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17. एक जीवन दान

कुँऐं वाले राक्षस को देवता बनाकर भक्त नामदेव जी ने संगत समेत अगले गाँव में डेरा लगाया और रात को विश्राम किया और अमृत समय यानि ब्रहम समय में स्नान आदि करके हरि सिमरन में मस्त हो गए, कुछ समय इसी प्रकार व्यतीत हुआ फिर अपनी मौज में बाणी गायन करने लगे जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग भैरउ“ में दर्ज है:

रे जिहबा करउ सत खंड ॥ जामि न उचरसि स्री गोबिंद ॥१॥
रंगी ले जिहबा हरि कै नाइ ॥ सुरंग रंगीले हरि हरि धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥
मिथिआ जिहबा अवरें काम ॥ निरबाण पदु इकु हरि को नामु ॥२॥
असंख कोटि अन पूजा करी ॥ एक न पूजसि नामै हरी ॥३॥
प्रणवै नामदेउ इहु करणा ॥ अनंत रूप तेरे नाराइणा ॥४॥१॥ अंग 1163

अर्थ: हे जीभ ! तेरे सात टुकड़े कर दूँगा अगर तूँ हरि नाम का सिमरन नहीं करेगी। हे जीभ ! अपने आपको परमात्मा के नाम रँग में रँग ले। सुन्दर रँग चड़ा ले। उस रँगीले परमात्मा का नाम ही सब कुछ है। अगर करोड़ों बार और किसी का जाप करेंगी तो वह परमात्मा के एक बार जाप करने के बराबर भी नहीं है। नामदेव जी कहते हैं कि बोलो– हे परमात्मा ! तेरे बेअंत रूप हैं।

भक्त नामदेव जी इसी आनन्द में थे कि तभी गाँव में किसी के रोने और विलाप करने की आवाजें आने लगी। एक ब्राहम्ण का लड़का चल बसा था और उस लड़के की पत्नी उसकी अर्थी के साथ सती होने के लिए जा रही थी। उसने जब भक्त नामदेव जी को बैठे देखा तो उसने सोचा कि अन्तिम समय में इन महापुरूषों को नमस्कार कर लूँ। यह विचार करके उसने भक्त नामदेव जी के चरणों में मस्तक टेक दिया। भक्त नामदेव जी परमात्मा के रँग में मग्न थे, जब उस स्त्री ने भक्त नामदेव जी के चरणों को र्स्पश किया तो भक्त नामदेव जी की समाधी खुली और उन्होंने एक स्त्री को देखा। तो उन्होंने हरि रँग में मस्त होकर कहा: पुत्री ! सुहागवँती रहो। उस स्त्री ने यह आशीश सुनकर हाथ जोड़कर कहा: हे महापुरूषों ! मेरे पति तो मर चुके हैं और वो उनकी अर्थी जा रही है तो मैं सुहागवंती किस प्रकार रह सकती हूँ। हालाँकि काल देवता उस स्त्री के पति के प्राण हर चुका था, परन्तु जो पूर्ण साधू-संत होते हैं और पूर्ण भक्त होते हैं तो परमात्मा उन भक्तों के वश में होता है और भक्तों को उस पर मान होता है। “तू भगता कै वस भगता ताणु तेरा ।।“ के महावाक्य अनुसार परमात्मा ने अपने प्यारे भक्त के मुख से बोले गए बचन की लाज रखने के लिए यहाँ पर वो चमत्कार किया जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। अब अर्थी भक्त नामदेव जी के पास आ चुकी थी। भक्त नामदेव जी ने उस अर्थी पर लेटे हुए ब्राहम्ण के पुत्र यानि उस स्त्री के पति के मुख से कपड़ा उठाया और कहा– भले आदमी ! कह राम राम। अचानक चमत्कार हुआ और वह लड़का राम राम कहता हुआ उठ बैठा और भक्त नामदेव जी चरणों में गिर पड़ा। यह देखकर सभी स्त्री और पुरूष भक्त नामदेव जी के चरणों में गिर पड़े। भक्त नामदेव जी जी ने उस लड़के का नाम “जैदेव“ रख दिया, क्योंकि वो मरकर जीवित हुआ था।

एक और जीवनदान: इस नगर से अगले दिन भक्त नामदेव जी संगत समेत निकल पड़े। कुछ दूर जाकर देखा कि रास्ते में एक गाड़ी वाला विलाप कर रहा था, क्योंकि उसका एक बैल मर गया था। भक्त नामदेव जी ने उसके पास गए तो उसने महापुरूष समझकर उसने चरणों में प्रणाम किया। उसने अधीरता के साथ विनती की: हे महाराज जी ! मैं अति गरीब हूँ और इस गाड़ी पर भार ढोकर गुजारा करता हूँ और इस बियाबान जँगल में मेरा यह पशू चल बसा है। भक्त नामदेव जी ने कहा: नेक बन्दे ! उस परमात्मा का सिमरन किया कर, जिससे सभी वस्तुओं की प्राप्ति होती है। गाड़ीवाले ने कहा कि: महाराज जी ! मैं नित्यप्रति परमात्मा का नाम सिमरन किया करूँगा। भक्त नामदेव ने जी परमात्मा का सिमरन करके मरे हुए बैल पर जल छिड़का, तभी अचानक जैसे चमत्कार हुआ और वह मरा हुआ बैल खड़ा हो गया। यह देखकर वह गाड़ी वाला तो हैरान ही रह गया उसने अपनी जिन्दगी में ऐसा चमत्कार नहीं देखा था, वह भक्त नामदेव जी के चरणों में लेट गया। गाड़ीवाले ने फिर से प्रार्थना की:हे महापुरूषों ! मेरे साथी तो बहुत दूर निकल गए है, मैं उनसे किस प्रकार मिलूँगा। भक्त नामदेव जी ने कहा: पुत्र ! तुम अपनी गाड़ी पर बैठो। गाड़ीवाला जब गाड़ी पर बैठा तो भक्त नामदेव जी ने उसके बैलों को हाथ से थपथपा दिया। इस थापी के मिलते ही वह बैल इतनी तेज चले कि वह गाड़ीवाला अपने साथियों के साथ जाकर मिल गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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