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20. भक्त नामदेव जी और नम्रता

नम्रता एक ऐसा गुण है, जिसे धारण करके इन्सान देवता बन जाता है। गुरूओं ने नम्रता का उपदेश देकर कौडे राक्षस जैसे जालिम और सज्जन ठग जैसे नीच कर्मी को भी परमात्मा का भक्त बना दिया जिससे वे पवित्र जीवन व्यतीत करने लग पड़े। भक्त नामदेव जी में भी नम्रता का गुण भरपूर था। एक दिन की वार्त्ता है कि वो ही ब्राहम्ण धर्मराम जो कथा वार्त्ता करता हुआ निरूतर हो गया था उन्हें बाजार में मिल गया और अपना बदला लेने का अच्छा मौका समझकर उन्हें घेरकर खड़ा हो गया। ब्राहम्ण क्रोध में बोला: नामदेव ! तूँ मुझे तँग ना करा कर और मेरे श्रोतों के सामने मेरे पर प्रश्न करके मुझे शर्मिन्दा न किया कर, नहीं तो मै बुरी तरह से पेश आऊँगा। देख तेरे बड़े, हमारे चरणों पर नमस्कार करते हैं और तूँ सामने दीवान लगाकर उपदेश देने लग जाता है और प्रश्न-उत्तर करके शर्मिन्दा कर देता है। भक्त नामदेव जी बड़ी ही नम्रता से बोले: ब्राहम्ण देवता जी ! मेरा कभी भी यह मतलब नहीं होता कि मैं आपका अपमान करूँ। मैं तो सच्चाई का प्रचार करता हूँ, इसमें आपको गुस्सा नहीं होना चाहिए, मैं तो सबका दास हूँ। बाकी हमारे बड़े जो आपके चरण पूजते हैं तो में उन चरणों को धन्य समझता हूँ और नमस्कार करता हूँ। भक्त नामदेव जी के नम्रता भरे शब्द सुनकर आसपास खड़े हुए लोगों पर बहुत ही गहरा असर हुआ पर ब्राहम्ण पर इसका उल्टा असर हुआ वो अपनी ऊच जाति, बहुत विद्या और धन के अहँकार में भक्त नामदेव जी की नम्रता को वो उनकी कमजोरी और अपनी जीत समझने लग गया। उसने ख्याल किया कि बस अब नामदेव पर मेरे गौरव की धाक जम गई है, अब मेरे सामने कभी नहीं बोलेगा। इसी खुशी में वह अपने घर गया। वह अपनी स्त्री से बोला: भाग्यवान ! वो नामदेव जो मुझे कहीं बोलने नहीं देता था आज मेरे पैरों पर हाथ लगाता था। उस ब्राहम्ण की पत्नी बड़ी विचारशील और भक्ति भाव वाली थी। ब्राहम्ण की पत्नी बोली: स्वामी ! बहुत अहँकार न करो और उस पूर्ण संत भक्त नामदेव जी की नम्रतापूर्वक बातों को अपनी जीत न समझो। वह बड़ा उत्तम पुरूष है, वो तो कोई महान व्यक्ति है, देखना उसके सामने कोई फीकी बात नहीं कह देना, उसके मूँह से कोई बात निकल गई तो हमारा कोई टिकाना नहीं रहेगा। ब्राहम्ण धर्मराम ने जब अपनी पत्नी की ज्ञानपूर्ण बातों पर ठण्डे दिमाग से विचार किया तो एकदम काँप उठा। वह अपनी पत्नी से कहने लगा: भाग्यवान ! मैंने सचमुच अहँकार में अन्धा होकर उस महापुरूष का बहुत अनादर किया है। वह झठपट उठा और भक्त नामदेव जी के घर पर पहुँचा और उनके चरणों में गिर पड़ा और रो-रोकर कहने लगा कि हे महाराज ! मुझे क्षमा कर दो। भक्त नामदेव जी ने उन्हें उठाकर कहा– परमात्मा का सिमरन करो और उसे उपदेश देने के लिए बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में "राग गोंड" में दर्ज है:

हरि हरि करत मिटे सभि भरमा ॥ हरि को नामु लै ऊतम धरमा ॥
हरि हरि करत जाति कुल हरी ॥ सो हरि अंधुले की लाकरी ॥१॥
हरए नमसते हरए नमह ॥ हरि हरि करत नही दुखु जमह ॥१॥ रहाउ ॥
हरि हरनाकस हरे परान ॥ अजैमल कीओ बैकुंठहि थान ॥
सूआ पड़ावत गनिका तरी ॥ सो हरि नैनहु की पूतरी ॥२॥
हरि हरि करत पूतना तरी ॥ बाल घातनी कपटहि भरी ॥
सिमरन द्रोपद सुत उधरी ॥ गऊतम सती सिला निसतरी ॥३॥
केसी कंस मथनु जिनि कीआ ॥ जीअ दानु काली कउ दीआ ॥
प्रणवै नामा ऐसो हरी ॥ जासु जपत भै अपदा टरी ॥४॥१॥५॥ अंग 874

अर्थ: "(वाहिगुरू वाहिगुरू यानि राम राम करते हुए सभी "भ्रम" मिट जाते हैं। राम का नाम जपना तो सबसे उत्तम धर्म है। हरि नाम जपने से जाति और कुल मिट जाता है यानि ऊँच-नीच नहीं रहती और नीच जाति वाला ऊँचा हो जाता है। वह परमात्मा, अँधे यानि अज्ञानी की लकड़ी (ज्ञान) है। उस परमात्मा को बार-बार नमस्कार है। परमात्मा का नाम जपने से यमदूतों का दुख नहीं होता। हरि ने हरणाकश जालिम के प्राण लिए। अजामल को बैकुण्ठ में स्थान मिल गया। गनिका तोते को पढ़ाने के बहाने नाम जपन करके तर गई। वो परमात्मा मेरी आँखों की पुतली है। हरि का जाप करती हुई बच्चों को मारने वाली पुतना तर गई। हरि का सिमरन करते हुए द्रुपद राजा की पुत्री द्रोपदी तर गई। हरि का जाप करती ऋषि की पत्नी जो श्राप के कारण शिला का रूप हो गई थी, तर गई। पाप करने वाले कँस और उसके दो-दो भाईयों को उसने मारा और काली नाग को फिर से जीवित कर दिया। श्री नामदेव जी कहते है कि वह हरि ऐसा है जिसको जपने के साथ सभी के भय आदि और आपदा टल जाती है।)" यह बाणी सुनकर ब्रहाम्ण बहुत ही प्रसन्न हुआ और वह भक्त नामदेव जी के चरणों में बार-बार नमस्कार करता हुआ अपने घर चला गया और अपनी पत्नी को सारी वार्त्ता सुनाई तो वह भी बहुत खुश हुई। ब्राहम्ण और उसकी पत्नी कभी-कभी भक्त नामदेव जी के दर्शन करने और उनकी अमृतमयी बाणी सुनने उनके घर पर जाने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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