढाँचा ही
ऐसा है। यदि बादशाह, वजीरों, अमीरों, फौजी, जरनलों से कोई विनम्रता से पेश नहीं आता
तो यह लोग एक न एक दिन उसे हानि पहुँचाते अथवा मार देते हैं। इसी तरह गृहस्थ में और
रिश्तेदारी में पुत्र पुत्रियाँ शत्रु बन जाते हैं कि उसने जब बात करनी है तो
अहँकार में रहकर करनी है। जीवन में हर पड़ाव पर विनम्रता की आवश्यकता है। विनम्रता
से जब मनुष्य पशु, गाय, भैंस, बकरी और कुत्ते को भी पुकारा जाता है तो वह प्रेम करने
लग जाता है, पर जिसके माथे पर क्रोध भरा है पशु भी उसके निकट नहीं आते।
अब उन दोनों पति और पत्नी को उपदेश मिल चुका था कि उन्हें प्रेम से ही रहना चाहिए।