5. शक्करगँज बाबा फरीद
बाबा फरीद जी का उपनाम शक्करगँज है। बाबा जी के विषय में जो फारसी एँव अरबी, सूफी
मत और इस्लाम का इतिहास है उसमें शब्द शक्करगँज आपके लिए प्रयोग किया गया है। साखियों
और ऐतिहासिक लेखों के अनुसार बाबा फरीद जी की माँ मरीअम ने उन्हें बहुत ही छोटी आयु
में निमाज पढ़नी सिखाई थी। वह दिन की पाँचों निमाजें पढ़ने लगे थे। उन्हें लालच देकर
प्रेरित करने के लिए माता जी उनके तकिए के नीचे शक्कर रख दिया करती थी। जब वह निमाज
पढ़कर आते तो शक्कर की पुड़िया उठाकर खा लेते। उस पुड़िया के विषय में माता जी कहा करती
थीं, बेटा ! जो खुदा का नाम जपते हैं, उसके मार्ग पर चलते हैं, उन्हें प्रभु उत्तम
पदार्थ खाने को देता है, शक्कर उत्तम पदार्थ है। कुछ वर्ष के बाद जब माता जी ने देखा
कि फरीद जी निमाज के आदी हो गए हैं तो उन्होंने शक्कर रखनी बन्द कर दी। परन्तु फिर
भी फरीद जी वहाँ से पुड़िया उठाकर ग्रहण करते रहे। एक दिन जब माता जी ने निमाज के
बाद उन्हें शक्कर का सेवन करते हुए देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। माता बोली: बेटा
फरीद ! शक्कर कहाँ से ली ? फरीद जी ने कहा: माता जी ! जहाँ पर आपने रखी थी। फरीद जी
का उत्तर सुनकर माता जी ने कहा: बेटा ! मगर मैंने तो कई समय से वहाँ शक्कर की पुड़िया
नहीं रखी। फरीद जी ने कहा: माता जी ! पर आपके फरीद को तो प्रतिदिन शक्कर मिलती रही
है। खुदा ही यह कृपा करता रहा होगा। माता जी: बेटा ! हो सकता है, जो उसके हो जाते
हैं, वो उनका हो जाता है। फरीद जी बचपन से ही निमाजी थे और आजीवन निमाज पढ़ते रहे।
निमाज के विषय में उनका यह उपदेश है:
फरीदा बेनिवाजा कुतिया एह न भली रीति ।।
कब ही चलि ना आइआ पंजे वखत मसीति ।।70।। अंग 1381
अर्थ: जो मुस्लमान स्त्री पुरूष निमाज नहीं पढ़ते उनके लिए यह
रीति अच्छी नहीं, वह तो कुत्तों के समान हैं। कुत्ता भी वफादार होता है अपने मालिक
का। परन्तु प्रभु की भक्ति ना करने वाले तो उससे भी नीच हैं। बाबा फरीद जी को शक्कर
मिलती थी, इसलिए उनको शक्करगँज (शक्कर का खजाना) कहा जाने लगा। कई बार तो उनकी बाणी
की शक्कर जैसी मिठास के कारण भी उन्हें शक्करगँज कहा गया है। आप कभी क्रोधित नहीं
होते थे। किसी के दिल को दुखी करना वे पाप समझते थे:
इकु फिका ना गालाइ सभना मै सचा धणी ।।
हिआउ न कैही ठाहि माणक सभ अमोलवे ।।129।। अंग 1384
अर्थ: हे मेरे भाई ! किसी को भी कड़वा वचन न बोल क्योंकि हर
स्त्री पुरूष के दिल में परमात्मा आवास करता है। दिल एक अनमोल रत्न है, इसलिए किसी
का दिल ना तोड़। आपकी समस्त बाणी में विराग, दया और विनम्रता है।