35. जँगलियों का गाँव
मारवाड़ में ही मण्डल नगर के पास एक घने जँगल में जँगली लोग रहते थे, जिनका काम, आए
गए राही को मारना और लूटना था। इसी कारण इस इलाके के आदमी इस स्थान को भूतों का
स्थान कहते थे। इसी कारण से कोई जानकार आदमी इस स्थान से नहीं निकलता था। अगर कोई
भूला-भटका और अन्जान आदमी इस स्थान से गल्ती से निकल जाता था तो फिर वह बचकर नहीं
जाता था। भक्त नामदेव जी अपनी मौज में चलते गए और उन जँगली लोगों की नगरी में से जा
निकले। वो सभी इन्हें देखकर बड़े ही प्रसन्न हुए और इस खुशी में एकत्रित होकर जँगली
नाच करने लग पड़े। वह समझने लगे कि हमारा शिकार आ फँसा, पर वह बेवकूफ यह नहीं जानते
थे कि आज वो आप ही शिकार हो जाएँगें। जब भक्त नामदेव जी एक स्थान पर बैठ गए तो जँगली
लोग भाले, सोटे, तीर कमान आदि शस्त्र लेकर आ गए। पर जब उन्होंने भक्त नामदेव जी की
आँखों से आँखें मिलाई तो वह वहीं ठहर गए। भक्त नामदेव जी ने उनकी आँखों में अपनी
आँखें डालकर उन्हें निहाल कर दिया था। बस फिर क्या था उनका सरदार भक्त नामदेव जी के
चरणों में गिर पड़ा और अपने द्वारा किए गए कुकर्मों की माफी माँगने लगा। जिस प्रकार
से पारस, लोहे से स्पर्श हो जाए तो वह सोना बन जाता है, उसी प्रकार भक्त नामदेव जी
के एक बार देखने भर से और उनके चरणों के स्पर्श से वह भारी डाकू, निर्दयी, कातिल,
बे-रहम और पापी जीव अपने गुनाहों का खात्मा करा गए। भक्त नामदेव जी ने उनको उपदेश
देते हुए बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग भैरउ“ में दर्ज
है:
पर धन पर दारा परहरी ॥ ता कै निकटि बसै नरहरी ॥१॥
जो न भजंते नाराइणा ॥ तिन का मै न करउ दरसना ॥१॥ रहाउ ॥
जिन कै भीतरि है अंतरा ॥ जैसे पसु तैसे ओइ नरा ॥२॥
प्रणवति नामदेउ नाकहि बिना ॥ ना सोहै बतीस लखना ॥३॥२॥ अंग 1163
अर्थ: पराया धन, पराई स्त्री जिसने त्यागी है, परमात्मा उसके
पास बसता है। जो पुरूष उस परमात्मा को याद नहीं करते। मैं उनकी शक्ल भी नहीं देखना
चाहता। जिनके मन में परमात्मा का अंतरा अर्थात जो लोग उस परमात्मा को मन में नहीं
बसाते। वह आदमी पशू समान हैं। नामदेव जी कहते हैं कि जिस प्रकार बत्तीस सुलक्षणों
वाला आदमी नाक के बिना सुन्दर नहीं लगता। इसी प्रकार हरि नाम के बिना इन्सान बुरा
हो जाता है। भक्त नामदेव जी के इस शब्द रूपी बाण ने सभी के कलेजे चीर दिए और उनके
जन्म जन्माँतर के पाप काट दिए और काम, क्रोध, लोभ, मोह एँव अहँकार आदि विकारों से
छुटकारा दिलवा दिया। भक्त नामदेव जी तीन दिन तक इस स्थान पर रहे और यहाँ पर सतसंग
होता रहा और यह पाप की नगरी धर्म स्थान बन गई। वहाँ पर रहने वाले सभी लोगों ने
इकरार किया कि हम हर रोज अमृत समय यानि ब्रहम समय में उठकर स्नान करके परमात्मा का
नाम सिमरन किया करेंगे और पाप कर्म नहीं करेंगे।