8. शेर के दर्शन
पँडरपुर में और उसके आसपास भक्त नामदेव जी की भक्ति की और ब्रहमज्ञान की चर्चा होने
लगी। इस पर परमात्मा ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक कौतक रचा। नगर से दूर बाहर खुली
जगह पर नौजवन खेल रहे थे। वह भक्त नामदेव जी को साथ ले गए पर भक्त नामदेव जी वहाँ
पर एक तरफ बैठ गए। बालक अपने खेल में मस्त थे और भक्त नामदेव जी एक वृक्ष के नीचे
बैठ गए और हरि सिमरन में मग्न हो गए और बाणी उच्चारण करने लगे:
रागु कानड़ा बाणी नामदेव जीउ की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ऐसो राम राइ अंतरजामी ॥
जैसे दरपन माहि बदन परवानी ॥१॥ रहाउ ॥
बसै घटा घट लीप न छीपै ॥
बंधन मुकता जातु न दीसै ॥१॥
पानी माहि देखु मुखु जैसा ॥
नामे को सुआमी बीठलु ऐसा ॥२॥१॥ अंग 1318
अर्थ: परमात्मा इस प्रकार अन्तर्यामी है जिस प्रकार से शीशे में
यानि आईने में इन्सान अपने आप को देखता है। भाव यह है कि परमात्मा घट-घट में बसता
है पर उसको लेप यानि किसी चीज का लेप नहीं वह तो र्निलेप है और न ही वो छुपता है।
वह बँधन से रहित है और उसकी कोई जात नहीं अथवा वो कहीं आता जाता दिखाई नहीं देता।
जिस प्रकार पानी में अपना मूँह दिखता है उसी प्रकार परमात्मा सभी स्थानों पर व्यापक
यानि मौजूद है। इस बाणी को भक्त नामदेव जी ने इस प्रकार से गायन किया था कि सारे
बालक उनके आसपास आकर एकत्रित हो गए। जब बाणी की समाप्ति हुई तो एक तरफ से शेर के
गर्जनें की आवाज आई और एक तगड़ा शेर उधर से आता हुआ दिखाई दिया जहाँ से आवाज आई थी।
यह देखकर सभी बालक डर के मारे भाग गए पर भक्त नामदेव जी अपने स्थान पर अडोल रहे।
शेर भक्त नामदेव जी के पास आकर खड़ा हो गया। भक्त नामदेव जी के अंग-अंग में परमात्मा
का नाम बस चुका था और दिल में ज्ञान का प्रवेश हो चुका था, इसलिए वह जानते थे:
सभ गोबिन्द है सभ गोबिन्द है, गोबिन्द बिन नहीं कोई ।।
भक्त नामदेव जी को इस बात का निश्चय था कि:
सभै घट राम बोलै रामा बोलै ।। राम बिना को बोलै रे ।।
इसलिए इस दृष्टि से वह शेर की तरफ देखने लगे और उठकर उसे गले से
लगा लिया और उनकी बिरती परमात्मा से जुड़ गई और आँखें बन्द हो गईं। जब आँखें खोली तो
वहाँ पर शेर नहीं था।
नोट: जो भक्त और ब्रहमज्ञानी होते है, उन्हें तो हर स्थान पर, हर जीव में परमात्मा
की ही जोत दिखाई देती है।