10. हाँसी से दिल्ली और दिल्ली से
हाँसी
फरीद जी हाँसी में थे तो उन्हें अपने मुर्शिद काकी जी के निधन की सूचना मिली। यह
खबर उनके लिए असहनीय थी। वह उसी समय दिल्ली के लिए रवाना हो गए। वहाँ उन्होंने अपने
मुर्शिद के मिशन को अमर रखने की प्रतिज्ञा ली। उन्होंने अपने मुर्शिद की सभी वस्तुएँ
सम्भाल लीं, खिरका (गोदड़ी), आसा (डण्डा), मुसल्ला (कँबली) को लेकर मुर्शिद यानि गुरू
की कब्र के पास ही रहने लगे। फरीद जी अनेकों अजमतों यानि करामातों के मालिक थे। उनके
पास रोग पीड़ितों का ताँता लगा रहता था। एक रोगी जो ठीक हो जाता तो वह दस और को भेज
देता। फरीद जी पहले तो सबको उपदेश देते, परमात्मा की एकता, मेल मिलाप व बँदगी का।
आपने बाणी में फरमाया है:
फरीदा जिन्ही कंमी नाहि गुण ते कंमड़े विसारि ।।
मतु सरमिंदा थीवही सांई दे दरबारि ।।59।। अंग 1381
फरीद जी कह रहे हैं कि जिन कार्यों का कोई अच्छा लाभ प्राप्त नहीं
होना, वह काम नहीं करना चाहिए। यदि गुणहीन कार्य किए जाएँ तो परमात्मा के दरबार में
जाकर शर्मसार होना पड़ता है। फरीद जी ने कहा कि काले कपड़े पहनकर कोई दरवेश नहीं बन
जाता:
फरीदा काले मैडे कपड़े काला मैडा वेसु ।।
गुनही भरिआ मै फिरा लोकु कहै दरवेसु ।।61।। अंग 1381
अर्थ– यदि फकीर होकर काले कपड़े पहनता है, पर मन-बुद्धि में पाप
करने का ख्याल है, बेशक लोग दरवेश यानि त्यागी फकीर समझें, पर वह दरवेश नहीं। उसे
अपने गिरेबान में देखना चाहिए। सिदक और भरोसा रखना अक्लों वाला आदमी भूल जाता है और
“मैं“, “मेरी“ के जाल में फँस जाता है। कभी ध्यान से उन पक्षियों की ओर नहीं देखता
जो जँगलों में बसते हैं:
फरीदा हउ बलिहारी तिन्ह पंखीआ जंगलि जिन्हा वासु ।।
ककरू चुगनि थलि वसनि रब न छोडनि पासु ।।101।। अंग 1383
अर्थ: युगों से पक्षी, जीव व जानवर आकाश, पाताल एँव जल में बसते
हैं जैसे उस करतार ने उनका दाना पानी लिखा है वैसे चुगते हैं। उनकी विशेषता यह है
कि वह किसी क्षण अपने परमात्मा को नहीं भूलते। मनुष्य को तो परमात्मा ने कायनात का
सरदार बनाया है, अक्ल व ज्ञान का मालिक बनाया है, वह परमात्मा को याद नही रखता और
दुख भोगता फिरता है। एक दिन एक बुर्जुग मुस्लमान हाँसी से फरीद जी के दरबार में आया,
जो फकीरी लिबास में था। उसने कहा, दरवेश जी ! मैं हाँसी से आया हूँ, हाँसी की संगत
आपके प्यार-विछोड़े में व्याकुल है। प्रत्येक दिन आपके खाली आसन के दर्शन करके ही जी
रहे हैं। आपसे विनम्र निवेदन है कि आप हाँसी चलिए और व्याकुल हो रहे स्त्री पुरूषों
को धैर्य दीजिए। फरीद जी ने कहा, हे अल्लाह के बँदे ! यहाँ से भी जाना कठिन है, खुदा
को याद करो, खुदा से प्यार करो। फरीद जी ने उसे बहुत समझाया पर वह अपनी जिद पर अटल
रहा। आखिर उसकी दृढ़ता देखकर फरीद जी ने दिल्ली का दरबार दूसरे सूझवान चेलों के
सपुर्द करके हाँसी जाने की तैयारी की। वहाँ पहुँचे तो आशा में इन्तजार कर रहे लोगों
की बाढ़ सी आ गई। श्रद्धालूओं ने दर्शन करके अपने मन की प्यास मिटाई।