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24. हंसों को देख बगले डूबे

फरीद जी के समय 1175-1266 तक पँजाब, सिंध और राजस्थान में इस्लामी हकूमत पक्की होने के कारण मुस्लमान फकीरों का पसारा बहुत हो गया था। असली खुदा की बँदगी करने वाले फकीरों के साथ पेटू और लुटेरे लोगों ने भी फकीरी धारण कर ली थी। पाखण्ड का राज था। गर्मियों के दिन थे और करीब चार बजे का समय था जब फरीद जी हुजरे में बैठे हुए फकीरों के संग प्रवचन-विलास कर रहे थे कि पाकपटन के दस बारह लोग और कुछ लड़के शोर मचाते हुए आ पहुँचे। काले सूफ की वस्त्रों वाले ने एक तीस-बत्तीस साल की आयु के जवान फकीर को दबोचा हुआ था और मार-मारकर उसे बेहाल किया हुआ था। दरवेश जी ! दरवेश जी बाहर से आवाजे आईं। फरीद जी आवाजें सुनकर आसन से उठकर बाहर आए। उन्होंने लोगों की ओर देखकर पूछा: भाईयों ! इस साँईं को क्यो पकड़ा है ? कई लोग एक साथ बोले: दरवेश जी ! वह चोर है, शैतान है, साँईं नहीं। फरीद जी बोले: भाईयों ! मामला क्या है ? एक आदमी बोला: दरवेश जी ! इसने अब्दुलबारी की जवान कन्या को अगवाह करने का प्रयत्न किया है, लेकर जा रहा था, दरिया के किनारे से पकड़ा है, लड़की साथ थी। जब लड़की से पूछा गया तो उसने बताया कि एक महीने से वह इसके पीछे था। घर के जेवर भी यह ले चुका है, कृप्या आप निश्चित कीजिए इसका क्या करें ? दरअसल यह फकीर बना ही शोभा पाने के लिए और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पर वह फकीरों वाले गुण ना पा सका। वह फकीर बोला: दरवेश जी ! मुझे माफ कर दीजिए, यह सज्जन पुरूष जो कह रहे हैं वह पूर्ण सत्य है, मैं गुनाहगार हूँ, वह बोल पड़ा। फरीद जी ने पूछा: भाई ! किसके चेले हो ? फकीर बोला: दरवेश जी ! किसी का भी नहीं ? कोई मुर्शिद या गुरू धारण नही किया। फरीद जी बोले: भाई ! बिना मुर्शिद (गुरू) ही फकीर हो ? फकीर बोला: दरवेश जी ! हाँ बिना मुर्शिद (गुरू) ही फकीर हूँ। फरीद जी ने पूछा: भाई ! लड़की को तुमने अगवा किया ? फकीर बोला: दरवेश जी ! हाँ फरीद जी ने पूछा: भाई ! क्या लड़की पाकदामन है ? फकीर ने बोला: दरवेश जी ! नहीं, लड़की को मैंने पाकदामन नहीं रहने दिया। फरीद जी ने पूछा: भाई ! जेवर और धन कहाँ है ? फकीर बोला: दरवेश जी ! सब चीजें बाहर दबाई हैं। फरीद जी ने कहा: भाई ! सब चीजें वापिस कर दो। फरीद जी ने यह सलोक उच्चारण किया:

हंसा देखि तरंदिआ बगा आइआ चाउ ।।
डुबि मुए बग बपुड़े सिरू तलि उपरि पाउ ।।122।।  अंग 1384
मैं जाणिआ वडहंसु है तां मै कीता संगु ।।
जे जाणा बगु बपुड़ा जनमि न भेड़ी अंगु ।।123।।  अंग 1384

अर्थ: हंसों की और देखकर कि वह समुद्र में डुबकियाँ लगा रहे हैं, बगलों को भी चाव आ गया, क्योंकि वह बगले थे और तैरना नहीं जानते थे इसलिए डूबकर मर गए। उनके सिर नीचे और पैर ऊपर ही रह गए। फरीद जी आगे फरमाते हैं कि मैंने समझा साईं के प्यारे हैं इसलिए डेरे में रख लिया, यदि ज्ञान होता कि चोर (बगले) हैं तो कभी डेरे में रहने न देता। बदनामी ना होती। उस समय शरअ का जोर था। उस फकीर को लोग वापिस ले गए। जेवर और धन वापिस लेकर शरअ के अनुसार काजी के फतवे की पालना करते हुए सँगसार यानि पत्थर मारकर मार दिया। दूसरे फकीरों को भी चेतावनी मिल गई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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