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38. भूत विंड (पँजाब) में उपदेश

भक्त नामदेव जी ने हरिद्वार से चलकर पँजाब के जिले अमृतसर साहिब जी की तहसील भूत विंड में अपना आसन जमा लिया।

नोट: हरिद्वार से पँजाब तक पहुँचने के बीच का कोई इतिहास उपलब्ध नहीं है।

भूत विंड में सुबह शाम सतसंग लगना प्रारम्भ हो गया। जिज्ञासु जुड़ने प्रारम्भ हो गए और कीर्तन का प्रवाह चलना प्रारम्भ हो गया। इस नगर में अड़ौसी नाम की एक विधवा रहती थी जिसका एक पुत्र था। इसे उस विधवा ने मेहनत मजदूरी करके पाला था। एक दिन यह विधवा स्त्री अपने पुत्र को साथ लेकर भक्त नामदेव जी के पास आई। भक्त नामदेव जी ने बालक को प्यार किया और प्रेम सहित अच्छी-अच्छी बातें बताई। बालक को भक्त नामदेव जी की बातें बहुत प्यारी लगीं और वह रोज ही दोनों समय सतसंग में आने लग गया। यह बालक जैसे-जैसे सतसंग में आकर उपदेश सुनता गया वैसे-वैसे इसके मन में बड़ा असर होता। यह एक प्रकार से भक्त नामदेव जी का श्रद्धालू प्रेमी बन गया और उसे धर्म की लग्न लग गई। एक दिन रात के समय इस प्रेमी बालक के पेट में दर्द शुरू हो गया। उसकी गरीब माता ने बड़ा इलाज किया पर वह सही नहीं हो सका और मर गया। इसकी माता अड़ौली ने बड़ा विलाप किया और भक्त नामदेव जी को सन्देश भेजा। भक्त नामदेव जी अपने श्रद्धालू प्रेमी की मौत की खबर सुनकर उसी समय उसके घर पर चलकर आए। माता अधीर होकर हुए भक्त नामदेव जी से बोली: हे महाराज ! मुझ गरीबन का मुश्किलों के साथ पाला-पोसा हुआ बच्चा चला गया। मुझ गरीबन का एक ही सहारा था वो भी छूट गया। यह तो सतसंगी था। इसे बचा लो जिससे यह फिर से जी उठे।  भक्त नामदेव जी ने कहा: माई ! यह तो परलोक में जा चुका है। अब इसमें हम क्या कर सकते हैं। माई ने कहा: महाराज जी ! आप तो समर्थ हो, पूर्ण हो, आप परमात्मा से मेरे बालक की जान बक्शी करवा दो। माता यह बोलते-बोलते वह बहुत ही जोर-जोर से रोने और बिलखने लगी। भक्त नामदेव जी को बड़ी ही दया आई वह सोचने लगे कि एक तो यह विधवा है और दूसरा इसके जीने का सहारा इसका पुत्र ही मृत्यु को प्राप्त हो गया है। उन्होंने बाणी गायन की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग सारंग“ में दर्ज है:

दास अनिंन मेरो निज रूप ॥
दरसन निमख ताप त्रई मोचन परसत मुकति करत ग्रिह कूप ॥१॥रहाउ॥
मेरी बांधी भगतु छडावै बांधै भगतु न छूटै मोहि ॥
एक समै मो कउ गहि बांधै तउ फुनि मो पै जबाबु न होइ ॥१॥
मै गुन बंध सगल की जीवनि मेरी जीवनि मेरे दास ॥
नामदेव जा के जीअ ऐसी तैसो ता कै प्रेम प्रगास ॥२॥३॥ अंग 1252, 1253

अर्थ: परमात्मा कहते हैं कि मेरे अन्नय दास मेरा ही रूप हैं। उनके थोड़े से दर्शनों से तीनों प्रकार के तापों का नाश होता है और उनके छोह से सँसार के इस अँधे कुँऐं से मुक्त हो जाते हैं। मेरी बनाई हुई रीति भक्त तोड़ सकते हैं अर्थात मेरे बन्धनों से भक्त छुड़वा सकते हैं, पर भक्तों के बन्धनों को मैं नहीं छुड़वा सकता अर्थात भक्त द्वारा किया हुआ में नहीं मोड़ सकता। किसी समय भक्त अपने प्रेम भजन की डोरी से मुझे बाँध लें तो मेरे पास कोई जवाब नहीं बन सकता। मैं हर एक के गुणों के कारण उनसे बँध जाता हूँ। फिर मैं सभी की जीवन रूप बूटी हूँ और मेरी जीवन बूटी मेरे दास हैं। नामदेव जी कहते हैं कि हे भाईयों ! जिस परमात्मा के जीव में ऐसी बात है। अर्थात भक्तों से प्रीति है उसके साथ हमें अपने प्रेम का प्रकाश करना चाहिए। इसका साफ भाव है कि परमात्मा के द्वारा किया गया भक्त मोड़ सकता है, परन्तु भक्त के द्वारा किया गया परमात्मा नहीं मोड़ सकता और भक्त की किसी भी इच्छा को परमात्मा पूर्ण कर देता है। इसी प्रकार जब उस विधवा स्त्री ने भक्त नामदेव जी के आगे दर्द भरी विनती की कि मेरा बच्चा जीवित हो जाए, मेरा एक ही सहारा है, मेरा भी जीना, मरने के बराबर हो जाएगा। तब भक्त नामदेव जी ने परमात्मा के आगे विनती की जिसे परमात्मा ने स्वीकार कर लिया और वह बच्चा राम राम करता हुआ उठ बैठा। वहाँ पर बहुत सारी भीड़ एकत्रित थी जो कि यह देखकर हैरान हो गई। माता तो मारे खुशी के चिल्ला ही पड़ी कि मेरा बच्चा जीवित हो गया, मेरा बच्चा जीवित हो गया। अब वह बच्चा भक्त नामदेव जी के पास ही सेवा में रहने लगा। उसका नाम भक्त नामदेव जी ने “बहुर दास“ रखा। इस गाँव से कूच करने लगे तो उन्होंने उस विधवा माई से कहा कि यह बच्चा आपके पास ही रहेगा और जब हम याद करेंगे तब हमारे पास आ जाना। भक्त नामदेव जी ने अगले दिन इस गाँव से कूच किया।

नोट: भूत विंड में भक्त नामदेव जी का यादगारी स्थान अभी तक मौजूद है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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