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27. बादशाह का दुशाला

भक्त नामदेव जी ने बादशाह से विदा लेकर कुछ दूर एक नदी के किनारे डेरा डाला। वहाँ पर हरि सिमरन और हरि जस होता रहा। वहाँ से जब भक्त नामदेव जी चलने लगे तो बादशाह के भेजे हुए आदमियों ने विदा ली और कहा कि महाराज ! यह दुशाला बहुत कीमती है, इसे सम्भालकर रखना। भक्त नामदेव जी ने अपने एक सेवक से कहा कि इसे सम्भालने का ही तो झँझट है। ऐसा करो कि इसे नदी में बहा दो ताकि सम्भालने का फिक्र ही मिट जाए और हम निशचित होकर परमात्मा के नाम रस का आनन्द लें। सेवक ने तुरन्त आज्ञा की पालना की और दुशाला नदी में फैंक दिया। बादशाह के आदमी बड़े हैरान हुए और गुस्से में आकर कहने लगे कि देखो ! बादशाह ने इतनी कीमती चीज दी थी और इन्होंने उसकी कोई कद्र नहीं की। वह वापिस आ गए और बादशाह को सारी बात बता दी। बादशाह बुरा मान गया और उसने हुक्म दिया कि भक्त नामदेव जी को वापिस बुला लाओ। भक्त नामदेव जी वापिस बादशाह के पास पहुँच गए। बादशाह रोश वाले लहजे में बोला: महाराज जी ! मैंने आपको इतनी कीमती चीज दी और आपने बेपरवाही में उसे नदी में ही बहा दिया, यह तो ठीक बात नहीं है। भक्त नामदेव जी ने कहा: बादशाह ! जब आपने हमें वह चीज दी थी तो अब तो वह हमारी हो चुकी थी। चूँकि जब वो हमारी हो चुकी थी तो हम अपनी किसी चीज का कुछ भी कर सकते हैं। बादशाह बोला: महाराज ! वो बहुत कीमती चीज थी और वो मैंने आपको प्रयोग करने के लिए दी थी। यदि आपको वह प्रयोग नहीं करनी थी तो उसे नदी में फैंकने की क्या जरूरत थी। आप मुझे वापिस भी कर सकते थे। भक्त नामदेव जी ने मुस्कराकर जवाब दिया कि: बादशाह ! हमने उस नदी में अपनी चीज अमानत के तौर पर रख दी है वहाँ पर ओर भी कई प्रकार की चीजें हैं। बादशाह हैरान होकर बोला: महाराज ! अमानत रखी है तो हमें भी एक बार दिखा दो। इतनी बात कहकर बादशाह भक्त नामदेव जी के साथ चल पड़ा। वह नदी के किनारे पहुँच गए। भक्त नामदेव जी ने कहा: बादशाह ! नदी की लहरों को ध्यान से देखते रहना। जब कुछ मिनिट हुए तो लहरों में से उसी प्रकार के दुशाले नजर आए और इस प्रकार दुशालों की कतार ही लग गई। उसमें कई प्रकार की कीमती दुशालें थीं। बादशाह बोला: महाराज ! मैंने तो आपको केवल एक ही दुशाला दिया था,परन्तु यहाँ पर तो अनगिनत हैं। भक्त नामदेव जी बोले: बादशाह ! इस दुनिया में ईश्वर की बनाई गई वस्तुओं में से कोई किसी को एक चीज देता है तो उसे वह चीज एक से अनेक होकर मिलती है, परन्तु तुम्हारी भूल की वजह से तुम्हें यह नहीं मिलेंगी, तुम केवल इन्हें देख सकते हो। बादशाह उनके चरणों में गिर गया और उनसे विदा ली। अब भक्त नामदेव जी अपने घर पर आ गए और सभी लोगों से मिलने के बाद वह एकाँत में बैठ गए और बाणी गायन करने लगे जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग भैरउ“ में दर्ज है और जिसमें अभी तब के हुए सभी प्रसँगों का सँक्षिप्त वर्णन आता है:

जउ गुरदेउ त मिलै मुरारि ॥ जउ गुरदेउ त उतरै पारि ॥
जउ गुरदेउ त बैकुंठ तरै ॥ जउ गुरदेउ त जीवत मरै ॥१॥
सति सति सति सति सति गुरदेव ॥ झूठु झूठु झूठु झूठु आन सभ सेव ॥१॥ रहाउ ॥
जउ गुरदेउ त नामु द्रिड़ावै ॥ जउ गुरदेउ न दह दिस धावै ॥
जउ गुरदेउ पंच ते दूरि ॥ जउ गुरदेउ न मरिबो झूरि ॥२॥
जउ गुरदेउ त अमृत बानी ॥ जउ गुरदेउ त अकथ कहानी ॥
जउ गुरदेउ त अमृत देह ॥ जउ गुरदेउ नामु जपि लेहि ॥३॥
जउ गुरदेउ भवन त्रै सूझै ॥ जउ गुरदेउ ऊच पद बूझै ॥
जउ गुरदेउ त सीसु अकासि ॥ जउ गुरदेउ सदा साबासि ॥४॥
जउ गुरदेउ सदा बैरागी ॥ जउ गुरदेउ पर निंदा तिआगी ॥
जउ गुरदेउ बुरा भला एक ॥ जउ गुरदेउ लिलाटहि लेख ॥५॥
जउ गुरदेउ कंधु नही हिरै ॥ जउ गुरदेउ देहुरा फिरै ॥
जउ गुरदेउ त छापरि छाई ॥ जउ गुरदेउ सिहज निकसाई ॥६॥
जउ गुरदेउ त अठसठि नाइआ ॥ जउ गुरदेउ तनि चक्र लगाइआ ॥
जउ गुरदेउ त दुआदस सेवा ॥ जउ गुरदेउ सभै बिखु मेवा ॥७॥
जउ गुरदेउ त संसा टूटै ॥ जउ गुरदेउ त जम ते छूटै ॥
जउ गुरदेउ त भउजल तरै ॥ जउ गुरदेउ त जनमि न मरै ॥८॥
जउ गुरदेउ अठदस बिउहार ॥ जउ गुरदेउ अठारह भार ॥
बिनु गुरदेउ अवर नही जाई ॥
नामदेउ गुर की सरणाई ॥९॥१॥२॥११॥ अंग 1166, 1167

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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