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17. सुन्दर शरीर का झूठा मान

माया कई प्रकार की होती है, रूप और जवानी भी माया है। उस परमात्मा की दी हुई है, चाहे वापिस ले चाहे लम्बी आयु तक किरपा करे। पर अज्ञानता के अधीन होकर स्त्री-पुरूष रूप जवानी का अभिमान करते हैं। एक दिन हाँसी शहर के बाहर तीन चार साँईं लोग फरीद जी के साथ भ्रमण कर रहे थे। जिस मार्ग पर चल रहे थे वह कब्रों से भरा हुआ था। एक मानव खोपड़ी का कँकाल देखा तो फकीर लोग मौज में आकर उसे निहारने हेतु रूक गए। उन्होंने अपनी ध्यान शक्ति से देखा तो उसके जीवित समय की तस्वीर नजर आई। वह खोपड़ी एक अति सुन्दर नारी की थी। फरीद जी के मुख से यह श्लोक निकला:

फरीदा जिन्ह लोइण जगु मोहिआ से लोइण मै डिठु ।।
कजल रेख न सहदिआ से पंखी सूइ बहिठु ।।14।। अंग 1378

अर्थ: जिस सुँदरी के मृग नैनों में काजल की बारीक सिलाई भी चुभती थी, जिन नयनों ने जगत को मोहित किया था, लोग जिसके दीवाने हुए फिरते थे, रब्ब के रँग देखो आज उन नयनों में पक्षियों ने बच्चे दिए हुए हैं। जीवित थी तो इन्हीं नयनों पर उसे असीमित अहँकार था।

फरीदा कूकेदिया चांगेदिआ मती देदिआ नित ।।
जो सैतानि वंञाइआ से कित फेरहि चित ।।15।। अंग 1378

संत और साधू मानवता को पुकारते हैं और संत मार्ग का उपदेश देते हैं, पर शैतानी शक्तियों के अधीन वह स्त्री पुरूष यह आवाज नहीं सुन पाते। इसके विपरीत उन्हें ही बुरा भला कहते हैं। अब जब कब्र के पास पहुँच चुके हैं, अभी भी शैतानी असर है, संत मार्ग की और कैसे मुड़ सकते हैं। वह उस खोपड़ी से आगे गए तो दभ (विशेष प्रकार की घास) वाली धरती थी, राह में भी दभ थी। उसके ऊपर चले जा रहे थे तो फरीद जी को सेवा भक्ति का ख्याल आया। इस दभ को हिन्दू और मुस्लमान पवित्र समझते थे और पाठ पूजा के समय उपयोग करते थे। सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय जिस खाद्य पदार्थ में दभ रखी जाए उस पर बूरा असर नहीं होता, ऐसा उनका विश्वास था। फरीद जी ने श्लोक उचारा:

फरीदा थीउ पवाही दभु ।। जे सांई लोड़हि सभु ।।
इकु छिजहि बिआ लताड़ीअहि ।। तां सांई दै दर वाड़ीअहि ।।16।। अंग 1378

खुदा के प्यारे साँईं लोगों ! हम सुन्दर और जवान शरीर से सेवा एँव भक्ति करने से सँकोच करते हैं। देखो यह दभ राह में पैरों तले कुचली जाती है, भक्ति करने और निमाज पढ़ते समय इसकी सफ बनती है, यह स्वयँ मस्जिद में आती है और खुदा के राह पर चल देती है। कितनी ऊँची पदवी पा लेती है, यदि हम भी शरीर का झूठा अभिमान छोड़कर सेवा में लीन हो जाएँ, विनम्र हो जाएँ तो साईं के घर पहुँच ही जाएँ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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