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11. अहँकारी पुरूष को उपदेश

दिल्ली के पश्चिम में उस समय हाँसी पुराना शहर था। हाँसी में एक अमीर बशीर अहमद रहता था, राज पलटने के कारण वह हिन्दू से मुस्लमान बन गया था, पर उसका बिगड़ा स्वभाव नही बदला। वह अहँकारी और कामी था। उसे महल और घर-जायदाद का बहुत ही अभिमान था। एक दिन तो उसने नीचता की हद कर दी। वह एक गरीब माँ-बाप की कन्या को उठाकर जबरदस्ती अपने महल में ले आया। उसके गरीब बलहीन माँ-बाप फरीद जी के दरबार में फरियाद लेकर पहुँचे और कहा, “हमारी जवान पुत्री को बशीर अहमद जोर जबरदस्ती से उठा ले गया है। हम लड़की को लेने गए तो धक्के मारकर बाहर निकाल दिया।“ फरीद जी ने माला फेरते हुए कहा: बच्चों ! “आपकी बेटी पाकदामन रहेगी, आ जाएगी। अहँकारी का अँहकार इसी बहाने ही परमात्मा ने शायद दूर करना हो।“ उधर बशीर अहमद जब कन्या के पास जाकर उसे ललचाई नजरों से देखने लगा तो अचानक उसके पेट में असहनीय दर्द उठा। पीड़ा ऐसी उठी कि वह एक जगह पर इक्टठा होकर लोटपोट होने लगा। उसकी माँ और तीनों पत्नियों को चिन्ता होने लगी। उन्हें फरीद जी की याद आने लगी। हकीम को बुलाया गया पर वह पड़ोस के गाँव में किसी के उपचार के लिए गया हुआ था। आखिर बशीर को बिस्तर समेत उठाकर फरीद जी के दरबार में लाया गया। बशीर को बिस्तर समेत देखकर फरीद जी ने यह वचन उचारे:

फरीदा गरबु जिन्हा वडिआईआ धनि जोबनि आगाह ।।
खाली चले धणी सिउ टिबे जिउ मीहाहु ।।105।। अंग 1383

अर्थ: अहँकारी और जवानी पर अभिमान करने वाले पुरूष ऐसे ही जग से खाली चले जाते हैं जैसे बहुत वर्षा होने पर भी ऊँचे टोए खाली रह जाते हैं। बशीर की माँ बोली: फरीद जी ! यह दर्द से तड़प रहा है, कृपा कीजिए। इसे कोई दवा दीजिए जिससे दर्द से मुक्ति मिल सके। फरीद जी ने कहा: सुनो ! जिस कन्या की दर्द भरी पुकार से यह दर्द हो रहा है उसे तो आपने महलों में कैद कर रखा है। मँदे कार्य करने वालों को ऐसे ही पीड़ा होती है। बशीर की माँ ने कहा: फरीद जी ! मुझे तो इस बात का ज्ञान नहीं। फरीद जी ने कहा: आपको नहीं पता ! परन्तु जिसे पीड़ा हो रही है उसे तो पता है। फरीद जी ने कहा कि इसे ले जाओ और कन्या को आजाद करो। फरीद जी ने उस समय यह श्लोक उच्चारण किया:

फरीदा वेखु कपाहै जि थीआ जि सिरि थीआ तिलाह ।।
कमादै अरू कागदै कुंने कोइलिआह ।।
मंदे अमल करेदिआ एह सजाइ तिनाह ।।49।। अंग 1380

अर्थ: जिस प्रकार कपास के वड़ेवें में से रूई निकालने के लिए उसे बेलन से बेला जाता है, तिलों में से तेल निकालने के लिए उन्हें कोल्हू में पीड़ा जाता है, चुल्हे में कोयला जलाया जाता है, उसी प्रकार वह स्त्री पुरूष जो कुकर्म करते हैं, उनकी रूहों को भी ऐसी सजा मिलेगी। वह इस दुनिया में भी दुख पाएँगे और अगली दुनिया में भी हिसाब देंगे और सजा काटेंगे। जीवित अवस्था में गुरूमुख और दरवेश समझाते हैं पर सुनता कोई नहीं:

जितु दिहाड़ै धन वरी साहे लए लिखाइ ।।
मलकु जि कंनी सुणीदा मुहु देखाले आइ ।।
जिंदु निमाणी कढीऐ हडा कू कड़काइ ।।
साहे लिखे ने चलनी जिंदू कूं समझाई ।।
जिंदु वहुटी मरणु वरू लै जासी परणाइ ।।
आपण हथी जोलि कै कै गलि लगै धाइ ।।
वालहु निकी पुरसलात कंनी न सुणीआइ ।।
फरीदा किड़ी पवंदीई खड़ा न आपु मुहाइ ।।1।। अंग 1377

अर्थ: दुनिआवी मिसाल देकर फरीद जी दुनिया के जीवों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि जैसे जब लड़की की मँगनी की जाती है तो उसी दिन शादी की तिथि नीयत कर ली जाती है। उसी तय दिन उस लड़की को ब्याह कर चले जाना है। उसी प्रकार मनुष्य के जन्म के साथ ही उसकी मौत का दिन निश्चित हो जाता है, मौत का फरिश्ता आ हाजिर होता है और जीव आत्मा को ले जाता है। अन्तिम समय शरीर को कष्ट होना होता है, उस समय किसी के गले लगना दुल्हन यानि जीव आत्मा के लिए कठिन होता है, अपने कर्मों और अज्ञानता की समझ लगती है। जैसे ही कन्या फरीद जी के दरबार में पहुँची तो बशीर अहमद का दर्द अचानक खत्म हो गया। दरबार में बैठे हुए सभी लोगों ने यह कौतक देखा तो सभी दँग रह गए और फरीद जी की महिमा गाने लगे। बशीर अपने महलों में गया तो उसका जीवन पूर्ण रूप से बदल गया। वह फकीरी स्वभाव वाला बन गया और फरीद जी के डेरे पहुँचकर सेवा करने लगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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