29. ब्रहमज्ञान और बाँटकर खाना
जगत यात्रा के लिए भक्त नामदेव जी ने अपने घर और नगर से चलकर रास्ते में एक स्थान
पर डेरा डाला और उस सरब व्यापक परमात्मा के जाप में मस्त हो गए। कुछ समय बाद वो खाना
बनाकर खाने ही वाले थे कि एक कुत्ता आया और उनकी कुछ रोटियाँ उठाकर ले गया। अगर ओर
कोई होता ता सोटे से उस कुत्ते का सिर ही तोड़ देता, पर भक्त नामदेव जी तो
ब्रहमज्ञानी थे वो हर जीव को परमात्मा और गुरू का रूप समझकर उस कुत्ते से कहते हैं–
कि आप रूखी रोटी नहीं खाओ स्वामी, आ जाओ हम मिल बाँटकर खा लेते हैं अर्थात बाँट लेते
हैं और आप अपना हिस्सा ले जाओ। आप अपने हिस्से का घी भी ले जाओ। यह कहकर भक्त
नामदेव जी घी की कटोरी लेकर उसके पीछे भागे और कहने लगे कि स्वामी अपने हिस्से का
घी भी ले जाओ।
रूखड़ी ना खाइओ सुवामी रूखड़ी ना खाइओ ।।
आपणा बांटा लै कर जइओ रूखड़ी ना खाइओ ।।
इस प्रसँग का दूसरा भाव मिल बाँटकर खाना है, क्योंकि अगर किसी
आदमी के दिल में जरूरतमँद आदमी या भाई के लिए प्यार नहीं, दर्द नहीं असल में वह आदमी
कहलाने के लायक ही नहीं है। जो एक आदमी आप, थाली में आठ-आठ कटोरियाँ दाल-भाजी की
रखकर खाता है और दो समय के स्थान पर चार-चार समय खाता है, पर उसके पास रहने वाला
गरीब परिवार दो वक्त के स्थान पर केवल एक ही वक्त भी पेट भरकर रोटी नहीं खाता और
उसके बच्चे भुख के दुख से कुरलाते हैं तो आप ही जानों कि जरूरत वाले से ज्यादा खाने
वाला किस प्रकार आदमी हो सकता है ? जबकि भले आदमियों की बातें तो यहाँ तक सुनी गईं
हैं कि कोई आदमी कई दिनों से भुखा हो और उसे एक रोटी भी मिले और उस समय कोई भुखा
उसके पास आ जाए तो वह उसमें से भी आधी उसे दे देगा, यानि स्पष्ट है कि मिल बाँटकर
खाएगा। भक्त नामदेव जी तो इन्हीं परोपकार वाली बातों का प्रचार करने के लिए ही
सँसार में आए थे। भक्त नामदेव जी कहते हैं कि अगर आपके पास आदमी क्या, अगर कोई
हैवान भी आ जाए और वह जरूरतमँद हो तो उसकी मदद परमात्मा का बन्दा समझकर अवश्य ही
करनी चाहिए। तभी तो उन्होंने कुत्ते से कहा कि रोटी तो ले जाओ पर आप रूखी रोटी क्यों
ले जा रहे हो, आप अपने हिस्से का घी और दाल-भाजी भी तो लेते जाओ। यह बाँटकर खाने का
और जरूरतमँद पर तरस और दया करने का सच्चा नमूना है, जिससे हम सभी को शिक्षा लेनी
चाहिए।