26. सूफी लहर
हजरत मुहम्मद साहिब का जमाई हजरत अली पहला सूफी फकीर हुआ है, उसे निमाज पढ़ते हुए
मस्जिद में मुस्लमानों ने कत्ल कर दिया। जो इस्लाम के खलीफे (मुखिया) बने, उन्होंने
सूफियों से वैर भावना रखी, उन्हें इस्लाम की शरीअत के विरूद्ध करार दे दिया, मनसूर
को सूली पर लटकाया और शमश तबरेज की खाल उतरवा दी। बेअंत बड़े सुफी फकीर अरब देशों को
छोड़कर भारत आ गए। हिन्दूस्तान में शरअई मुस्लमान बादशाह का राज्य कायम हो गया था।
काजी और मुल्ला लोग सूफी फकीरों के उलट थे। क्योंकि सूफी सच्चे और सुच्चे थे, वह
अपने आपको सीधा खुदा का मित्र मानते थे, दूसरा राग और नाच का आदर करते थे। वह अपने
दरबार में नाच कराते और स्वयँ भी चूड़ियाँ और लोहे के कँगन पहनकर खुदा के प्यार में
नाचने लगते थे। अपने आप को मुर्शिद (गुरू) की पत्नी समझकर उसके प्यार में वैसे ही
दीवाने हो जाते जैसे एक सुहागिन अपने पति पर अपना सब कुछ कुर्बान कर देती है।
इस्लाम में नारी को मन खुश करने का खिलौना और बच्चों को पैदा करने वाली बताया गया
था। पुरूषों को अनेक विवाह करने की अनुमति थी। सूफी और भारत की भक्ति लहर में स्त्री
को महानता दी गई है। श्री गुरू नानक देव साहिब जी ने स्त्री का स्तर सामाजिक एँव
आध्यात्मिक दुनिया में ऊँचा बताया है। भक्ति लहर और सुफी लहर एक जैसी है। मुस्लमान
सरकार और काजियों से बचने के लिए फकीर लोग छायावाद का सहारा लेते। दुनियावी भूलों,
सुधारों और कार्यों को ब्यान करके लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान देते। फरीद जी की बाणी
से दुनियादारी का भी ज्ञान मिलता है और भक्ति का भी। आपके विरूद्ध सरकार और काजी
कुछ भी नहीं कर पाते, कई बार तो बादशाह भी उनकी ज्ञान भरी बातें सुनकर प्रसन्न हो
जाते। आपने ऊँचे आचरण, कठोर तपस्या और सादे जीवन से इस्लाम का प्रचार किया। फरीद जी
दरिया सतलुज के पश्चिम की ओर दरिया अटक और पाँच नदी के इलाके के सारे जँगली निवासियों
को इस्लाम की चादर तले ले आए। घेब टिवाने के रहने वाले सारे हिन्दू थे और राजा रसालू
के सिआलकोट के राज्य के अधीन थे। सरकार की गुलामी को अनुभव करके फरीद जी ने सरकार
या बादशाह को कुछ नहीं कहा, पर यह सलोक उच्चारण किया:
फरीदा बारि पराइऐ बैसणा सांई मुझै न देहि ।।
जे तू एवै रखसी जीउ सरीरहु लेहि ।।42।। अंग 1380
फरीद जी ने परमात्मा को सम्बोधन करके कहा– हे मालिक ! यदि दरवाजे
के आगे बिठाकर रोटी देनी है तो इससे अच्छा है इस शरीर में से प्राण निकाल ले। उस
समय जनता बादशाह से तँग थी परन्तु आवाज उठाने की हिम्मत न रखती थी। फरीद जी ने आवाज
उठाई।