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19. एकादशी व्रत का खण्डन

ब्रहमज्ञानी भक्त नामदेव जी अपने नित्यप्रति सतसंग के द्वारा अनेक जीवों का उद्धार करते थे। जात अहँकारी ब्राहम्ण इनके विरूद्ध बोलते थे और चिँतातुर मन से सोचते थे कि धर्म उपदेश करना तो केवल ब्राहम्णों का धर्म है पर देखो कलयुग का समय आ गया है जो नामदेव जैसे अन्य वर्ण वाले भी धर्म उपदेश करने लग पड़े हैं। जैसे-जैसे ब्राहम्ण भक्त नामदेव जी की निन्दा करते वैसे-वैसे भक्त नामदेव जी का यश और कीर्ति बड़ती ही जा रही थी, क्योंकि भक्त नामदेव जी के मुख से कोई एक बार उपदेश सुन लेता था वह उनका कायल हो जाता था। एक दिन एक ब्राहम्ण एकादशी के महत्व की कथा कर रहा था और लोगों को बता रहा था कि एकादशी का व्रत रखना बहुत ही पुण्य का काम है। उधर भक्त नामदेव जी अपने परमात्मा के प्रेम रँग में रँगे हुए एक तरफ बैठकर बाणी का गायन करने लगे जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग धनासरी“ में दर्ज है:

पतित पावन माधउ बिरदु तेरा ॥
धंनि ते वै मुनि जन जिन धिआइओ हरि प्रभु मेरा ॥१॥
मेरै माथै लागी ले धूरि गोबिंद चरनन की ॥
सुरि नर मुनि जन तिनहू ते दूरि ॥१॥ रहाउ ॥
दीन का दइआलु माधौ गरब परहारी ॥
चरन सरन नामा बलि तिहारी ॥२॥५॥ अंग 694

अर्थ: हे परमात्मा ! तेरा बिरद पापियों को पवित्र करने वाला है। वो मनुष्य, मुनि और जीव धन्य हैं जिन्होंने तेरा नाम जपा है। मेरे माथे पर परमात्मा के चरणों की धूल लग गई है। देवता, मनुष्य, मुनि जन इस चरण धूल से दूर हैं। हे परमात्मा ! तूँ गरीबों पर दया करने वाला है और अत्याचारियों का अहँकार तोड़ने वाला है। नामदेव तेरे चरणों की शरण में आया है और बलिहारी जाता है। भक्त नामदेव जी की इस प्रेममयी बाणी के खिचाँव के कारण सारे लोग उनके पास आकर बैठ गए और ब्राहम्ण का कथा वाला स्थान खाली हो गया। ब्राहम्ण क्रोध में बोला कि देखो जी ! मैं यहाँ पर एकादशी के महत्व को समझा रहा था और इस नामदेव ने आकर रँग में भँग उत्पन्न कर दिया है और अपना अलग ही राग अलाप रहा है। भक्त नामदेव जी ने कहा– हे ब्राहम्ण देवता ! आप क्रोध न करें, हम भी तो उपदेश ही कर रहे हैं, आप भी सुनो। यह कहकर उन्होंने साथियों से ढोलकी बजाने का सँकेत किया और बाणी उच्चारण कि जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग टोडी“ में दर्ज है:

कोई बोलै निरवा कोई बोलै दूरि ॥
जल की माछुली चरै खजूरि ॥१॥
कांइ रे बकबादु लाइओ ॥
जिनि हरि पाइओ तिनहि छपाइओ ॥१॥ रहाउ ॥
पंडितु होइ कै बेदु बखानै ॥
मूरखु नामदेउ रामहि जानै ॥२॥१॥ अंग 718

अर्थ: कोई उस परमात्मा को पास बताता है और कोई दूर बताता है। पर दोनों का कहना इसी प्रकार असम्भव है जिस प्रकार पानी में रहने वाली मछली खजूर पर चड़ जाए। हे पण्डित ! क्यों हल्ला मचा रहा है, जिसने परमात्मा को प्राप्त कर लिया है, उसने छिपा लिया है यानि कि वह अन्दर से मस्त हो गया है। तूँ पण्डित होकर वेदों की बातें बता रहा है। मैं, जिसको तुम मूर्ख और अनपढ़ कहते हो, उसने राम को जान लिया है यानि उसका भजन करता हूँ और नाम जपता हूँ। ऐसा कड़ाकेदार जवाब सुनकर ब्राहम्ण क्रोधित होकर कहने लगा– देखो जी ! यह कथा वार्त्ता और धर्म उपदेश करना तो हमारा धर्म है और अब हमारे से नीचे वर्ण वाले क्षत्रिय भी उपदेश करने लगे और लोगों को एकादशी का व्रत रखने से भी रोकने लगे। फिर इनके साथ में लगने वालों की मुक्ति किसी प्रकार से होगी ? इस बात पर भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग टोडी“ में दर्ज है:

कउन को कलंकु रहिओ राम नामु लेत ही ॥
पतित पवित भए रामु कहत ही ॥१॥ रहाउ ॥
राम संगि नामदेव जन कउ प्रतगिआ आई ॥
एकादसी ब्रतु रहै काहे कउ तीर्थ जाईं ॥१॥
भनति नामदेउ सुक्रित सुमति भए ॥
गुरमति रामु कहि को को न बैकुंठि गए ॥२॥२॥ अंग 718

अर्थ: "(परमात्मा का "जाप" करने से किसका कलँक रह गया यानि सारे कलँक दूर हो गए। राम का नाम लेने से तो पतित जीव भी पवित्र हो गए। राम के नाम से मेरे में प्रतिज्ञा आ गई है और अब एकादशी व्रत खत्म हो गया है। हम व्रत रखने के महत्व को छोड़ बैठे हैं और तीर्थों पर भी क्यों जाएँ। नामदेव जी कहते हैं कि हमारी बुद्धि अब श्रेष्ठ हो गई है। गुरू की कृपा द्वारा राम राम कहकर कौन-कौन बैकुण्ठ नहीं गए यानि सभी गए।)" यह सुनकर सभी श्रद्वालू भक्त नामदेव जी के कायल हो गए जबकि ब्राहम्णों से कुछ कहते न बना और वह इतने लोगों के बीच में कुछ बोलते तो उनका अपमान ही होता, इसलिए फिर कभी बदला लेने का सँकल्प करके वह वहाँ से चलते बने।

नोट: व्रत रखने से कुछ नहीं होता, केवल शरीर को कष्ट देने वाली बात है, व्रत रखने से परमात्मा कभी भी नहीं मिल सकता, चाहे आप व्रत पूरी जिन्दगी रखें। केवल समय और पैसा ही बर्बाद होगा और शरीर को भी कष्ट होगा। जबकि केवल 1 मिनिट के लिए भी आपने राम नाम जपा और पूरी जिन्दगी में आपने 1 लाख व्रत रखे तो भी ये 1 लाख व्रत उस 1 मिनिट जपे गए राम नाम की बराबरी नहीं कर सकते। हाँ अगर व्रत इसलिए रखा है कि आपका स्वास्थ ठीक रहे और पेट ठीक रहे तो आप रख सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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