20. लुहार की कथा
फरीद जी जँगल में तपस्या करने जाया करते थे। किसी वृक्ष के नीचे बैठ जाते और मालिक
को याद करते। एक दिन जँगल में दाखिल हुए तो एक लुहार कुलहाड़ी और पानी का घड़ा लिए जा
रहा था। उसने फरीद जी को जँगल में बैठे देखा। लुहार ने फरीद जी से कहा: भाई ! तूँ
कौन है ? फरीद जी मुस्कराकर बोले: भाई ! मैं एक आदमी हूँ। लुहार फिर बोला: भाई !
देखो, यह जँगल मैंने सरकार से लिया है, अब यह मेरी मलकीयत है। मैंने कोयला बनाना
है, आप कोई और जँगल खोजिए। फरीद जी ने श्लोक उच्चारण किया:
कंधि कुहाड़ा सिरि घड़ा वणि कै सरू लोहारू ।।
फरीदा हउ लोड़ी सहु आपणा तू लोड़हि अंगिआर ।।43।। अंग 1380
अर्थ: कँधे के ऊपर कुलहाड़ा और सिर के ऊपर पानी का घड़ा रखकर
लुहार जँगल में आया। फरीद जी ने उत्तर दिया कि मैं तो जँगल में एकान्त में बैठकर
धरती, मनुष्य एँव पशू पक्षियों के करता यानि परमात्मा को याद करने के लिए आया हूँ।
उसकी कृपा हासिल करने आया हूँ। पर तेरा उद्देश्य जँगल के वृक्ष काटकर पैसे हासिल
करना है। यह उत्तर सुनकर लुहार का क्रोध शान्त हुआ और उसने निवेदन किया और माफी
माँगी। लुहार ने कहा: महात्मा जी ! मुझे लगा आप भी लकड़ी काटने आए हैं ? फरीद जी ने
कहा: भाई ! जो कोयला बनाते हो, यह तो केवल यहाँ की जरूरत को पूरा करता है। क्या तूने
कभी सोचा है कि वहाँ तूझे किसकी जरूरत होगी ?
फरीदा इकना आटा अगला इकना नाही लोणु ।।
अगै गए सिंञापसनि चोटां खासी कउणु ।।44।। अंग 1380
कइयों ने तो भक्ति करके कुछ न कुछ आगे का राशन तैयार कर लिया है
पर कइयों के पास तो नमक भी नहीं है यानि कुछ भी नहीं है। आगे जाकर सब जान जाएँगे कि
किस को सजा मिलेगी और कौन सुख पाएगा। कर्म किरत पर ही सब फैसले होंगे, इसलिए अच्छे
कर्म करने चाहिए।
पासि दमामे छतु सिरि भेरी सडो रड ।।
जाइ सुते जीराण महि थीए अतीमा गड ।।45।। अंग 1380
बादशाह, चक्रवर्ती राजा, जिनके सिर पर छत्र झूलते थे, ढोल और
तूतियाँ बजती थीं, कभी जिनकी प्रशँसा में छँद उचारते थे। देखो वह भी कब्रों में डेरे
डालकर यतीमों जैसे बैठे हैं, उनका कोई हुक्म नहीं चलता।
फरीदा कोठे मंडप माड़ीआ उसारेदे भी गए ।।
कूड़ा सउदा करि गए गोरी आइ पए ।।46।। अंग 1380
अर्थ– भाई ! देख, बड़े महल बनाने वाले तेरे देखते ही चले गए।
भक्ति नहीं की, दुनियादारी के कूड़ यानि झूठै सौदे करते रहे, आज कब्रों में बैठे
हैं। इसलिए तू केवल कोयले एकत्रित करने पर ही ध्यान न दे, परमात्मा को भी याद किया
कर। फरीद जी का भक्ति उपदेश लुहार के जीवन में एक नया मोड़ ले आया।