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37. हरिद्वार में उपदेश

भक्त नामदेव जी वृन्दावन से चलकर कई लागों को तारते हुए हरिद्वार पहुँचे। वहाँ पर एक स्थान पर सुबह शाम सतसंग का प्रवाह चला दिया। भक्त नामदेव जी का प्रवाह सभी वहमों को छुड़वाकर और कर्मकाण्ड, मूर्ति-पूजा और देवी-देवताओं की पूजा से हटाकर केवल परमात्मा के नाम सिमरन का था। एक दिन उन्होंने गँगा किनारे बाणी उच्चारण की:

गँगा जउ गोदावरि जाईऐ ।।
कुंभि जउ केदार नाईऐ ।।
गोमती सहस गऊ दानु कीजै ।।
कोटि जउ तीरथ करै तनु जउ हिवाले गारे रामनाम सरि तऊ न पूजै ।।

अर्थ: ऐ लोगों ! सुनो, गँगा आदि तीर्थों का स्नान, परमात्मा के नाम की बराबरी नहीं कर सकता। आप बेशक कुम्भ पर जाओ, केदारनाथ पर जाकर स्नान करो, गोमती पर सैंकड़ों गाय दान करो, अपने शरीर को हिमालय पर्वत में गला दो, फिर भी हरि भजन का मुकाबला नहीं कर सकोगे। कुछ आदमियों ने कहा: लो जी ! यह अच्छा संत आया है जो तीर्थ के महात्म को नहीं जानता। भक्त नामदेव जी ने एक और बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग बसंत“ में दर्ज है:

साहिबु संकटवै सेवकु भजै ॥
चिरंकाल न जीवै दोऊ कुल लजै ॥१॥
तेरी भगति न छोडउ भावै लोगु हसै ॥
चरन कमल मेरे हीअरे बसैं ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे अपने धनहि प्रानी मरनु मांडै ॥
तैसे संत जनां राम नामु न छाडैं ॥२॥
गंगा गइआ गोदावरी संसार के कामा ॥
नाराइणु सुप्रसंन होइ त सेवकु नामा ॥३॥१॥ अंग 1195

अर्थ: जब साहिब पर संकट आता है तो सेवक भाग जाते हैं। जब परमात्मा जीव को दुख दे तो सेवक दौड़ जाए अर्थात दुख के समय परमात्मा छोड़ दे तो वह चिरँकाल नहीं जीता और चारों कुलों (नानके, दादके) को शर्म दिलवाता है। परमात्मा में तेरी भक्ति नहीं छोड़ुँगा, चाहे लोग हँसें। आपके चरण कमल मेरे दिल में बसते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपना धन किसी को नहीं देता। इसी प्रकार संत जन राम नाम को नहीं छोड़ते। गँगा, गोदावरी आदि तीर्थों पर फिरते रहना सँसारी जीवों की कल्पना है और इससे परमात्मा प्रसन्न नहीं होता। भक्त नामदेव जी कहते हैं कि लेकिन जिस पर परमात्मा प्रसन्न हो जाए वह सेवक स्वीकार होता है।

(नोट: परमात्मा केवल तभी प्रसन्न होता है जबकि उसका नाम जपा जाए और सभी लोगों को एक समान माना जाए और हर प्राणी में उस परमात्मा को व्याप्त जानकर उसकी इज्जत की जाए। आप चाहे गँगा स्नान करें या फिर कुम्भ स्नान करें। और रोज ही तीर्थों पर स्नान करते फिरें और भटकते फिरें तो भी आप कभी भी मुक्ति नहीं पा सकते और न ही उस परमात्मा को प्रसन्न कर सकते हो। देवी-देवताओं की पूजा करना, ब्रहमा, विष्णु और शिव आदि की पूजा करना, जन्मे महापुरूषों, भक्तों, गुरूओं जैसे– राम, कुष्ण, साईं बाबा, गुरू नानक देव यानि सभी 10 गुरू, सारे भक्त और मुहम्मद साहिब आदि की पूजा अगर कोई जिन्दगी भर भी करे और उसने नाम ना जपा हो तो वह मुक्ति नहीं पा सकता। क्योंकि ये तो सारे परमात्मा के दास हैं। गुरू तो यह तक बोल गए हैं: “जो हमको परमेसर उचरहि, ते सब नरक कुंड में परहि“ यानि जो भी हमें परमेश्वर जानकर हमारी पूजा करेगा और परमात्मा का नाम नहीं जपेगा वह नर्क कुण्ड में जाएगा। परमात्मा तो अपने पैगम्बर भेजता ही रहता है। हमें उन पैगम्बरों के पैगाम की तरफ ध्यान देना चाहिए ना कि उनकी मूर्तियाँ बनाकर और उन्हें ही परमात्मा मानकर उनकी पूजा करनी चाहिए। कुछ लोग कहते हैं कि हमारी श्रद्धा है, तो भाई साहब यह श्रद्धा नहीं हैं, यह तो अन्धी श्रद्धा है, जो अन्धकार की गहरी खाई में धकेल देती है। और लाखों जूनियों में दुख भोगने का मुख्य कारण बनती है। हम यह नहीं कह रहे कि इनका सत्कार नहीं करो, ये तो वो महापुरूष थे, जिन्होंने परमात्मा से साक्षात्कार किया था, किन्तु इन्हें परमात्मा मानकर इनकी पूजा करना इनका अपमान करने के बराबर ही है। जिस प्रकार से सिक्ख धर्म में किया जाता है कि गुरूओं का पैगाम यानि गुरूबाणी को ही गुरू माना जाता है और केवल परमात्मा का ही यानि वाहिगुरू अर्थात राम नाम जपा जाता है। यह जान लो कि इस सृष्टि में अभी तक जिसने भी जन्म लिया है, उसमें से कोई भी परमात्मा नहीं है। बल्कि परमात्मा ही उन्हें शक्तियाँ देकर भेजता है, क्योंकि परमात्मा आप कभी भी जन्म नहीं लेता वह अजन्मा अर्थात अजूनी है। वह परमात्मा आप सारे जीवों में व्याप्त है।)

जब हरिद्वार में सारे लोगों ने इस प्रकार का ज्ञान हासिल किया तो उन्होंने उक्त सारे फोकट कर्म छोड़ दिए और सीधा मार्ग प्राप्त किया। यहाँ पर कुछ समय ठहरकर भक्त नामदेव जी पँजाब चले गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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