24. नदी में डुबाने का यत्न
पिछले प्रसँग में मन्दिर में फँसे हुए ब्राहम्णों ने सीधी राह पर चलने का और भक्त
नामदेव जी से वैर-विरोध न करने का प्रण लिया था। परन्तु उनके कई साथी अभी ऐसे भी थे
जो कि भक्त नामदेव जी के साथ वैर-विरोध रखते थे। एक दिन उन्होंने आपस में बैठकर
योजना बनाई कि वो भक्त नामदेव जी को खत्म कर दें। इस योजना के अर्न्तगत उन्होंने
सलाह की कि जब भक्त नामदेव जी नदी पार जब दूसरे गाँव जाएँ और वापिस आते समय जब वह
बेड़ी पर चड़ें तो मलाह को लालच देकर उन्हें नदी में ही डुबा देना चाहिए। इस योजना को
पूर्ण रूप देने के लिए उन्होंने मलाह को लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया। एक दिन जब
भक्त नामदेव जी नदी पर जब दूसरे गाँव गए तो मलाह ने उन्हें बेड़ी पर चड़ाकर आराम से
पार करा दिया। किन्तु वापिस आते समय उसने बेड़ी में पहले से ही छेद किया हुआ था और
उस छेद को कपड़ा ठुँसकर बन्द किया हुआ था। जब बेड़ी बीच धारा में पहुँची तो उसने वह
कपड़ा निकाल दिया और चिल्लाना शुरू कर दिया कि आप अपने आप को बचा लो, इस बेड़ी में तो
पानी भर गया है, अब यह डुब जाएगी। यह कहकर वह आप तो तैरकर पार निकल गया। इधर बेड़ी
डुबना चालु हुई तो भक्त नामदेव जी ने सरबव्यापी परमात्मा की दरगह में आँखें बन्द
करके अरदास की और बाणी गायन करने लगे जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग
गोंड“ में दर्ज है:
मो कउ तारि ले रामा तारि ले ॥
मै अजानु जनु तरिबे न जानउ बाप बीठुला बाह दे ॥१॥ रहाउ ॥
नर ते सुर होइ जात निमख मै सतिगुर बुधि सिखलाई ॥
नर ते उपजि सुरग कउ जीतिओ सो अवखध मै पाई ॥१॥
जहा जहा धूअ नारदु टेके नैकु टिकावहु मोहि ॥
तेरे नाम अविल्मबि बहुतु जन उधरे नामे की निज मति एह ॥२॥३॥ अंग 873
अर्थ: हे परमात्मा ! मुझे तार ले, मैं अन्जान आदमी हूँ, तैरना
नहीं जानता। हे प्यारे पिता अपनी बाँह पकड़ा। गुरू ने बताया है कि परमात्मा की कृपा
से आदमी एक पल में देवता बन जाता है। मैंने मनुष्य जन्म प्राप्त करके स्वर्ग को जीत
लिया है अर्थात तुच्छ जानता हूँ। जिस प्रकार से ध्रुव आदि पर कृपा की है, वैसे ही
मेरे पर भी रती भर कृपा करो। हे परमात्मा ! तेरे नाम की बरकत से अनेकों का उद्धार
हुआ है। मेरी अपनी मति तो यही कहती है। बाणी की समाप्ति पर जब भक्त नामदेव जी ने
आँखें खोलीं तो उन्होंने अपने आपको किनारे पर पाया। हुआ यह कि जब भक्त नामदेव जी जब
अपनी आँखें बन्द करके प्रार्थना की तो पानी से भरी हुई बेड़ी भी तैरते हुए किनारे पर
आ गई थी। भक्त नामदेव जी जब राजी-खुशी नगर में पहुँचे तो योजना बनाने वाले सारे
ब्राहम्ण उन्हें देखकर शर्मिन्दा हुए और सोचने लगे कि यह दाँव भी खाली गया।