SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

19. इलाही प्यार कायम रहे

फरीद जी की बाणी, प्यार और नेक पाक जीवन के विचार पर आधारित है। आपने बपचन से अन्तिम समय तक परमात्मा के आगे अरदासें और तपस्या की। यही उपदेश करते रहे। आपकी बाणी को लेकर ही आपके खलीफे (चेले) पँजाब, राजस्थान और आगरा आदि इलाकों में फिरते रहे।

अजु न सुती कंत सिउ अंगु मुड़े मुड़ि जाइ ।।
जाइ पुछहु डोहागणी तुम किउ रैणि विहाइ ।।30।।  अंग 1379

फरीद जी रात को बँदगी किया करते थे। एक रात बँदगी करने का अवसर न मिला तो एक सुहागिन स्त्री का हवाला देकर फरमाते हैं। आज पति (परमात्मा) से मेल नहीं हुआ तो अंग अंग अकड़ के दुख रहा है। जैसे एक सुहागिन अपने पति के साथ रहकर जीवन की खुशी हासिल करती है, उन स्त्रियों की दशा क्या होती होगी जो पति से दूर रहती हैं, वैसे ही उन लोगों की दशा क्या होती होगी जो भक्ति नहीं करते, अपने परमात्मा से दूर रहते हैं।

साहुरै ढोई ना लहै पेईऐ नाही थाउ ।।
पिरू वातड़ी न पुछई धन सोहागणि नाउ ।।31।।  अंग 1379

सामाजिक जीवन में ऐसी मनमति वाली और लापरवह स्त्रियाँ भी हैं, जो माँ बाप के लिए बोझ होती हैं, जब ससुराल जाती हैं तब भी कोई अच्छा कार्य करके शाँति प्राप्त नहीं करती, मँदे वचन बोलकर पति से लड़ते झगड़ते रहने के कारण उनके मन में स्थान नहीं बना पातीं। दुहागिनों जैसे रहते हुए भी सुहागिने कहलाती हैं। इस श्लोक का अँतरीम भाव यह है कि अनेक मनुष्य साधू समाज में शामिल हो जाते हैं, घरबार छोड़ देते हैं परन्तु भक्ति की ब्जाय लालच में फँसकर अच्छा पहनने और शान से जीने की आशा करते हुए गृहस्थियों के साथ छल करते हैं। घरबार छोड़ा और भक्ति की ओर लगे, पर भक्ति न की, उलटा सिर पर बोझ उठा लिया और खुदा के दर पर परवान न हुए।

नाती धोती संबही सुती आइ नचिंदु ।।
फरीदा रही सु बेड़ी हिंडु दी गई कथूरी गंधु ।।33।।  अंग 1379

फरीद जी, साधू समाज में रहते हुए लोगों की दशा का ब्यान एक बेपरवाह स्त्री का हवाला देकर करते हैं– एक सत्री ने स्नान किया, श्रँगार किया और पति की खुशी प्राप्त करने की तैयारी कर ली, परन्तु बेफिक्र होकर सो गई। पति मिलाप का समय बीत गया और जो कस्तूरी जैसी मिलाप की खुशी थी वह तो उड़ गई और अहँकार रूपी हींग रह गई।

बिरहा बिरहा आखीऐ बिरहा तू सुलतानु ।।
फरीदा जितु तनि बिरहु न उपजै सो तनु जाणु मसानु ।।36।। अंग 1379

फरीद जी सबसे ऊँचा दर्जा इलाही प्यार और इलाही विछोड़े को देते हैं। जीव परमात्मा से बिछुड़ा है, रब्बी प्यार का बिछोड़ा सुलतान है, जिसके दिल में रब्बी प्यार की गर्मी नहीं वह तो एक मृत शरीर की तरह है, एक बुरी आत्मा समान है जिसे किसी की परवाह नहीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.