9. अहँकारी चौधरी को उपदेश
एक सरकारी चौधरी, फरीद जी "महिमा" सुनकर दर्शन करने के लिए आ गया। परन्तु उसे अपनी
जायदाद और सरकारी चौधरी होने का बहुत अहँकार था। उसने दरबार में आकर ना तो फरीद जी
को नमस्कार की और ना ही कुछ भेंट दी। उसे तो फरियादें लेकर आए हुए गरीब लोगों के
बीच बैठना भी स्वीकार न था। दरबार में आई एक स्त्री की ओर वह वासना भरी नजरों से
देखने लगा। चार पाँच लोगों की व्यथा सुनने के बाद फरीद जी ने चौधरी की तरफ देख, उसके
मनोभावों एँव उसके शरीर की बेचैनी को देखते हुए उसको सम्बोधित किया– चौधरी जी ! आगे
आइए, बताइए क्या हुक्म है। चौधरी उठा और आगे आ गया। उसने फरीद जी की आँखों में देखा
तो उसका दिल काँप गया। फरीद जी का नूरो-नूर चेहरा देखकर वह घबरा गया और उसकी आत्मा
काँप उठी। फरीद जी ने कहा: चौधरी जी ! हम फकीर हैं, आपका ऊँचा सत्कार नहीं कर सकते।
फकीरों के तखीए में आकर बैठने वाले भी फकीर बन जाते हैं, क्योंकि खुदा के घर से कुछ
न कुछ माँगने ही आते हैं। आपने मन में जो विचार धारण किए हैं वह नर्क की ओर ले जाने
वाले हैं। आपने जिस मनुष्य की हत्या करने की इच्छा की है, वह नहीं मरेगा। लिंग वासना
की अग्नि को आपने यहीं आकर हवा दे दी, जिस स्त्री की ओर आप नीच मलीन दृष्टि से देख
रहे हैं वह दरगाह में बैठी मेरी बेटी है। आपकी बहन समान है। खुदा से दुआ है कि आपके
मन को निरमल करे। अपने मन के भीतर की अवस्था फरीद जी के मुख से सुनकर वह चौधरी
भयभीत हो गया और काँपते हुए हाथ जोड़कर फरीद जी के चरणों में गिर पड़ा। चौधरी ने कहा:
फरीद जी ! मुझे बक्श दीजिए ! आप खुदा के खास बँदे हो, मैं पापी हूँ, मुझे बचा लिजिए।
फरीद जी ने अपनी कुपा दृष्टि उस पर ऐसी डाली कि उसने फकीरी वेश धारण कर लिया और खुदा
की बँदगी में लीन हो गया।