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18. सच्चा प्यार लोभ रहित

प्यार, प्रेम या मोह, शब्दों का अर्थ एक है, किसी वस्तु, माया, किसी स्त्री अथवा स्थान से प्यार लोभ वाला होता है। पर परमात्मा से प्यार करने वाले लोभ नहीं करते, बाबा फरीद जी लोभ से बहुत ऊँचे थे। मुलतान के हाकिम गिआस-उ-दीन बलबन ने बाबा जी के दरबार के दर्शन किए, खुश होकर कुछ रूपया भेंट किया और तीन गाँव लँगर के लिए लिख दिये। परन्तु फरीद जी ने उन्हें लेने से इन्कार कर दिया और कहा “फकीरी बेचनी नही।“ उसी बलबन की पुत्री, एक शहजादी जब फरीद जी से ब्याही गई तो उसे फरीद जी से सच्चा प्रेम हो गया। उसने फरीद जी के साथ फकीरी लिबास धारण कर लिया, सारी उम्र धरती पर सोती रही जैसे फरीद जी सोते थे। गुरमति के इतिहास मे लोभ रहित प्यार की मिसाल तीसरे गुरू श्री गुरू अमरदास जी की मिलती है जिन्होंने बिना कुछ माँगे 12 वर्ष तक दुसरे गुरू श्री गुरू अंगद देव जी की सेवा की।

जोबन जांदे ना डरां जे यह प्रीति न जाइ ।।
फरीदा किंती जोबन प्रीति बिनु सुकि गए कुमलाई ।।34।। अंग 1379

फरीद जी ने उपरोक्त श्लोक में कहा है कि मुझे जवानी चले जाने का कोई डर नहीं, जितने दम दरगाह से मिले हैं उन पर भरोसा है, मेरे मुर्शिद और अल्लाह का प्यार कायम रहे। कितनी ही जवानियाँ परमात्मा के प्यार बिना खत्म हो गईं हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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