15. मेले में सत्य उपदेश देना
भक्त नामदेव जी ने अपने नगर से बाहर निकलकर परमात्मिक उपदेश देने का कार्यक्रम बनाया।
उस इलाके के एक नगर में बड़ा भारी मेला लगता था। भक्त नामदेव जी अपने संगी साथियों
समेत वहाँ पर पहुँच गए और एक स्थान पर डेरा लगा लिया। और साथियों से ढोलकी और छैने
बजाने के लिए कहा। जब भरे हुए मेले मे ढोलकी और छैनों की आवाज लोगों ने सुनी तो चारों
तरफ से लोग (सँगत) एकतित्र होने लगे। तब भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की जो कि
श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग रामकली“ में दर्ज है:
बानारसी तपु करै उलटि तीर्थ मरै अगनि दहै काइआ कलपु कीजै ॥
असुमेध जगु कीजै सोना गरभ दानु दीजै राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥१॥
छोडि छोडि रे पाखंडी मन कपटु न कीजै ॥
हरि का नामु नित नितहि लीजै ॥१॥ रहाउ ॥
गंगा जउ गोदावरि जाईऐ कुमभि जउ केदार न्हाईऐ
गोमती सहस गऊ दानु कीजै ॥
कोटि जउ तीर्थ करै तनु जउ हिवाले गारै
राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥२॥
असु दान गज दान सिहजा नारी भूमि दान ऐ
सो दानु नित नितहि कीजै॥
आतम जउ निरमाइलु कीजै आप बराबरि कंचनु दीजै
राम नाम सरि तऊ न पूजै ॥३॥
मनहि न कीजै रोसु जमहि न दीजै दोसु
निर्मल निरबाण पदु चीन्हि लीजै ॥
जसरथ राइ नंदु राजा मेरा राम चंदु
प्रणवै नामा ततु रसु अमृतु पीजै ॥४॥४॥ अंग 973
अर्थ: "(जीव चाहे काशी में तप करे, उल्टा लटककर तीर्थों पर जान
दे दे या अपने आप को आग में जला दे, उम्र लम्बी कर ले, सोना दान करे, पर राम नाम के
बराबर नहीं पहुँच सकता। हे पाखण्डी मन ! छोड़ दे यह कपट करना। नित्यप्रति परमात्मा
का भजन कर चाहे गँगा और गोदावरी जाओ, कुम्भ के समय केदारनाथ जाकर स्नान करो, गोमती
पर जाकर हजारों गायों का दान करो, करोड़ों तीर्थ जाओ। शरीर को बर्फ वाले पहाड़ में गला
दें, तब भी परमात्मा के नाम तक नहीं पहुँच सकते। घोड़े, हाथी, सेजें, स्त्री, जमीन
और अन्य चीजों का रोज-रोज दान करो और अपनी आत्मा को निरमल करो और अपने बराबर तौलकर
सोना दान करो, तब भी परमात्मा के नाम के बराबर नहीं है। मन में गुस्सा न करो और किसी
को दोष न दो। मल और दुखों से रहित परमात्मा को प्राप्त कर लो। जिस प्रकार राजा दशरथ,
मेरा पुत्र रामचन्द्र, मेरा पुत्र रामचन्द्र, विलाप करता हुआ प्राण दे गया, इसी
प्रकार तूँ, मेरे यज्ञ, मेरे दान, मेरे तीर्थ कहता-कहता चल बसेगा पर तूँ तत वस्तु
को कभी भी प्राप्त नहीं कर सकेगा। तत वस्तू को तब ही प्राप्त कर सकेगा अगर नाम रूपी
अमृत पीएगा यानि राम नाम जपेगा।)" भक्त नामदेव जी ने बाणी गायन की और व्याख्या भी
की तो उनकी बाणी के खिचाँव में लोग यानि संगत दोड़ी चली आई और वहाँ पर भारी दीवान सज
गया। जब ब्राहम्णों ने देखा कि हमारी सारी रौनक नामदेव जी की तरफ चली गई है तो वह
बहुत क्रोधवान होकर भक्त नामदेव जी के पास आए। ब्राहम्ण बोले: नामदेव ! तुम हमारे
पुरातन कर्मकाण्ड, यज्ञ, दान, जप, तप आदि का खण्डन करते हो। गायत्री मँत्र और अवतारों
की पूजा नहीं करते इसलिए हमारी हद से बाहर निकल जाओ। यह कहते ही उन्होंने हमला कर
