2. अग्नि शाँत हो गई
आग का काम है जलाना लेकिन आग के मुकाबले शीतलता ज्यादा हो तो आग कैसे उस शीतलता के
आगे जल सकती है ? इसी प्रकार की एक वार्त्ता भक्त नामदेव जी के बाल जीवन में आती
है। एक दिन भक्त नामदेव जी की माता जी ने खाना बनाने के लिए रसोई में चूल्हा जलाया
और आप किसी काम से बाहर चली गई। जब आग की लपटें ऊँची हुईं तो उसका प्रकाश और चमक भी
तेज हुई। उधर पास ही बाल अवस्था में भक्त जी बैठे हुए थे, उन्हें इस प्रकार की चमक
और प्रकाश बहुत प्यारा लगा, उसमें उन्होंने ईश्वरीय जलवा दिखा और वह आगे बढ़े और उस
जोत को यानि आग को जफ्फी डाल दी यानि उसे गले से लगा लिया जैसे किसी मित्र को गले
लगाया जाता है। हम बता चुके हैं कि आग का काम जलाना होता है, परन्तु शीतलता अधिक
होने पर वह बूझ जाती है और मुकाबला नहीं कर सकती। ठीक इसी प्रकार से भक्त जी की
उम्र भले ही बहुत छोटी थी परन्तु आग उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकी क्योंकि बालक
नामदेव को वह आग ईश्वरीय जोत लग रही थी जिस कारण वह उससे लिपट गए और इस बाल अवस्था
में ही “नामे नारायण नाहीं भेद“ वाला समाँ बँध गया। माता जी ने जब दूर से ही बालक
नामदेव जी को आग से लिपटते हुए देखा तो वह डर के मारे दौड़कर आई और जल्दी से अपने
प्यारे बालक नामदेव जी को उठा लिया पर जब माता जी ने आग को बूझा हुआ देखा तो
आश्चर्यचकित रह गई। जब इस कौतक की घटना गली-मौहल्ले और आस-पड़ौस वालों ने सुनी तो सभी
दँग और अचँभित रह गए और बालक नामदेव जी को शक्तिवान समझकर उनका सत्कार करने लगे।