13. शेख फरीद जी की विरोधता
शेख फरीद जी के पाकपटन पहुँचने से पहले वहाँ के मौलवियों और काजियों की चाँदी थी।
वह मजहब और शरअ के नाम पर लोगों से लाभ उठाते जा रहे थे। जब इन्होंने सारे लोगों को
शेख फरीद जी के पीछे लगा देखा तो ईर्ष्या से जल उठे। शेख फरीद जी को नगर से बाहर
निकालने पर तुल गए। नयी-नयी शरारतें सोचने लगे। समाज, शरअ और स्थानिक हालात के
अनुसार कई योजनाएँ बनाने लगे। अजोधन के काजी ने मुलतान के बड़े काजी को लिखकर भेजा,
“यहाँ एक सूफी फकीर आया है जो सारी मर्यादा शरअ के विपरीत करता है। मस्जिद में स्वयँ
नाचने लगता है, कवाल्लियाँ और नाच करवाता है। यह लिखकर भेजिए कि उस काफिर को क्या
सजा दी जाए, उसे मस्जिद में से निकालना है, सारे मुस्लमान तँग हैं। हिन्दू पहले
मुस्लमान बन जाते थे पर उसकी करामातों के बल पर अब अकड़ते हैं।“ इस पत्र के अलावा उस
काजी ने दीपालपुर के बड़े जागीरदारों को भी कान भरने के लिए बड़े काजी के पास भेज दिया।
बड़े काजी ने पूछा: जागीरदारों ! उस फकीर का नाम क्या है ? कहाँ से आया है ? किस
मुर्शिद अथवा गुरू का चेला है ? एक जागीरदार जो पचास साल का था, ना कभी निमाज पढ़ता
था, मस्जिद जाना भी नहीं सीखा था, मायाधारी था, उसकी बुद्धि ऐसी भ्रष्ट हुई कि वह
उस महान पुरूष का नाम ना ले सका। उसने कहा: काजी जी ! मैं ना ही उससे मिला हूँ, ना
ही उसे देखा है, मुझे तो काजी ने बताया है, मैं समझता हूँ यदि वह काफिर के कारनामें
करता है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए। बड़े काजी ने पाकपटन के काजी को पत्र लिखकर उस
फकीर का नाम और अधिक जानकारी भेजने के लिए निवेदन किया। काजी की बुद्धि भ्रष्ट हो
चुकी थी। वह फरीद जी के गुणों को भी अवगुण समझ रहा था। उसने लिखा, “फकीर का नाम शेख
फरीद-उ-दीन शक्करगँज है और वह ख्वाजा कुतबदीन बखतिआर काकी के चेले हैं। कुछ लोग
बताते हैं कि वह बादशाह की लड़की समेत तीन स्त्रियों से ब्याहे हुए हैं। परिवार अभी
दिल्ली में ही है। उनके पास चोर डाकुओं तथा सभी प्रकार के नीच और मँदे लोगों का उठना
बैठना है, कई वेश्याएँ आकर नाच करती हैं, सुलफे तथा भाँग का प्रयोग होता है। मैं
चाहता हूँ कि आप स्वयँ आकर देखें कि कितना काफिर है। बड़े काजी ने जब अरजी पड़ी तो
शेख फरीद-उ-दीन शक्करगँज का नाम पढ़ते ही पूर्ण सत्कार के साथ मन ही मन सोचा कि फरीद
तो खुदा का यार, उसी का बँदा है, उसे काफिर कहना तो स्वयँ काफिर बनना है। बड़े काजी
ने पाकपटन के काजी के भाई को क्रोधित होते हुए कहा, काजी से कहो कि चुपचाप बैठे,
अपने सिर यूँ पापों की गठड़ी मत उठाए, फरीद जी को बँदगी करने दी जाए। काजी का भाई
वापिस आया और सारी खबर दी। काजी निराश हो गया क्योंकि अब वह सरकारी तौर पर फरीद जी
को कोई भी हानि नहीं पहुँचा सकता था। पर उसका शैतानी दिमाग ठहरा नहीं। उसने फरीद जी
के प्राण लेने की योजना बनाई। उस समय कलँदर फकीर होते थे जो नशे करते, लड़ने और गाली
देने में सर्वश्रेष्ठ थे। उन्हें लालच देकर काजी ने उन्हें फरीद जी की जान लेने के
लिए प्रेरित कर लिया। पर जब वह फरीद जी के दरबार में पहुँचे तो उनका नूर से भरा हुआ
चेहरा देखकर शान्त हो गए। वे बोल उठे, “तूँ ही खुदा है यह नजर आ रहा है, काजी झूठा
है“ और फरीद जी की प्रशँसा गाते चले गए। कहते हैं कि वह काजी पागल हो गया और अंत
में शाँति उसे फरीद जी के दरबार में ही मिली।