दिया और ढोलकियाँ छैने आदि छीन लिए। भक्त नामदेव जी ने नम्रता से कहा: भक्तों ! मैं
किसी का अपमान नहीं करता मैं तो भ्रम, वहम, पाखण्ड और अहँकार को दूर करना चाहता
हूँ। भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की, जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग
माली गउड़ा“ में दर्ज है:
धनि धंनि ओ राम बेनु बाजै ।।
मधुर मधुर धुनि अनहद गाजै ।। रहाउ ।।
अर्थ: श्री रामचन्द्र जी और कुष्ण जी के प्यारेओं ! श्री कुष्ण
जी धन्य है, वो बाँसूरी भी धन्य है, जिसे वे बजाते थे और उसमें से मीठी सुरीली धुन
निकलती थी। वह भेड़ें भी धन्य हैं, जिनसे बना हुआ दोशाला वे ओढ़ते थे। माता देवकी जी
भी धन्य हैं, जिनकी कोख से श्री कृष्ण जी ने जन्म लिया। वृँदावन के वह जँगल भी धन्य
हैं, जहाँ पर श्री कृष्ण जी खेलते थे, बाँसूरी बजाते थे और गाय चराते रहे। नामदेव
का परमात्मा उन्हें भेजकर ऐसे कौतक करके सँसार को ऐसे धँधों में लगाकर आप आनँद करता
है यानि यह सब देखकर खुश होता रहता है।
(नोट: “जो भी जन्म लेता है, उसका विनाश भी होता है और वह
परमात्मा कैसे हो सकता है, क्योंकि परमात्मा तो कभी जन्म नहीं लेता और ना ही उसका
विनाश होता हे। अयोध्या के रामचन्द्र जी, श्री कृष्ण जी, साँईं बाबा, श्री गुरू
नानक देव जी, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी यानि 10 गुरू, सारे 15 भक्त और मुस्लमानों
के अवतारित पुरूष, ईसा मसीह, ब्रहमा, विष्णु, शिव, माता, 33 करोड़ देवता, देवी-देवता
आदि, ये सभी परमात्मा द्वारा बनाए गए हैं और परमात्मा के दास हैं। हिन्दुस्तान में
एक प्राचीन बीमारी है कि जिस किसी भी अवतरित पुरूष को परमात्मा शक्तियाँ देकर भेजता
है, तो उसी की मूर्ति बनाकर पूजा करने लग जाते हैं। परमात्मा तो उन्हें इसलिए भेजता
है कि हम उनके जीवन चरित्र से कुछ शिक्षा ले सकें, परन्तु इन्सान मूर्ख है और इसी
मूर्खता के चलते वह परमात्मा को भुलाकर इनकी पूजा करने में मस्त हो जाता है और जीवन
की अमूल्य बाजी हार जाता है। लेकिन जो राम नाम जपता है और हर इन्सान को एक समान
मानता है और हर किसी की यथासम्भव सहायता करता है, वह इस सँसार सागर यानि भवसागर से
पार हो जाता है।“) भक्त नामदेव जी के प्रेम भरे उपदेश सुनकर सारे लोग बड़े ही
प्रसन्न हुए पर अहँकारी ब्राहम्ण शोर मचाने लग गए और कहने लगे कि यह हमारे ही ख्याल
हैं। भक्त नामदेव जी ने कहा: मैं किसी के ख्यालों के पीछे लगने वाला बन्दा नही हूँ।
मैं तो सच का ढिँढोरा पीटता हूँ। अगर आप यह कहो कि मैं परमात्मा का नाम जपना बन्द
करके देवी-देवता और अवतारित पुरूषों की पूजा करने लग जाऊँ तो यह नहीं हो सकता। मैं
तो डँके की चोट पर अपने ख्याल प्रकट करता हूँ। भक्त नामदेव जी ने बाणी उच्चारण की,
जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग बिलावल गोंड“ में दर्ज है:
आजु नामे बीठलु देखिआ मूरख को समझाऊ रे ॥ रहाउ ॥
पांडे तुमरी गाइत्री लोधे का खेतु खाती थी ॥
लै करि ठेगा टगरी तोरी लांगत लांगत जाती थी ॥१॥
पांडे तुमरा महादेउ धउले बलद चड़िआ आवतु देखिआ था ॥
मोदी के घर खाणा पाका वा का लड़का मारिआ था ॥२॥
पांडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था ॥
रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी ॥३॥
हिंदू अंन्हा तुरकू काणा ॥
दुहां ते गिआनी सिआणा ॥
हिंदू पूजै देहुरा मुसलमाणु मसीति ॥
नामे सोई सेविआ जह देहुरा न मसीति ॥४॥३॥७॥ अंग 874
अर्थ: "(नामदेव जी कहते हैं कि मैं मूर्ख को समझाता हूँ कि आज
परमात्मा को देखा था। हे पण्डित तुम्हारी गायत्री देखी जो पापों का खेत खाती थी।
श्री वशिष्ट जी ने विद्या रूपी डँडे से उसकी चौथी टाँग यानि एक पँक्ति तोड़ दी थी और
वह लँगड़ाकर चलती थी अर्थात अंगहीन हो गई थी। हे पांडे तुम शिव की अराधना करते हो,
लेकिन आप ही कहानियाँ बनाते हो कि शिव सफेद बैल पर चड़कर आते हैं और बहूत गुस्से
वाले है उन्हें अगर गुस्सा आ जाए तो श्राप देकर भस्म कर देते हैं। हे पांडे, तुम आप
ही कहानियाँ बनाकर कहते हो कि शिव के लिए किसी भण्डारी के घर खाना तैयार हुआ लेकिन
यह खाना शिव को पसन्द नहीं आया तो शिव ने श्राप देकर उसका लड़का मार दिया। ऐसी
कहानियाँ सुनकर तो डर ही उत्पन्न होगा न कि भक्ति भाव। ओर वैसे भी ब्रहम, विष्णु
शिव और सारे देवी-देवता उस परमात्मा के सेवक हैं। हे पांडे, तुम रामचन्द्र जी की
पूजा करते हो फिर आप ही कहते हो कि उन्होंने बाली को धोखे से मारा था, एक राकषसी को
भी मारा था और सीता जी को घर से निकाला था। ऐसी कहानियाँ सुनाकर तो श्रद्घा भावना
तो आपकी ही कम होती है। ओर वैसे भी परमात्मा जिसे भी भेजता है, उसकी पूजा करने के
स्थान पर उसके जीवन के गुण धारण करने चाहिए ना कि मूर्ति बनाकर पूजा। हिन्दु अन्धा
है और मुस्लमान काना है। हिन्दु ने एक आँख तब गवाँई जब उसने अपने इष्ट के बारे में
श्रद्धाहीन कहानियाँ बनाई। ओर दूसरी आँख तब गवाँई जब उसने परमात्मा को केवल मन्दिरों
में समझकर मूर्तियाँ पूजने लग गया और देवी-देवताओं की पूजा करने लग गया। मुस्लमानों
की मुहम्मद साहिब में पुरी श्रद्धा होने के कारण एक आँख तो साबुत है लेकिन दूसरी
गँवा बैठा है, क्योंकि उसने अल्लाह यानि परमात्मा को केवल मस्जिद में ही समझ लिया
है। मैं नामदेव उस परमात्मा का सिमरन करता हूँ जिसका न तो कोई खास मन्दिर है और न
ही मस्जिद।
नोट: (पुराणों की कथा अनुसार गायत्री ब्रहमा जी की पत्नी
श्रापित होकर गँगा किनारे जा बैठी, वहाँ पर किसी ने बुरी नजर से देखा तो गाय का रूप
धारकर खेत में चरने लग गई। खेत के मालिक ने अपना खेत को उजड़ते हुए देखा तो डँडे से
मारकर एक टाँग तोड़ दी।) जब उस मेले में हजारों आदमियों के सामने भक्त नामदेव जी ने
निधड़क होकर सत्य को ब्यान किया तो जो सच्चाई पसँद और गुणों वाले थे, वह सब गदगद और
खुश हो गए, पर जात अभिमानी और पाखण्ड प्रचारी ब्राहम्ण जोश में आ गए और एकदम मारने
को कुद पड़े। सारे मेले में खलबली मच गई। परमात्मा की शक्ति से मन्दिर के दरवाजे
एकदम बँद हो गए और जो पूजारी और ब्राहम्ण अन्दर थे, वह अन्दर ही रह गए। यह देखकर सभी
ब्राहम्णों को उनको बचाने और चढ़ावे की फिक्र हो गई। सारी जोर आजमाइश के बाद भी
मन्दिर के दरवाजे नहीं खुले तो वो बहुत शर्मिन्दा हुए और भक्त नामदेव जी के चरणों
में आकर गिर गए और क्षमा की याचना की। भक्त नामदेव जी ने परमात्मा के नाम को जपने
का उपदेश दिया जिससे मेले में आए हुए लोगों का उद्धार हो गया।