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28. जगत यात्रा की तैयारी करनी

भक्त नामदेव जी महाराष्ट्र में हरि नाम का ढिँढोरा अच्छी तरह से पीट चुके थे पाखाण्डों और मूर्ति-पूजा और देवी-देवताओं की पूजा, व्रत आदि का खुले रूप में खण्डन और विरोध कर चुके थे और अनगिनत लोग इन कर्मकाण्डों को छोड़कर परमात्मा का नाम जपने लग गए थे। भक्त नामदेव जी अब महाराष्ट्र से बाहर जाकर इस ज्ञान के प्रकाश को फैलाकर कर्मकाण्ड और अज्ञानता को दूर करना चाहते थे। इसलिए आपने जाने की तैयारी कर ली। उनके परिवार और अन्य श्रद्धालूओं, मित्रों आदि को यह सुनकर बड़ी चिन्ता हुई। भक्त नामदेव जी को समझाने का बहुत प्रयत्न किया गया पर भक्त नामदेव जी अपने इरादे पर दृढ़ थे। उन्होंने मन को समझाने के लिए बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग सारंग“ में दर्ज है:

काएं रे मन बिखिआ बन जाइ ॥ भूलौ रे ठगमूरी खाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे मीनु पानी महि रहै ॥ काल जाल की सुधि नही लहै ॥
जिहबा सुआदी लीलित लोह ॥ ऐसे कनिक कामनी बाधिओ मोह ॥१॥
जिउ मधु माखी संचै अपार ॥ मधु लीनो मुखि दीनी छारु ॥
गऊ बाछ कउ संचै खीरु ॥ गला बांधि दुहि लेइ अहीरु ॥२॥
माइआ कारनि स्रमु अति करै ॥ सो माइआ लै गाडै धरै ॥
अति संचै समझै नही मूड़्ह ॥ धनु धरती तनु होइ गइओ धूड़ि ॥३॥
काम क्रोध त्रिसना अति जरै ॥ साधसंगति कबहू नही करै ॥
कहत नामदेउ ता ची आणि ॥ निरभै होइ भजीऐ भगवान ॥४॥१॥ अंग 1252

अर्थ: हे मन ! विषयों के जँगल में क्यों जाता है। भूला हुआ मन ठगा जाता है अर्थात उस परमात्मा को भूलकर परिवार के मोह में फँस जाता है। जिस प्रकार मछली पानी में रहती है और जीभ के स्वाद में लोहे की कुण्डी को निगल जाती है और फँस जाती है। इसी प्रकार मन गृहस्थी के मोह में फँस जाता है। जिस प्रकार मधुमक्खी शहद एकत्रित करती है पर शहद निकालने वाला मूँह में स्वाद धूँखाकर शहद ले जाता है। इसी प्रकार जीव माया के लिए बहुत कष्ट करता है और उसे प्राप्त करके जमीन में गाढ़ता है (आजकल बैंकों में जमा करवाता है), किन्तु माया वहीं रखी रह जाती है और आप स्वयँ अन्त समय में मिट्टी हो जाता है। जीव काम, क्रोध और तृष्णा की अग्नि में जलता है और साधसँगत नहीं करता। नामदेव जी कहते हैं कि इन विषयों अर्थात सँसारिक मोह को छोड़कर निरभयता से उस परमात्मा का भजन कर और नाम जप। अपने मन को समझाने के लिए और सँसारिक मोह से दूर रहकर परमात्मा की भक्ति को करने के लिए भक्त नामदेव जी एक और बाणी गायन करते हैं जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग बसंत“ में दर्ज है:

लोभ लहरि अति नीझर बाजै ॥ काइआ डूबै केसवा ॥१॥
संसारु समुंदे तारि गुबिंदे ॥ तारि लै बाप बीठुला ॥१॥ रहाउ ॥
अनिल बेड़ा हउ खेवि न साकउ ॥ तेरा पारु न पाइआ बीठुला ॥२॥
होहु दइआलु सतिगुरु मेलि तू मो कउ ॥ पारि उतारे केसवा ॥३॥
नामा कहै हउ तरि भी न जानउ ॥
मो कउ बाह देहि बाह देहि बीठुला ॥४॥२॥ अंग 1196

अर्थ: जिस सँसार सागर में लोभ की लहर एक रस है, हे परमात्मा उसमें मेरा शरीर डूब रहा है। इस सँसार सागर से हे मेरे प्यारे परमात्मा तार ले। हे मेरे बाप बीठला ! तार ले। तृष्णा रूपी हवा के कारण शरीर रूपी बेड़ा (नाव, जहाज) डोल जाता है और मैं इस बेड़े को चला नहीं सकता, क्योंकि में निर्बल हूँ। हे परमात्मा ! आपका अंत किसी ने नहीं पाया। हे परमात्मा ! तूँ मुझ पर दया करके सतिगुरू से मिला दे और मुझे सँसार सागर से पार कर दे। नामदेव जी कहते हैं कि हे परमात्मा ! मैं तैरना नहीं जानता अर्थात ज्ञानहीन हूँ, परमात्मा मुझे ज्ञान रूपी बाँह पकड़ा दे। इस प्रकार ब्रहम ज्ञान का उपदेश देकर भक्त नामदेव जी अपने नगर से यात्रा के लिए चल पड़े।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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