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18. भक्त त्रिलोचन की शँका निवृत्ति

एक बार भक्त त्रिलोचन ने पूछा कि महाराज ! दुनियावी कामकाज करते हुए परमात्मा का सिमरन किस प्रकार हो सकता है ? भक्त नामदेव जी ने कहा– त्रिलोचन जी ! जिस प्रकार बच्चे कागज की पतँग बनाकर आकाश में उड़ाते हैं और अपने साथियों के साथ बात करते हुए भी अपना मन डोर में रखते हैं और स्त्रियाँ जिस प्रकार से अपने सिर पर पानी का घड़ा टिका लेती हैं और रास्ते में हँसते-खेलते हुए और बातें करते हुए जाती हैं, परन्तु उनका ध्यान तो घड़े पर ही रहता है और जिस प्रकार से चारवाहे गायों को चार-पाँच कोस दूर चराने के लिए ले जाते हैं, परन्तु उन गायों का मन तो अपने बछड़े में ही होता है। अन्त में उन्होंने कहा कि जिस प्रकार माता बच्चे को पालने में सुलाकर घर का सारा कामकाज करती है, लेकिन उसका मन और चित तो बच्चे में ही रहता है। यह पूरी वार्त्ता “राग रामकली“ में बाणी रूप में श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में दर्ज है:

आनीले कागदु काटीले गूडी आकास मधे भरमीअले ॥
पंच जना सिउ बात बतऊआ चीतु सु डोरी राखीअले ॥१॥
मनु राम नामा बेधीअले ॥
जैसे कनिक कला चितु मांडीअले ॥१॥ रहाउ ॥
आनीले कुमभु भराईले ऊदक राज कुआरि पुरंदरीए ॥
हसत बिनोद बीचार करती है चीतु सु गागरि राखीअले ॥२॥
मंदरु एकु दुआर दस जा के गऊ चरावन छाडीअले ॥
पांच कोस पर गऊ चरावत चीतु सु बछरा राखीअले ॥३॥
कहत नामदेउ सुनहु तिलोचन बालकु पालन पउढीअले ॥
अंतरि बाहरि काज बिरूधी चीतु सु बारिक राखीअले ॥४॥१॥ अंग 972

भाव यह है कि मनुष्य अपने सँसारिक कार्य करते हुए भी परमात्मा का सिमरन कर सकता है। इस सँसार सागर से मुक्ति प्राप्त करने के लिए हमें किसी साधू मत को धारण करने की आवश्यकता नहीं बल्कि गृहस्थ में रहकर सब कुछ प्राप्त कर सकते हैं, बस परमात्मा का नाम जपकर नाकि मूर्ति पूजा करके या देवी-देवताओं की पूजा करके।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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