SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

14. अज्ञानियों द्वारा विरोधता

भक्त नामदेव जी के उपदेश सुनकर इनका यश फैलने लगा और लोग इनके नक्शे कदम पर चलने लगे। भक्त नामदेव जी का मिशन और उद्देश्य कृत्रिम पूजा यानि मूर्ति पूजा छोड़कर केवल राम नाम का सिमरन करवाना और जाति अभिमान का खण्डन करना था। इस कारण अपने आपको सभी जातियों का शिरोमणि बताने वाले ब्राहम्ण इनके खिलाफ हो गए और स्थान-स्थान पर उनकी निन्दा और विरोधता प्रकट करने लगे। लेकिन यह ब्राहम्ण जितनी भी निन्दा और विरोधता करते उससे भी ज्यादा की रफ्तार से भक्त नामदेव जी की कीर्ति बढ़ती जा रही थी। एक श्रद्धालू ने आकर भक्त नामदेव जी से कहा– महाराज ! ब्राहम्णों की मण्डली आपकी बहुत निन्दा करती है। भक्त नामदेव जी ने इसके उत्तर में बाणी उच्चारण की जो कि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी में “राग भैरउ (भैरव)“ में दर्ज है:

मै बउरी मेरा रामु भतारु ॥ रचि रचि ता कउ करउ सिंगारु ॥१॥
भले निंदउ भले निंदउ भले निंदउ लोगु ॥ तनु मनु राम पिआरे जोगु ॥१॥ रहाउ ॥
बादु बिबादु काहू सिउ न कीजै ॥ रसना राम रसाइनु पीजै ॥२॥
अब जीअ जानि ऐसी बनि आई ॥मिलउ गुपाल नीसानु बजाई ॥३॥
उसतति निंदा करै नरु कोई ॥ नामे स्रीरंगु भेटल सोई ॥४॥४॥ अंग 1164

अर्थ: मैं पत्नी हूँ और मेरा पति परमात्मा है। उस पति परमात्मा को खुश करने के लिए मैं (जीव रूप स्त्री) श्रँगार (शुभ गुणों को ग्रहण) कर रही हूँ। अच्छा है, लोगों मेरी बेशक निन्दा करो। मैंने अपना तन-मन अपने पति परमात्मा को अर्पित कर दिया है। मैं तो किसी से झगड़ा नहीं करती, बल्कि अपनी रसना द्वारा राम रस पीती हूँ। अब मैंने अपने मन के साथ फैसला कर लिया है। कि मैं परमात्मा से सज-धज के साथ मिलूँगी यानि कोई उसतति करे या निन्दा करे मुझे वो परमात्मा प्राप्त हो गया है। भक्त नामदेव जी अपनी निन्दा से डरे नहीं। उक्त शब्द में वो साफ तरीके से कह रहे हैं कि चाहे कोई निन्दा करो या प्रशँसा मैं तो परमात्मा की राह नहीं छोड़ूँगा और उन्होंने डँके की चोट पर ऐलान किया कि मैं परमात्मा का उपदेश पूरी दुनिया वालों को सुनाऊँगा। उल्टे मार्ग से यानि कर्मकाण्ड, सूर्य को जल चड़ाना, ग्रह-नक्षत्र, मुर्ति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा, गोबर पूजा, पशु की पूजा, व्रत रखना, यह सभी ऐसे उल्टे कर्म हैं जिनसे होता कुछ भी नहीं है, जो बहुत समय से ब्राहम्ण लोग करते चले आए और उनकी देखादेखी या बहकावे में आकर सभी करने लगे, यह तो कवले धँधे के साधन थे और अभी भी हैं। जैसे ब्राहम्ण कहते हैं कि पूजा करवा लो, अपने मकान के पीछे गोबर रखकर उसमें अगरबत्ती रख देना। व्रत रख लो। इन सारे कर्मों से परमात्मा तो कभी भी नहीं मिल सकता, बल्कि समय और पैसा जरूर ही खराब होता है और मन की शान्ति तो मिल ही नहीं सकती। अगर आप ऐसे कार्य करते हैं यानि मूर्ति पूजा, देवी-देवताओं की पूजा तो आज ही छोड़कर “राम नाम“ का जाप प्रारम्भ कर दीजिए, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.