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25. माया और जीव आत्मा

फरीद जी आदर्शवादी थे। आदर्श कायम करने के लिए आदमी को अनेकों प्रकार के दुख झेलने पड़ते हैं। वही कामयाब होता है जिसका दृढ़ विश्वास हो। मन एँव बृद्धि को वश में करके अपने मुर्शिद (गुरू) या परमात्मा पर विश्वास रखे। भरोसा कायम करने के लिए कठोर से कठोर श्रम किया जाए। फरीद जी फरमाते हैं:

तनु तपै तनूर जिउ बालणु हड बलंन्हि ।।
पैरी थकां सिरि जुलां जे मूं पिरी मिलंन्हि ।।119।।  अंग 1384

अर्थ: तपस्या करते समय शरीर को तँदूर की तरह गर्म कर लूँ, जिसमें बालन यानि जिसमें जलाने के लिए हड्डियों को डाला जाए। अपने मुर्शिद यानि गुरू अथवा परमात्मा को मिलने के लिए अगर पैर थक जाएँ तो सिर के बल ही क्यों न जाना पड़े, प्यारे से मेल हो। भाव यह है कि प्यारे से मिलने के लिए कठोर तपस्या की जरूरत है। तपस्या सफल हो तो मनुष्य के दुश्मन काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहँकार आदि सब पीछा छोड़ जाते हैं। जीव निरमल बृद्धि का हो जाता है तथा उसका आदर्श कायम हो जाता है। फरीद जी इस सलोक में कहते हैं कि सरोवर के किनारे पँछी एक है पर उसे जाल डालकर पकड़ने वाले अनेक। यह शरीर दुश्मन लहरों से घिरा है, जैसे सागर की तूफानी लहरों में बेड़ा (जहाज) घिर जाता है और उस भयानक समय में एक परमात्मा का ही सहारा होता है। भाव यह है कि जीव जन्म लेकर इस सँसार रूपी सरोवर में आया। जैसे-जैसे बड़ा होता गया इसके मित्र एँव दुश्मन इसे खाने के लिए तैयार होते गए। पहले खाद्य पदार्थों से प्यार एँव अहँकार आगे बढ़े। इन्होंने प्राणी को जीवित रखना था परन्तु आगे बढ़ते-बढ़ते उसका विनाश करने की ओर बढ़े। माया अपने पैर पसारती गई। फरीद जी की महिमा सुनकर एक मायाधारी मनुष्य उनके दरबार में प्रस्तुत हुआ।

उसने विनती की: हजरत वली जी ! खुदा की कृपा से मेरे पास धरती, धन, चार बीवियाँ, दूध, घी, ग्यारह पोते-पोतियाँ, सेवक आदि सब हैं। समाज में सब इज्जत करते हैं पर मन को शान्ति प्राप्त नहीं होती। अब तो नींद भी नहीं आती। फरीद जी ने तुरन्त पूछा: कि भाई ! बताओ, कभी परमात्मा की तरफ ध्यान लगाया है ? मायाधारी बोला: दरेवश जी ! ऐसे ही कभी-कभी काजी जी घर पर ही आ जाया करते हैं और कुरान की कोई आयत सुना दिया करते हैं। मैं कभी मस्जिद नहीं जाता, केवल ईद वाले दिन ही जाता हूँ। आपके दरबार में आने का कई बार प्रयत्न किया पर काजी रोकता रहा यह कहकर कि आपका दरबार इस्लामिक मर्यादा के विरूद्ध है। फरीद जी मुस्कराकर बोले: भाई ! ईश्वर को याद करो। मायाधारी बोला: दरवेश जी ! ईश्वर को याद तो करते हैं। फरीद जी बोले: भाई जी ! दिल से नहीं करते, केवल दुख में करते हो, सुख में भी याद करो। हर हालात में करो। मायाधारी बोला: दरवेश जी ! कोई तावीज आदि दे दीजिए। फरीद जी बोले: धागा, तावीज आदि तो सब पाखण्ड हैं। मन की शाँति का संबंध उस अल्लाह से है जो मालिक है, जो कुछ भी तुम्हारे पास है यह दुनियावी लहरें हैं। पाँच वक्त की निमाज पढ़ो। बँदगी करो, यदि मालिक याद रहेगा तो मन शाँत रहेगा। जो कुछ भी आपके पास है वह नष्ट होने वाला है। बाबा शेख फरीद जी दयावान थे, माया के चक्कर में गोते खा रहे लोगों को सहारा देते थे। उन्होंने उस धनवान पर अपनी ऐसी कृपा दृष्टि डाली कि मोह-माया से उसका नाता ही टूट गया। वह लोटा तो उसे अपने महल की हर वस्तु पराई लगने लगी। बेगमों का रंग रूप भी कुछ और ही प्रतीत होने लगा। अपने पलँग पर लेटा तो सोने में डर लगा तो धरती पर बिस्तर लगा लिया। मस्जिद के काजी की पुकार सुनी, नहा तो लिया पर मस्जिद जाने की हिम्मत नहीं हुई, ख्याल बिखर गए। सारा दिन उदास बैठा रहा। बाबा फरीद जी के दरबार में पहुँचा, दिल किया सँगत में बैठने का, सेवा करने का मन किया, पर शर्म आई, यह फकीर हैं और मैं अमीर। उसका नाम जहाँगीर था। दूसरे दिन भी जहाँगीर जमीन पर सोया। फरीद जी ने ऐसा चक्कर चलाया कि झूठे मोह और प्यार का ज्ञान सपने में करा दिया।

पहले सपने में उसने देखा कि उसका बड़ा पुत्र किसी से बात कर रहा है और कह रहा है, “अब्बा के मरने के बाद, मन मर्जी करेंगे। अभी तो खर्च करने से रोकते हैं। दो बार बीमार हुए पर अफसोस कि बच गए।“ दूसरे सपने में उसे अपनी पत्नियों की बातें सुनने का मौका मिला, उनके शब्द छल एँव बेवफाई से भरे हुए थे। उसे आभास हो गया कि केवल वासना को खुशी समझ लेना एक भ्रम है, काम पुल है बुराइयों का। तीसरे सपने में उसने अपनी मौत से मुलाकात की, यमदूत उसे खींचकर नर्क में ले गए और वह काँपकर उठ गया। उस समय वह अल्लाह का नाम लेने लगा। अगले दिन फरीद जी के डेरे में वह फकीर बनकर बैठ गया। उसने सब दुनियावी झमेलों का त्याग कर दिया और बँदगी की ओर ध्यान लगा दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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