39. मरड़ गाँव और भट्टीवाल में प्रवेश
भूतविँड से चलकर भक्त नामदेव जी रास्ते में आए कई गाँवों में सत्य उपदेश देकर गाँव
“मरड़“ जिला गुरदासपुर में आ टिके। इस स्थान पर भी सतसंग का प्रवाह चल पड़ा और
लोग-वाग दूर-दूर से आने लग पड़े। यहाँ पर भी भक्त नामदेव जी ने लोगों को गल्त रास्ते
यानि मूर्ति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा आदि से हटाकर परमात्मा के नाम से जोड़ा।
गाँव बरड़ में भी भक्त नामदेव जी की याद में शानदार गुरूद्वारा कायम है। जहाँ पर
अमवस्या वाले दिन भारी मेला लगता है। इस स्थान से चलकर भक्त नामदेव जी इसी जिले के
नगर “भट्टीवाल“ में आ गए। पहले भक्त नामदेव जी ने गाँव भट्टीवाल के बाहर जँगल में
अपना डेरा डाला। इसी रास्ते से एक संत सेवक माई निकली जिसने भक्त नामदेव जी को खाना
खिलाया और गाँव में जाकर सबको बताया कि अपने गाँव के बाहर जँगल में एक महापुरूष
पधारे हुए हैं। यह बात सुनकर उस गाँव के प्रेमी आदमी भक्त नामदेव जी के पास आए और
विनती करके अपने गाँव ले गए। इस गाँव में भक्त नामदेव जी ने डेरा डाला और सतसंग करना
प्रारम्भ कर दिया। गाँव वाले भक्त नामदेव जी की बड़ी ही श्रद्धा के साथ सेवा करते
थे। भक्त नामदेव जी एक दिन सतसंग में उपदेश कर रहे थे कि उस परमात्मा की भक्ति करो
वो अपने प्यारों की हर समय सहायता करता है। इस सतसंग में उन्होंने बाणी गायन की
जिसमें प्रहलाद भक्त जी का प्रसँग सुनाया जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग
भैरउ“ में दर्ज है:
संडा मरका जाइ पुकारे ॥
पड़ै नही हम ही पचि हारे ॥
रामु कहै कर ताल बजावै चटीआ सभै बिगारे ॥१॥
राम नामा जपिबो करै ॥
हिरदै हरि जी को सिमरनु धरै ॥१॥ रहाउ ॥
बसुधा बसि कीनी सभ राजे बिनती करै पटरानी ॥
पूतु प्रहिलादु कहिआ नही मानै तिनि तउ अउरै ठानी ॥२॥
दुसट सभा मिलि मंतर उपाइआ करसह अउध घनेरी ॥
गिरि तर जल जुआला भै राखिओ राजा रामि माइआ फेरी ॥३॥
काढि खड़गु कालु भै कोपिओ मोहि बताउ जु तुहि राखै ॥
पीत पीतांबर त्रिभवण धणी थ्मभ माहि हरि भाखै ॥४॥
हरनाखसु जिनि नखह बिदारिओ सुरि नर कीए सनाथा ॥
कहि नामदेउ हम नरहरि धिआवह रामु अभै पद दाता ॥५॥ अंग 1165
अर्थ: (“संडा और “मरका“ दोनों पढ़ाने वाले, हरनाकश (प्रहलाद के
पिता) के पास जाकर पुकार करने लगे कि हम बहुत खप गए हैं पर प्रहलाद नहीं पड़ता। राम
नाम जपता है और साथ में छैने भी बजाता है। उसने अपने साथ और संगी साथियों अर्थात
बालकों को भी बिगाड़ दिया है। वह राम नाम का जाप करता है और दिल में भी उसका ही
ध्यान रखता है। प्रहलाद की माता यानि हरनाकश की पटरानी कहती है कि राजा ने सारी
सृष्टि अपने वश में की हुई है परन्तु वह प्रहलाद को अपने वश में नहीं कर पाया। उसने
तो कुछ और ही सलाह की हुई है अर्थात तेरे मारने का सँकल्प कर लिया है। दुष्ट सभा के
मँत्रियों ने और राजा ने यह सलाह कर ली कि तूँ (प्रहलाद) राम नाम जपना बन्द कर दे।
हम तुझे नहीं मारेंगे। प्रहलाद को पहाड़ से गिराने पर, पानी में डुबाने पर और आग में
जलाने पर भी परमात्मा ने उसे अपनी शक्ति से बचा लिया। अंत में उसके पिता हरनाकश ने
तलवार निकाल ली और कहा कि अब बता तुझे रखने वाला कौन है। प्रहलाद ने कहा कि वह
परमात्मा ही है और उसने एक खम्बे की तरफ इशारा करके कहा कि मेरा राखा इस खम्बे में
है। तभी खम्बें में से परमात्मा की शक्ति प्रकट हुई और उसने नरसिंह रूप धारण करके
हरनाकश को अपने नाखूनों से मार दिया और मनुष्यों और देवताओं को राहत दी। नामदेव जी
कहते हैं कि हम और आप उसका नाम जपें क्योंकि परमात्मा अभय पद अर्थात निरभय पदवी देता
है।)" इस भक्ति भाव का प्रसँग सुनकर सभी लोगों पर बड़ा ही गहरा प्रभाव हुआ। एक दिन
सभी सतसंगियों ने भक्त नामदेव जी से विनती की कि महाराज जी ! हमें यहाँ पर जल की बड़ी
तकलीफ है, क्योंकि पानी बहुत गहरा होने के कारण कुँआ नहीं है और भी कोई प्रबंध नहीं
है, जिससे पशू आदि पानी पी सकें। भक्त नामदेव जी एक दिन सभी सतसंगियों को साथ लेकर
जँगल की तरफ गए और एक स्थान पर रूककर हुक्म किया कि इस स्थान को खोदो। जब उस स्थान
पर थोड़ी सी खुदाई की गई तो वहाँ से मीठा जल निकलने लगा, इस पर सभी लोग प्रसन्न हुए
और भक्त नामदेव जी के गुण गाने लगे। इस स्थान पर भक्त नामदेव जी ने एक कुँआ बनवाया।
यह कुँआ और सरोवर अभी तक मौजूद है। जिसका नाम "नामेआणा" करके प्रसिद्ध है, इसके
किनारे वृक्षों की झिड़ी में श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश होता है। यह स्थान
“घुमाण“ नगर से थोड़ी ही दूर है। इस नगर में रहने वाले सभी लोग भक्त नामदेव जी से
प्रेम करते थे, परन्तु एक पुरूष जल्लो भक्त नामदेव जी बड़ा ही श्रद्धालू प्रेमी था,
वह सारा सारा दिन भक्त नामदेव जी के पास ही बैठा रहता था और अमृत बचन सुनकर प्रेम
की तरँग में झूमता रहता और अपना मन हरि सिमरन और हरि चरणों में जोड़े रहता था।