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9. गुरू धारण करना

भक्त नामदेव जी सर्वकला सम्पन्न और ब्रहमज्ञानी होने के बावजुद भी पूर्ण और सत्य गुरू की खोज करने लगे और उनकी खोज पूरी हुई और वह श्री विशोभा खेचर जी की शरण में गए। उनके चरण पकड़कर विनती की कि हे महाराज जी ! मुझे सत्य मार्ग का उपदेश दो। विशोभा जी ने कहा– भक्त जी ! आप तो हर प्रकार से सम्पूर्ण और समर्थ हो और अनेक जीवों को उपदेश देकर उद्धार कर सकते हो, भला मैं आपको क्या उपदेश दूँ ? भक्त नामदेव जी ने अधीर होकर विनती की– हे सच्चे पातशाह ! आप महापुरूष हो और उम्र में मेरे से बड़े-बुजुर्ग हो, इसलिए कृपा करके जन्म सफल कर दो। बहुत सारी वार्त्तालाप के बाद श्री विशोभा जी ने भक्त नामदेव जी को उपदेश किया, जिससे भक्त नामदेव जी गदगद हो गए और वैराग्य में आकर बाणी उच्चारण की:

बिलावलु बाणी भगत नामदेव जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सफल जनमु मो कउ गुर कीना ॥
दुख बिसारि सुख अंतरि लीना ॥१॥
गिआन अंजनु मो कउ गुरि दीना ॥
राम नाम बिनु जीवनु मन हीना ॥१॥ रहाउ ॥
नामदेइ सिमरनु करि जानां ॥
जगजीवन सिउ जीउ समानां ॥२॥१॥ अंग 857

अर्थ: गुरू ने मेरा जन्म सफल कर दिया है। मेरा दुख दूर करके सुख ही सुख दे दिया है। गुरू ने मुझे ज्ञान रूपी सुरमा दिया है। हरि के भजन के बिना जीवन व्यर्थ है। मैंने परमात्मा का सिमरन करके जान लिया है और उस जगत जीवन परमात्मा के साथ मेरी आत्मा जुड़ गई है, समा गई है। गुरू विशोभा खेचर जी के साथ धर्म उपदेश के बाद भक्त नामदेव जी की आत्मिक अवस्था कितनी ऊँची हो गई वो उपरोक्त बाणी से स्पष्ट है और बाणी की अन्तिम पँक्ति से प्रकट है, जिसका भाव है कि "नामदेव गुरू के बताए अनुसार सिमरन करके जान गया है जगत के जीवन उस परमात्मा के साथ आत्मा जुड़ गई है, समा गई है।"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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