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3. परमात्मा की पूजा का चाव

भक्त नामदेव जी के बुजुर्ग पीढ़ियों से पक्के धर्मी और नितनेमी चले आ रहे थे और इस खानदान पर परमात्मा की ऐसी कृपा रही है कि जैसे-जैसे पीढ़ी बदलती रही वैसे-वैसे इनकी धर्म की रूचि भी बढ़ती गई। भक्त नामदेव जी के पिता जी बड़े ही धार्मिक और नितनेम वाले थे। वह रोज सुबह उठकर ठाकुर जी की पूजा करते और उनको दूध का भोग लगाते थे इसके लिए उन्होंने घर में “कपल गाय“ पाली हुई थी।

गुरूवाक:
दूध कटोरे गढवे पानी ।।
कपल गऊ नामे दुहिआनी ।।

भोग लगाने के लिए ले जाने वाले बर्तन सोने के थे। पिता श्री दामशेट जी पूर्व की रीति अनुसार नितकर्म करते और मन्दिर में जाकर मूर्ति पूजा करते और भोग लगाने के लिए दूध ले जाते थे। इस प्रकार की कृत्रिम और झूठी पूजा करने के कारण वह मनुष्य जीवन के असली निशाने यानि की परमात्मा के नाम से दूर थे, क्योंकि नाम जपने से ही परमात्मा मिलता है, क्योंकि आप पूरी जिन्दगी मूर्ति पूजा करते रहोगे तब भी कुछ नहीं होने वाला। इस भ्रम को दूर करने के लिए ही तो भक्त नामदेव जी ने जन्म लिया था। इसकी शुरूआत उन्होंने अपने घर से ही करना ठीक समझा। नामदेव जी अपने पिता जी से कहने लगे: पिता जी ! मुझे भी आज्ञा दो, एक दिन मैं भी अपने हाथों से ठाकुर की पूजा करूँ। पिता जी: बेटा ! अभी तेरी अवस्था छोटी है, जब बड़ा हो जाएगा तो बेशक रोज ही पूजा करना। नामदेव जी ने बड़े प्यार से कहा: पिता जी ! आप मुझे एक बार आज्ञा देकर तो देखो, मैं पूर्ण विधी अनुसार ही ठाकुर जी की पूजा करूँगा। इस पर पिता जी ने कह दिया: ठीक है, जिस दिन में कहीं बाहर जाऊँगा उस दिन तूँ ही पूजा करना।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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