22. हरि भक्त रांका बांका और वंका
महाराष्ट्र प्राँत में पँडरपुर के नजदीक एक पति-पत्नी रांका बांका और उनकी पुत्री
वंका रहते थे। यह छोटा सा परिवार लकड़ियाँ बेचकर गुजारा करता था पर अपनी नेक नीति और
प्रेम भक्ति करके बहुत मशहूर थे। भक्त नामदेव जी जब मेले से वापिस आ रहे थे तो किसी
ने बताया कि इस इलाके के मशहूर हरि भक्त रांका और बांका आपके दर्शनों के लिए आ रहे
हैं। यह बड़े ही निरलेप पुरूष हैं। मैं इनकी परीक्षा लेने के लिए एक सोने का गहना
रास्ते में फैंक आया हूँ। आगे आगे भक्त रांका जी आ रहे थे। जब उन्होंने इस सोने के
गहने का देखा तो सोचने लगे कि शायद किसी का गिर गया होगा, परन्तु इस पराई वस्तु है
इस पर मेरा क्या हक है ? परन्तु वह सोचने लगे कि मेरे पीछे मेरी पत्नी बांका आ रही
है और स्त्रियों को गहने का बड़ा शौक होता है, कहीं लालच में आकर वह इसे उठा न ले।
यह सोचकर रांका जी ने उस गहने के ऊपर मिट्टी डाल दी। बांका जब गहने वाले स्थान पर
पहुँची तो वह सोचने लगी कि मेरे पतिदेव इस स्थान पर क्यों खड़े हुए थे, जरूर कोई बात
है, जब उसने इस स्थान पर मिट्टी अलग से उपटी हुई देखी तो उसे वह गहना मिट्टी में दबा
हुआ मिला। वह सोचने लगी कि मैंने इस पराई चीज का क्या करना है, पर पीछे मेरी पुत्री
वंका आ रही है और वह बच्ची है, कहीं उठा न ले। यह सोचकर बांका ने उस गहने को गहरा दबा दिया और आगे बढ़ी। जब उनकी पुत्री उस स्थान पर पहुँची तो उसने सोचा कि मेरे
माता-पिता दोनों ही इस स्थान पर क्यों रूके थे, जब उसने मिट्टी अस्त-व्यस्त देखी तो
उसने मिट्टी हटाकर देखा तो उसमें से सोने का गहना निकला, जिसे देखकर वह हँसने लगी
और कहने लगी कि मेरे माता पिता भी कैसे भोले हैं जो मिट्टी और सोने में फर्क समझकर
एक को दूसरे से ढकते हैं। यह बोलकर उसने उस गहने को वैसे का वैसे ही पड़ा रहने दिया
और आगे चल पड़ी। भक्त नामदेव जी को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत प्रसन्न हुए।
रांका-बांका और उनकी पुत्री वंका भक्त नामदेव जी पास पहुँचे। भक्त नामदेव जी बोले:
प्रेमी भक्तों ! आप धन्य हो। दम्पती ने कहा: महाराज ! हम तो गरीब लकड़हारे हैं। आप
इतने बड़े महापुरूष और हरि भक्त हो, आप धन्य हो। भक्त नामदेव जी बोले: भक्तों !
परमात्मा गरीबी, अमीरी, बड़ी-छोटी जात, विद्या या अविद्या नहीं देखता। वो तो प्रेम
भक्ति को देखता है, जिसमें आप निपुण हो। वह परिवार नमस्कार करके खुशी-खुशी चला गया।