16. राक्षस से देवता
पिछले प्रसँग में एक मेले का वर्णन किया गया था। इस मेले में से वापिस आते समय लोगों
ने एक गाँव में डेरा डाला। इस गाँव में केवल एक ही कुँआ था, जिस पर एक राक्षस ने
अधिकार किया हुआ था। जो भी आदमी कुँऐं पर जाता था, राक्षस उसे जान से मार देता था।
इस संगत में कुछ कपटी ब्राहम्ण भी थे। उन्होंने सोचा कि इस कुँऐं पर अगर भक्त
नामदेव जी चले जाएँ और राक्षस उनका खात्मा कर दे तो हमारे सिर से एक बहुत बड़ी बला
टल जाएगी। जब सभी लोग प्यास से तड़पने लगे तो उन ब्राहम्णों ने लोगों को कहा कि अगर
भक्त नामदेव जी उस कुँऐं पर जाएँ तो राक्षस उनके तेज प्रभाव से कुछ नहीं कर पाएगा।
भक्त नामदेव जी लोगों को व्याकुल देखकर पानी लेने चले गए। जब भक्त नामदेव जी कुँऐं
पर पहुँचे तो राक्षस उनकी जान लेने के लिए आगे आया। लेकिन जब भक्त नामदेव जी ने अपनी
शक्ति भरी आँखें उसकी आँखों में डाली तो वह वहीं का वहीं खड़ा रह गया। जैसे जैसे
भक्त नामदेव जी उसके नजदीक आते गए वैसे-वैसे उसका सिर झुकता गया। वह सोचने लगा कि
यह मेरे सामने बड़े प्रकाश वाला पुरूष कौन आ गया है ? मेरा शरीर काँपने क्यों लग गया
है ? और मेरा मन उसकी तरफ क्यों खींचा जा रहा है। तब तक भक्त नामदेव जी उसके पास आ
चुके थे। भक्त नामदेव जी ने कहा– क्यों भले आदमी ! क्या सोच रहे हो ? बस नामदेव जी
के हाथ लगाने की देर थी कि उसका सिर झुक गया और वह उनके चरणों में गिर पड़ा उसकी
जन्म जन्माँतर की मैल कट गई और वह राक्षस से देवता बन गया। भक्त नामदेव जी ने उसे
उठाया और हुक्म किया कि भले आदमी ! गागर जल से भरकर चल हमारे साथ और लोगों की सेवा
करके जन्म सफल कर। भक्त नामदेव जी के हुक्म से वह उठा और जल की गागर लेकर चल पड़ा और
संगत यानि लोगों के बीच आकर सबको जल पिलाया और सेवा की। इस प्रकार से भक्त नामदेव
जी का यश और भी बड़ गया।