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12. फरीद जी पाकपटन में

फरीद जी जब लोगों की भीड़ से तँग आ गए और उन्हें एकाँत में परमात्मा की बँदगी करने का समय नहीं मिला तो उन्होंने निराश होकर कहा:

जां कुआरी ता चाउ वीवाही तां मामले ।।
फरीदा एहो पछोताउ वति कुआरी न थीऐ ।।।63। अंग 1381

अर्थ: जैसे कुँवारी कन्या को ब्याह कराने का बड़ा चाह होता है, पर जब ब्याह के बाद दुनियावी झगड़े तँग करते हैं तो वही कन्या पछतावे के साथ कहती है कि उसे ब्याह नहीं करवाना चाहिए था, पर ज्यादा पछतावा इस बात का है कि कुँवारापन फिर से नहीं पाया जा सकता। भाव यह है कि जब कोई मनुष्य किसी काम को सीखता है तो उसे बहुत चाव होता है और जब किसी काम में सफलता मिलती है तो उसमें रूचि भी बढ़ जाती है, परन्तु जब चैन लेने का भी समय नहीं मिलता तो इन्सान घबरा जाता है। फरीद जी ने अपना जीवन दृष्टाँत दिया– “जब माता जी के कहने पर फकीरी धारण की, घोर तपस्या करने का मन में इश्क हुआ तो खुशी हुई, पर तपस्या के बाद मुर्शिद के आर्शीवाद से कुछ प्राप्ति हुई। परन्तु उस प्राप्ति को छीनने के लिए हजारों आ हाजिर होते हैं, अब पछतावा होता है कि यदि फकीर न बनते तो आराम और शान्ति से रहते। कभी-कभी तो मन में आता है:

फरीदा जि दिह नाला कपिआ जे गलु कपहि चुख ।।
पवनि न इती मामले सहां न इती दुख ।।76।। अंग 1381

अर्थ: जब दाई ने जन्म के समय नाड़ू काटा था, यदि उस समय गला भी काट देती तो सारे मामले खत्म हो जाते, ना उम्र बड़ी होती और ना ही तँग होना पड़ता। फरीद जी एक बड़े गृहस्थी थे। उनकी तीन पत्नियाँ और पुत्र थे, पर सबसे अधिक प्रेम उन्हें बँदगी से था। अब हाँसी शहर से फरीद जी का मन उदास हो गया। वह हाँसी का डेरा कुछ चेलों के सपुर्द करके और अपने परिवार को हाँसी में ही छोड़कर धीरे-धीरे मुलतान की तरफ चल पड़े। हाँसी से मुलतान का रास्ता बहुत कठिन था। आपने सतलुज नदी को पार करके मुलतान जिले की धरती पर पैर रखे। वहाँ से मुलतान शहर की ओर जाने की बजाए वे वहीं उस कस्बे अजोधन में ही रूक गए। वृक्षों की छाँव में मस्जिद थी, उसी मस्जिद में डेरा डाल लिया। जोधीआ कबीले का बसया अजोधन पूरब मसीह काल से बसा हुआ था। पश्चिमी शक्तियाँ जब भी भारत पर चढ़ाई करके आईं तो इसी शहर में से गुजरीं। इतिहास गवाह है कि यह पतन महमूद गजनवी के आगे बढ़ने के लिए प्रसिद्ध पतन रहा है। डेरा गाजी खाँ और डेरा इसमाइल खाँ से आने वाली सड़कें यहीं मिलती हैं। 1079 ईस्वी में यह इलाका इब्राहीम गजनवी ने शुरू किया। उससे पहले 977 ईस्वी में शबगत गीन अजोधन के किले को हिन्दू राजे से जीतकर मस्जिदें बनाता गया। अजोधन का नाम पाकपटन फरीद जी ने रखा। पाक यानि पवित्र और पटन यानि पतन। यानि कि सतलुज का “पाक पतन“। अकबर के राज्यकाल में केवल पतन ही रहा। एक दिन सैर करते हुए फरीद जी बशार थवाह नाले की तरफ गए, यह नाला कुछ अधिक गहरा हो गया था। उस समय उसका निरमल जल हवा से लहरा रहा था, कुछ लोग उसमें स्नान कर रहे थे और कुछ उसमें से पानी भरकर ले जा रहे थे। किश्तियों की बेड़ियाँ पानी में बेचैन सी थीं। आपने खुशी और उल्लास से कह दिया, “यह पाक पतन है“, जो कुछ श्रद्धालूओं ने सुन लिया और शोर मचा दिया कि हजरत फरीद जी ने शहर का नाम पाक पतन रख दिया है। धीरे-धीरे यह नाम प्रचलित हो गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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